वो एहसास अपना सा जिसमे बस प्रेम है निर्भीक निस्वार्थ प्रेम संवेदनाये ,संचेतानाओ से भरा अद्भुत अनुपम प्रेम समर्पण से भरा हमारी खुशियों की दुआओं से भरा जिसमे वांछा कांक्षा कुछ भी नहीं बस है तो प्रेम प्रेम और प्रेम प्रेम की सीमा और सरहदों से पार वो अनुपम प्रेम मेरी ख़ुशी सफलता के लिए समर्पित वो प्रेम मात्र उस आँचल के अन्दर है जो हमेशा हर वक़्त हर क्षण हमारी खुसी के सपने संजोती है,प्रार्थनाये करती है येसे उस प्रेम का एहसास मात्र ... मात्र माँ के प्रेम मैं ही संभव है !!!!! अभिषेक जैन Posted by भटकन at 10:58 AM 0 comments
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