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स्मारक इंडियंश पार्ट-13...सौरभ की शादी मुवारक.....

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बीता हुआ वक्त..गुजर् हुए पल..और वो तमाम यादें..जिन्हें हम जी चुके हैं..और जिन्हें हमने अपने अंतस में कुछ इस तरह समेट लिया है कि जिंदगी जीने के लिए गई ली गई हर वो सांस उन यादों को छूती हुई सी गुजरती है..ऐसा लगता है मानो हम फिर से वही जिंदगी वापिस जी रहे हों..या वो गुसश्ता वक्त ही है जो हमें जिंदा रखे हुए है...पिछले लेखों में यादों के बहुत सारे पन्ने पलटने की हमने कोशिश की है..क्योंकि उम्र की जिस दहलीज पर यहां मुस्काम,खुशी,सब झूटी है...क्योंकि यह सब तो तब आया करता हैं जब हम ना समझी के दौर से गुजर रहे होते है...पर सोचो जिस हसीन वक्त को आप जी चुके है..और जो सिर्फ आपके अब सपनों में है उसे यदि फिर से जीने मिल जाए तो आप क्या कहेंगे...चलिए लौटते हैं वापिस उसी दौर में..उन्हीं लोगों के साथ..जो जिंदगी जीने का मकसद है या कहें इकदूजे के लिए प्राणवायु हैं.... हमारे अजीत मित्र...ना सिर्फ हमारी क्लास का चहेता अपितु स्मॉरक के शास्त्रीओं में सबका ही चहेता...उम्मीद के अनुरूप...विवाह बंधन में हम सबसे पहले बंधने जा रहा था..जैसा की स्मारक के पड़ने के समय वादा किया जाता था..की हम तुम्हारी शादी में जर...