स्मारक इंडियंश पार्ट-13...सौरभ की शादी मुवारक.....
बीता हुआ वक्त..गुजर् हुए पल..और वो तमाम यादें..जिन्हें हम जी चुके
हैं..और जिन्हें हमने अपने अंतस में कुछ इस तरह समेट लिया है कि जिंदगी जीने के
लिए गई ली गई हर वो सांस उन यादों को छूती हुई सी गुजरती है..ऐसा लगता है मानो हम
फिर से वही जिंदगी वापिस जी रहे हों..या वो गुसश्ता वक्त ही है जो हमें जिंदा रखे
हुए है...पिछले लेखों में यादों के बहुत सारे पन्ने पलटने की हमने कोशिश की है..क्योंकि
उम्र की जिस दहलीज पर यहां मुस्काम,खुशी,सब झूटी है...क्योंकि यह सब तो तब आया
करता हैं जब हम ना समझी के दौर से गुजर रहे होते है...पर सोचो जिस हसीन वक्त को आप
जी चुके है..और जो सिर्फ आपके अब सपनों में है उसे यदि फिर से जीने मिल जाए तो आप
क्या कहेंगे...चलिए लौटते हैं वापिस उसी दौर में..उन्हीं लोगों के साथ..जो जिंदगी
जीने का मकसद है या कहें इकदूजे के लिए प्राणवायु हैं....
हमारे अजीत मित्र...ना सिर्फ हमारी क्लास का चहेता अपितु स्मॉरक के
शास्त्रीओं में सबका ही चहेता...उम्मीद के अनुरूप...विवाह बंधन में हम सबसे पहले
बंधने जा रहा था..जैसा की स्मारक के पड़ने के समय वादा किया जाता था..की हम
तुम्हारी शादी में जरूर आएंगे..उसी वादे को निभाने के लिए सौरभ की शादी में आने
वालों ने अपना वादा निभाया जरूर...चलो सबसे पहले इस मौके पर आने वाले हमारे
मित्रों का परिचय करा दें...संजीव जी खड़ैरी,राजेन्द्र जी,मिंटू जी,पंकज जी ,केसी
जी,नीरज जी जैसे बड़े बुजुर्गे के साथ ही,,नितिन जी,संतोष जी ने भी शादी में पधार
कर एक और शास्त्री को मोह माया में पटक दिया..इसके बाद कुछ हमारी क्लाश के भी
अदभुत प्राणी...करन शाह,सजल,निशंक,दीपक,दीपेश,दीपक,राहुल और मैं खुद सौरभ की शहादत
देखने गया था...साथ ही हमारे कुछ अनुज...वीरेन्द्र,विवेक,सुदीप,विकास,दीपक,राहुल,सुमित,और
भी महानुभव जितना का नाम स्मृति से उतर गया है..इनके आलावा भी परोक्ष रूप से बहुत
सारे लोग शादी में सम्मिलित हुए..इस लेख को पढ़कर आपको ऐसा लग रहा होगा जैसे किसी
न्यूज पेपर में आप विज्ञप्ति पढ़ रहे हों....लेकिन लेकिन लेकिन...जरा सा धैर्य
रखिए वापिस विषय पर आते हैं....
आफिस से छुट्टी मिलने पर
बीमारी का बहाना बनाकर जैसे तैसे रायपुर के मित्रों के साथ ट्रेन में बैठे
थे....सबके फोन आने शुरू हो गए..कब पहुंच रहा है बे ..कितने बजे पहुंच रहा
है..सीधा पहुचेगा क्या,,,मैंने भी फोन करके ना आने वालों से कारण पूछा..तभी
वीरेन्द्र बोला अभिषेक जी चिंता मत करो बहुत लोग आएंगे मजा आएगा..तभी पहुच गए साहब
दमोह..दमोह में राहुल का फोन आय़ा,,,,किते हो द्ददा...तीन गुल्ली पे आ जइयों..उतई
से चले...तीन गुल्ली पर जैसे पहुंचे राहुल नेता जी मिल गए..सोचा था कुछ बदले बदले
मिलेंगे पर कुत्ता की पूछ की तरह हमेशा की तरह ही दिखे,,,थोड़ा उनका कलर जरूर बदला
बदला सा लग रहा था..पर वो सब मेरे चश्मे का भ्रम था..जैसे बांसा पहुंचे...राहुल ने
रिश्तेदारिया बताना शुरू कर दी..चाचा नाना बुआ और पता नहीं क्या...तभी सजल जहां
सौरभ की बरात रूकने वाली थी ,,वहां से सजल भाई अपने चितपरिचित अंदाज में दिखे...फिर
क्या एक के बाद एक जमाचौकड़ी जुड़नी शुरू हुई तो पूछो मत...इधर सुदीप तो उधर
विकास...साथ ही साहबजादे सौरभ...बस फिर जहां मिले इतने यार वहां क्या होता है
बताना बेमानी सा लगता है...एक छोटा सा रूम उसी में पता नहीं कितने लोग रूके
थे...जल्दी जल्दी सब तैयार हुए,,मिलने जुलने का दौर शुरू...फोटो खिचाने का भी..सब
अपने अपने कैमरे निकाल कर फोटो निकालने में जुट गए...बेचारा सौरभ अकेले ही तैयार
होने में जुटी था...क्योंकि बाकी लोग तो भूल ही गए थे की...वो सौरभ की शादी में आए
हैं...भाई लेकिन जब तैयार होकर बाहर निकले...तब सारे मिथक टूट गए..शास्त्री लोग
इतने स्मार्ट की पूछो नहीं....बांसा के लोगों ने उस दिन तो जली रोटियां खाई होंगी
क्योंकि रोटी बनाने वालिया तो हम लोगों को देखने के लिए अपनी अपनी छत पर जो आ गई
होंगी...सौरभ के तो कहने ही क्या थे..लग रहा था साले को काला टीका लगा दूं पर सोचा
ठीक है उसे कौन सी नजर लग जाएगी.....
भाई बारात लगना शुरू,,,हम लोगों का थिरकना भी शुरू,,,वो भी इतना की
पूछों मत,,,सुमित,विकास,नितिन जी तो मानों पागल हो गए थे डांस करने के लिए....डीजे
बजने दो बस...सबके सब..चार बोतल वोटका,,,बेबी डॉल...नाचने में लगे थे...ऊपर से
राहूल भरी गर्मी में सबके ऊपर पाऊच से
पानी की बारिश करने में मगन था...सच में अदभुत अनुभव था..जितना सोचता हुँ,...दिल
आज भी गुदगदाए बिना नहीं रहता....इसके बाद सौरभ और पापा के द्वारा मना करने के बाद
भी थोड़ी मस्ती तो बनती है यार,.,.तो फिर जैसे सौरभ स्टेज में पहुंचे...अपकी बार
सौरभ सरकार के नारे लगने शुरू हो गए....और देखते ही देखते...कभी खत्म ना होने वाले
पल की भी सांझ आ गई...और फिर...हमेशा की तरह..अच्छे पलों का कम समय का दस्तूर
जारी...
सब टीका कराकर अपने अपने बैग ढूढ़ने में मशगूल हो गए...क्योंकि अब
वापिस हमें अपने अपने घर जाना था...सच में वो बिछड़ने का समय बड़ा ही मनहूश होता
है...पर ये तो दस्तूक दुनिया का इससे मुकरना क्या...अपनों से मिलन कैसा अपनों से
बिछड़ना क्या....और हम सब भी सौरभ को नये जीवन की ढेर सारी बधाईयां देकर ..अपने
अपने मुकाम पर लौट गए...इसी उम्मीद के साथ...की फिर कभी वो सूरज निकलेगा...जब हम
सब फिर साथ होंगे.........
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