विश्वास में ही विष का वास है


रिश्ते इतने कमजोर होते जा रहे हैं कि जरा सी हवा लगते ही दरक जाते हैं, हर कोई हर किसी को शक कि निगाह से देखता है, कहता कुछ नहीं है लेकिन एक जहर मन में बोता रहता है। यह अधिकतर लोगों और अधिकतर घरों की कहानी है। सारा परिवार साथ है, वर्षों से, बात करता है, हंसता है, पिकनिक मनाता है, बच्चे पैदा करता है, सबकुछ जो देखने में सब ठीक की अनुभूति देता है लेकिन अंतरंग में जहर का वो पौधा हर दिन बढ़ता है, उसकी जड़े हर दिन मजबूत होती जाती हैं।

अधिकतर लोग ऐसे ही आधा जी रहे हैं और आधा मर रहे हैं, किसी से पूछो क्या चल रहा है वो बस एक ही जबाव देता है बस जिंदगी चल रही है" सबकी चलती ही है। यहां एक बात समझने लायक है कि सबकुछ ठीक दिखने के बाद भी सबकुछ ठीक क्यों नहीं है, क्यों इतना अविश्वास नसों में जहर बनकर दौड़ रहा है, पति-पत्नी, मां-बेटी, बाप-बेटे, गर्लफ्रेंड-ब़ॉयफ्रेंड सबको देखिए सब एक दूसरे के मोबाइल में नजरें गड़ाए हैं, सब सोशल मीडिया में नजरें गड़ाए हैं कि एक दूसरे का राज पता चले। सब डरे हुए भी हैं कोई हिम्मत नहीं करता कि लो देख लो जो देख ना हो टाइप। मतलब सबके अंदर एक चोर है, जो अविश्वास के जहर को खाद दे रहा है।

खोखली हंसी-खुशी, अपनापन इन सबका बताईए क्या मूल्य है, क्या इनसे जीवन में संतुष्टी मिलती है। हम क्यों एकदूसरे में विश्वास नहीं शक खोज रहे हैं, हम क्यों दूसरों में ही वो खोज रहे हैं जो हम चाहते हैं, हमें क्यों दूसरा ही अपने से बेहतर लगता है, हम क्यों सोच रहे हैं कि मुझे जो मिला है वो मेरी गलती या बुरी किस्मत से मिला है। क्या हम अपने में वो नहीं खोज सकते जो दूसरों में खोजते घूम रहे हैं। हम कंधे तलाश रहे हैं, हम तलाश रहे हैं कि कोई मेरी बात सुनें। किसी से में अपने मन की बात कह पाऊं। लेकिन सवाल यह है कि कोई और क्यों? जो तुम्हारा है वो क्यों नहीं।
रिश्ते टूटने की असली वजह यही अबोलापन है, हम एकदूसरे को सुनना नहीं चाहते। जब बातचीत बंद हो जाती है और सिर्फ औपचारिकता रिश्ते में बचती है तो फिर सुलह के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। हम सोचते हैं कि अपने साथी को धोखा देने से उसे कुछ पता नहीं चलेगा? मैं बात ही तो कर रहा हूं इसमें गलत क्या है? वो भी तो किसी न किसी से बात करता होगा? उसे तो मुझमें सिर्फ गलतियां दिखती हैं, दूसरा आदमी मेरी तारीफ तो करता है? कई सारे सवाल जो मन में उठते हैं और मन ही उत्तर दे देता है, गलत कदम की शुरूवात यही से होती है। फिर करते-करते वो गलत-गलत नहीं रह जाता।
लेकिन सोचिए! आप कब तक यह अवैध और अनैतिक रिश्ते छुपा सकते हैं, आप सब डिलीट कर सकते हैं, लेकिन गलत मन का क्या करेंगे? जो हमेशा एक डर तुम्हारे अंदर पैदा कर देगा। खुद को क्या जवाब दोगे? खुद से कैसे भागोगे? हम गलतफहमी में है कि एक जख्म का इलाज दूसरा जख्म है, इससे चीजें सुधरेंगी नहीं अपितु इतनी बिगड़ेंगी कि आप फिर सुधरने की सारी गुंजाइश खत्म हो जाएगी।

यह जो विश्वास का रिश्ता होता है, बड़ा मूल्यवान होता है, करोड़ों खर्ज करने पर भी नहीं बनता। बहुत कीमती होता है यह इसे सम्हल कर खर्च करना चाहिए क्यों एक बार गया तो फिर दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंककर पीता है। अपनों पर विश्वास कीजिए। अपनो को विश्वास में लीजिए। खूब बातें कीजिए। इनपर असहमति है उनपर बार-बार बातें कीजिए। कमियां नहीं खूबियों पर बातें कीजिए। रिस्पेक्ट कीजिए एकदूसरे की। याद रखिए अपने ही अपने होते हैं, यह बाजार में दिखने वाले कंधे, दोस्त सब भ्रम है और मन को उलझाता है। सोचिए। बार-बार सोचिए क्योंकि रिश्ते इतने कमजोर हैं एक हवा का झोंका आएगा और सबकुछ खत्म। वक्त का ख्याल रखिए वरना वक्त पर सही वक्त नहीं आएगा।



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