"मदमस्त मौला दीवाना,,,मैंने जीवन पहचाना"
( *जज़्बातों की बेमतलब जुगाली...बहुत जरूरी नहीं है पढ़ना.. लेकिन पढ़कर कुछ सुकून जरूर मिलेगा...लेख लम्बा है..शूरवीर ही कोशिश करें)... बार बार सोने की कोशिश कर रहा था।रात भी तो बहुत हो गई थी।पर ना जाने क्यों कुछ बेचैनियां..बेचैन किये जा रहीं थी।कुछ धुंधली सी यादें..धड़कने बढ़ा रहीं थी तो कुछ अंधूरे सपने दिल को कुरेदने में लगे थे।इतने सारे सवाल एक साथ मन में आ रहे थे की समझ नहीं पा रहा था कि आखिर जवाब दूँ भी तो किसका..एक सवाल जब तक सोने की कोशिश करता। दूसरा आकर तांडव करने लगता। लेकिन में समझ रहा था खुद को शायद..की ये जो हो रहा है वो जज़्बातों की जुगाली करने का ही परिणाम है। मेने जैसे ही पढाई को लेकर जवाब दिया। तुरंत ही करियर को लेकर आये सवाल ने हंगामा शुरू कर दिया। मैँ उसे समझा ही रहा था की।प्यार बीच में आ गया। कई सारी कसमें देने लगा।सोचा पहले उसे ही सुलझाता हूँ। पर सामने देखा तो परिवार आँखें तरेर रहा था। मैं थोडा सहम सा गया था और शायद उलझन में भी था।यहां ये कहना ठीक होगा की मैं जज़्बातों की बेमतलब जुगाली कर रहा था। फिर भी सवाल तो सामने थे ही..बस जवाब देने का धर्म संकट था। किसके ...