"मदमस्त मौला दीवाना,,,मैंने जीवन पहचाना"
बार बार सोने की कोशिश कर रहा था।रात भी तो बहुत हो गई थी।पर ना जाने क्यों कुछ बेचैनियां..बेचैन किये जा रहीं थी।कुछ धुंधली सी यादें..धड़कने बढ़ा रहीं थी तो कुछ अंधूरे सपने दिल को कुरेदने में लगे थे।इतने सारे सवाल एक साथ मन में आ रहे थे की समझ नहीं पा रहा था कि आखिर जवाब दूँ भी तो किसका..एक सवाल जब तक सोने की कोशिश करता। दूसरा आकर तांडव करने लगता। लेकिन में समझ रहा था खुद को शायद..की ये जो हो रहा है वो जज़्बातों की जुगाली करने का ही परिणाम है।
मेने जैसे ही पढाई को लेकर जवाब दिया। तुरंत ही करियर को लेकर आये सवाल ने हंगामा शुरू कर दिया। मैँ उसे समझा ही रहा था की।प्यार बीच में आ गया। कई सारी कसमें देने लगा।सोचा पहले उसे ही सुलझाता हूँ। पर सामने देखा तो परिवार आँखें तरेर रहा था। मैं थोडा सहम सा गया था और शायद उलझन में भी था।यहां ये कहना ठीक होगा की मैं जज़्बातों की बेमतलब जुगाली कर रहा था। फिर भी सवाल तो सामने थे ही..बस जवाब देने का धर्म संकट था। किसके सवाल को पहले सुलझाया जाये। सोचा चलो कुछ एडजस्टमेंट करता हूँ। सब सुलझाने की जुगत में ही था कि तभी धर्म ने आकर डरना शुरू कर दियाl अब मैं थोडा सहम गया था। क्योंकि जिससे उम्मीद लगा के बैठा की वो भगवान मुझे सब सवालों के जवाब से पार कर देगा। वो खुद ही सवाल बनकर सामने था।
ऐसी दुविधा अंतर्द्वंद का दौर जारी था कि सोचा शायद इतने सारे सवालों का जवाब बहुत मुश्किल है। या जवाब देना ही पागलपन है।क्योंकि सवाल तो भस्मासुर की तरह हो गए थे।ख़त्म ही नही हो रहे थे।हालाँकि झुंझलाहट और चिड़चिड़ेपन का मै शिकार हो रहा था। फिर भी। मैने हिम्मत करके एक शोध् शुरू किया...मैंने ये जानने में फुजूल ही अपनी शक्ति व्यर्थ की कि आखिर अब तक अनंत संसार में कौन इन सवालों के जवाब दे पाया है और वो जवाब कितने संतुष्ट करते हैं। मेरे शोध् का नतीजा ज़ीरो था। मेरी उलझन अभी भी जस की तस थी। ऐसा लग रहा था की जिंदगी सवालों का पुलिंदा है इसके आलावा कुछ नही।मैं महसूस कर रहा था की मै आध्यात्मिक होता जा रहा हूँ।या कहूँ भाग रहा हूँ।
एक मन कह रहा था सब मोह माया है। छोड़कर एकान्त अपना लो तो दूसरा यथार्त से परिचय करा रहा था की भागो मत जो है सो है।ज्यादा सोचो मत जियो..जिंदगी को जिन्दा होकर जियो।क्योंकि जिंदगी सोचने नही जीने मिली है। दूसरा मन थोडा सा शांति दे रहा था।हालाँकि पहला मन धिक्कार रहा था मुझे पर दूसरा मन सम्हाल रहा था। वो सवाल तो बिना जवाब के ही दफ़्न हो गए थे।अब इन दो मनों के सवाल जद्दोजहद कर रहे थे।सही गलत।खीचतान।वो सही।नही नही ये सही।यही करना चाहिए।वो तो दुःख ही देगा।पर ये सुख भी सुख नही है।ये क्षणिक शांति है।लेकिन शांति तो है।पछ्ताओगे।जो होगा देखेंगे।दोनों के जवाब थम नहीं रहे हैं। शायद कभी थमते भी नहीं हैं।
इतना सब कुछ पड़ने के बाद अभी आप अभी भी परेशान हैं की कुछ कंक्लूजन तो निकला ही नही...तो आपको बता दूँ।जिंदगी भी इसी आर्टीकल की तरह है..बहुत लंबी ना समझ में आने वाली..इसलिए उसे सिर्फ लेख पड़ने की तरह जिये ...बिना समझे..बिना जाने
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