घर से विदा सिर्फ लड़कियां ही नहीं होती लड़के भी होते हैं?
दसवीं का रिजल्ट आया ही था, मार्कशीट के साथ ऐसा लगा जैसे घर छोड़ने का फरमान आया हो। आगे की पढ़ाई के लिए घर छोड़ना था। मेरे जैसे कई युवा ऐसे ही पहली बार घर छोड़ते हैं पढ़ने के लिए, अपने और अपनों के सपने पूरे करने के लिए, उम्मीदों को पंख देने के लिए, बड़ा बनने के लिए। सब कुछ मिलता है जो सोचा गया था सिवाय घर के। घर से निकलते समय शायद ये अहसास ही नहीं हुआ कि ये विदाई ही है अब घर ब्याही गई बहनों की तरह ही कभी-कभी ही आना हो होगा। घर से निकलने के कई सालों तक हमारे जहन में ये बात नहीं आती लेकिन कभी आंख बंद करके सोचो तो समझ आता है कि पढ़ाई और फिर पढ़ाई के फल ने हमें अपने घर से हमेशा के लिए दूर कर दिया। अपने मां-बाप से दूर। अब हम सिर्फ फोन पर या त्यौहार पर ही साथ होते हैं। याद नहीं आता कभी एक पूरा हफ्ता इन 10-15 सालों में साथ गुजारा हो। हम मस्त हैं अपने काम में और मां-बाप खुश है संतोष में कि उनके बेटे ने तरक्की कर ली। जैस-जैसे समय गुजरता जाता है हम दूर होते जाते हैं उनसे वो जब भी फोन करो कुशलक्षेम के साथ एक बार जरूर पूछते हैं कि घर कब आ रहे हो और हमारा हमेशा जवाब होता है जब छुट्टी मिलेगी तब।...