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Showing posts from October, 2010

आज के मानव की तस्वीर ,,,,,,,

जब कभी रोड पर भोखे नंगे लोगो को बिलखते देखता हु तो दिल पसीज जाता है मानवता पर शर्म आती है | और सामने एक तस्वीर सामने आती है ,इस भारत देसे की उस बोध महावीर की सिक्षा ,गाँधी के सपनो की जिन्हें उनोहोने अपने सपनो में सजाया था इस भारत देश की तस्वीर खिची थी पर सायद वो सपना आज धूमिल हो गया हम सम विस्मिरित कर गए ,हमें दुसरो का दुःख दिकना बंद हो ,हमें अब सिर्फ अपना दुःख ही दुःख लगता है बाकि का नहीं ,हमें अपने ही बस अपने लगते है दुनिया के अन्य लोगो की हमें परवाह नहीं |आज हम महज अपने स्वार्थ  में मस्त है ,और सिर्फ अपने बारे में सोचते है |पर क्या यही हमारी मानवता है यही हमारा धर्म है |पूरी दुनिया में जिस संस्कृति के हम गुण गाते रहते है ,क्या यही हमारी संस्कृति है ,की हमारा पडोसी भूखा रहे और हम मजे से खाए ,हमारी संवेदनाये मर गयी है हमारी मानवता समाप्त हो गयी है जिसके कारन हमें रोते बिलखते लोग  नजर आते है,कभी उनके चहरे पर खुसी नजर नहीं आती ,पर सायद यही दिन हमारे साथ भी अ सकता है          ...
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                                हाँ में सपने देखता हूँ                                 जिंदगी में कुछ कर गुजरने के                             "    कुछ पाने के जिन्दगी महकने के                                 पर क्या वो सच होंगे या नहीं                        ...

भटकन .............

आज की इस भागम भाग भरी दुनिया में हम अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए न जाने क्या क्या करते है हर दम हर पल हम अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहते है और इसी आपाधापी में हमारा जीवन गुजर जाता है और हम कभी अपने आप को नहीं खोज पाते क्यों की हमे पुरे जीवन भर पता ही नहीं  चला की हमारे जीवन का लक्षय क्या है और हमारी मंजिल कहा है बस इसके लिए ही हम परेशां और दुखी है हमने  शांति के लिए हर संभव प्रयास किया हर जगह डुंडा पर वो कही नहीं मिली पता नहीं क्यों आज वो भटकन जीवन में जारी है दुनिया का हर इन्सान इस भटकन से परेशां है  और न जाने कब यह भटकन समाप्त होगी  ................................. भटकन

जीवन .......................

जीवन का हर पल सुंदर है  सुन्दरता को खोये क्यों जिन लम्हों में हस सकते है उन लम्हों में रोये क्यों

ek such

मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधू समझता शत्रु मेरा बन गया है छलरहित व्यवहार मेरा।