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Showing posts from April, 2012

आस्था का सिंहासन ......पाखंड का आरोप .....धर्म ,धंधा या कुछ और .........!!!!!!!!

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                                           धर्म जीवन का हिस्सा नहीं होता जीवन ही  होता है क्योंकि धर्म से ही हमारे जीवन का तानाबाना बुना जाता है ...शायद इसलिए भारत देश में धर्म को परीक्षा करके नहीं अपनाया जाता बस भगवान का नाम सुनकर ही सर झुका दिया जाता है |क्योन्कि धर्म पर शक करना हमें  धर्म का अपमान लगता है और दैवीय आपदा का भय बना रहता हैं |पर क्या सच में  धर्म  को आंखे बंद करके बिना विचारे स्वीकार कर लेना उचित है |जब हम सारी की सारी दुनिया का भरोसा बिना परीक्षा के नहीं करते तो फिर धर्म को ही क्यो आँखो पर पट्टी बांध कर स्वीकार कर लेते है ....और चिंतनीय बात तो तब और भी हो जाती है जब धर्म के पुरोधा भी यही सलाह देते नजर आते है |सच में ध्रतराष्ट्र के अंधे होने पर गांधारी का अपनी आँखो पर पट्टी बांध लेना कहा का उचित था यदि परिस्थियों को तत्समय अपनी आँखो से वो देखती तो शायद  महाभारत जैसे महा नरसंहार के युद्ध से बचा जा सकता था |पर शायद इस देश की यही परम्परा रही...

मोहब्बत....

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  मुहब्बत   की बातों ने मुहब्बत  से मुहब्बत  करा दी बस खामखाँ परेशानियों की घुटी  पिला दी  बहुत सपने देखे थे रातों को मुहब्बत के  सुबह के सूरज  ने उसकी हकीकत बता दी   प्रमिका के साथ गुजारे लम्हों और यादों ने  जिन्दगी के अनमोल वक्त को तबाह कर दिया  और बेचेनी और तडपन भरी दुनिया  दिखादी  अब तो खामोशियाँ  भी खामोश नहीं होने देती   खामोशियों ने ही मोहब्बत की दास्ताँ दुनिया  को सुना दी   अब बस गुमशुम उदास रहता हूँ मोहब्बत  करके  मोहब्बत के कारण दुनिया ने मुझे नाकारा समझा  यही मोहब्बत करने की मुझे दुनिया  ने सजा दी !!!!!!!!!!