आस्था का सिंहासन ......पाखंड का आरोप .....धर्म ,धंधा या कुछ और .........!!!!!!!!

 
                                        धर्म जीवन का हिस्सा नहीं होता जीवन ही  होता है क्योंकि धर्म से ही हमारे जीवन का तानाबाना बुना जाता है ...शायद इसलिए भारत देश में धर्म को परीक्षा करके नहीं अपनाया जाता बस भगवान का नाम सुनकर ही सर झुका दिया जाता है |क्योन्कि धर्म पर शक करना हमें  धर्म का अपमान लगता है और दैवीय आपदा का भय बना रहता हैं |पर क्या सच में  धर्म  को आंखे बंद करके बिना विचारे स्वीकार कर लेना उचित है |जब हम सारी की सारी दुनिया का भरोसा बिना परीक्षा के नहीं करते तो फिर धर्म को ही क्यो आँखो पर पट्टी बांध कर स्वीकार कर लेते है ....और चिंतनीय बात तो तब और भी हो जाती है जब धर्म के पुरोधा भी यही सलाह देते नजर आते है |सच में ध्रतराष्ट्र के अंधे होने पर गांधारी का अपनी आँखो पर पट्टी बांध लेना कहा का उचित था यदि परिस्थियों को तत्समय अपनी आँखो से वो देखती तो शायद  महाभारत जैसे महा नरसंहार के युद्ध से बचा जा सकता था |पर शायद इस देश की यही परम्परा रही है की जहाँ सारी दुनिया सर झुकाती है वहां सर झुकाओ  बस यह जानने की कोशिश मत करो की सर क्योँ झुकाया जा रहा है |
                                        इन सब बातो   को यदि सही मायने में सोचा जाये तो शायद  इसका नाम ही अन्धविश्वास है क्योकी  अति विश्वास ही तो अन्धविश्वास है  अब चाहे वह किसी पर भी कैसे भी  क्योँ न हो ....और ऐसा करने पर ही धर्म के नाम  पर समाज के  दलाल धर्म के पुरोधा बन जाते है और फिर चालू हो जाता है उनका व्यवसाय क्योकि  इस देश में भक्तो की कमी नहीं है हर किसी को ढेरो भक्त मिल ही जाते है और वह भी उनका पूरा विश्वास जीत कर बड़ी बड़ी बाते करके उन्हें अपने चंगुल में फांसही  लेते है |सच में मानवता के नाम पर इससे बड़ा तमाचा क्या होगा की इन्सान ने अपने फायदे के लिए भगवान को भी नहीं छोड़ा  उसे भी शक के दायरे में खड़ा कर दिया उसके नाम पर अपने खातो में लाखो करोडो जमा कर लिए और भोले भाले भक्तो की सहानुभूति ने उन्हें आस्था के उस शिखर सिहासन पर पंहुचा दिया जहाँ से सिर्फ उनका गुणानुवाद ही सुनाई दिखाई पड़ता है अन्तर में पड़ा  हुआ बहसीपन    और दुश्चरित्रता धनलोलुभता नहीं जो की उनका असली चेहरा है  ..सच में एक चेहरे में कितने  चेहरे झुपे होते है जिन्हें देख पाना जनसामान्य के बस में  नहीं है |
                                   पर यह कडवा सच है की जब तक हम परीक्षा प्रधानी नहीं होँगे तब तक ऐसे बाबा दिनो दिन बड़ते रहेंगे और हमारी आस्था के  साथ का सरे आम बलात्कार करते रहेंगे और यू ही हमारे भरोसे का कत्ले आम करते रहेंगे और हम फिर भी उन पर भरोसा करते  रहेंगे क्यूंकि  धोखा खाना हमारी आदत बन  गई है|और यदि यही आलम रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब हमारी नए वाली पीडी धर्म के नाम से ही मुहँ छुपाने लगेगी और धर्म बस किताबो में समिट कर इतिहास बन जायेगा और हम भी पाश्चत्य संस्कृति की तरह स्वछन्द हो जायेंगे |और फिर न धर्म होगा न धर्मात्मा ...धर्म को भी हम डायनासोर की तरह कहानियो में पड़ा करेंगे , क्योकि  पाखंडी बाबाओं की तादात इतनी बड़ गई है| की बस धर्म कब काल कवलित हो जायेगा पता नहीं क्योकि  वो बाबा  ऐसे दीमक है जो प्रति दिन हमारी आस्था को निगलते जा रहे है  और हमारी अस्मिता को लूटते जा रहें |सच हमारी श्रद्धा आस्था से जो खिलवाड़ ये तथा  कथित बाबा कर रहे है यह काफी खतरनाक  है और शर्मनाक भी क्योकि  की यह हमारी आस्था के सिहासन पर बैठ कर पाखंड रच रहे है जिससे न सिर्फ धर्म पर से भरोसा उठ रहा है अपितु मानवता पर भी शक  होने लगा है |
                                अब वक्त केवल समझने और जागने का है और  यदि हमे धर्म को बचाना है तो इस धर्म और श्रद्धा  के लुटेरो से बचना होगा क्योकि " श्रद्धा का लुटेरा ही सबसे बड़ा लुटेरा होता है" क्यूंकि वह हमारी आत्मा के साथ छल  कर  रहाम होता है | वह हमारी भावनाओं संवेदनाओं हमारी श्रद्धा, आस्था, भक्ति, पूजा सबको  अपनी स्वार्थवृति के लिए हमे ठग रहा है |जिसका परिणाम यह होगा की हम किसी दिन इतने ठगे जायेंगे की न फिर हम धर्म पर भरोसा कर पाएंगे और न ही धर्मात्माओं पर इसलिए इन तथा कथित बाबाओं के चक्कर में न पड़ कर अपने स्वविवेक से धर्म  का निर्णय ले और अपने में और अपनो के लिए चिरकाल तक धर्म को बचा कर रखे |    

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