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मेरे जैन भाईयों...समस्या नहीं समाधान देंखे

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शिखर जी को लेकर जो हमने जो एकजुटता दिखाई वो वाकई काबिले तारीफ है, हम दुकान छोड़कर अपने तीर्थों के लिए सड़कों पर उतरे सरकार को मीडिया को हमने सोचने पर मजबूर किया, निश्चित तौर पर यह हमारी ताकत का असर है। हम जो चाहते थे, पूरा न सही, कुछ तो हमें मिला और हम इस चिंता से मुक्त हुए कि अब शिखर जी पर्यटन क्षेत्र नहीं बनेगा। इस पूरे प्रकरण को जब आप हम देखते हैं, तो एक तरह से लाभ-हानि दोनों दिखते हैं। लाभ क्या हुआ,यह सामने है। लेकिन इससे हानियां क्या-क्या होंगी इसका अंदाजा शायद हम आप फिलहाल न लगा पाएं। जब आप एकजुटता दिखाने लगते हैं, तो आपके सामने जो भी हो वो भी एकजुट होने लगता है। क्योंकि वो देखता है कि यदि वो एकजुट नहीं हुए तो वो भी खतरे में पड़ जाएंगे। शिखरजी को लेकर जैन समाज पूरे देश में चर्चा का विषय है। हमारी संख्या कितनी है, हम किसी से छुपा नहीं है। हम, हमारे तीर्थ सुरक्षित तब तक हैं, जब तक वो फोकस के बिंदू नहीं, उनकी नजर आप पर नहीं है। हम आप अभी तक इसलिए बच जाते हैं कि अभी तक वो हमें आपको अपना हिस्सा ही समझते हैं। बाकि एक समुदाय विशेष से उनकी लड़ाई, समुदाय विशेष का डर,फिलहाल हमें बचाए रखत...

सम्मेदशिखरजी" हमारी 'आस्था' नहीं 'आत्मा' है!

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2002-03 में पहली बार सम्मेद शिखर जी गया था, उसके पहले कल्पना ही की थी कैसा होगा सम्मेदशिखर, मुझे अच्छे से याद है, जब कोई गांव से शिखर जी की यात्रा करने जाया करता था, पूरा गांव उसका सम्मान करता, माला पहनाता और श्रीफल देता, ऐसा अनुभव होता जैसा कोई किसी बड़ी विजय के लिए निकला हो। तमाम रिश्तेदार मिलने आते कोई अष्टद्रव्य तो कोई नारियल भेंट कर जाता कि निर्वाण भूमि में अर्पित कर देना। हर कोई अपने अपने तरीके से अनुमोदना करता, तब से ही लगता था कि कुछ तो है, उस भूमि में, जो हजार किमी दूर बैठे लोगों में भी पवित्रता, अस्था, श्रद्धा को जीवंत किये हुए हैं। हम बचपन से ही कहीं जाने का सपना देखते हैं तो वो सम्मेदशिखर ही है, जाने से पहले इतनी कल्पनाएं थीं मन में की मैं कई रात सोया नहीं, यह सोचकर की कैसी अदभुत जगह होगी वो, जिसके लिए आज पूरा का पूरा गांव हमें बस स्टैंड तक रवाना करने आया है। पाठशालाओं में सुना ही था शाश्वत तीर्थ है सम्मेद शिखर, मतलब अनादि से अनंत तक, हमेशा से तीर्थंकर वहां से मोक्ष जाते हैं, इतने तीर्थंकर मोक्ष जा चुके हैं, कि वहां की कोई भूमि ऐसी नहीं बची जहां से कोई ...