मेरे जैन भाईयों...समस्या नहीं समाधान देंखे



शिखर जी को लेकर जो हमने जो एकजुटता दिखाई वो वाकई काबिले तारीफ है, हम दुकान छोड़कर अपने तीर्थों के लिए सड़कों पर उतरे सरकार को मीडिया को हमने सोचने पर मजबूर किया, निश्चित तौर पर यह हमारी ताकत का असर है। हम जो चाहते थे, पूरा न सही, कुछ तो हमें मिला और हम इस चिंता से मुक्त हुए कि अब शिखर जी पर्यटन क्षेत्र नहीं बनेगा। इस पूरे प्रकरण को जब आप हम देखते हैं, तो एक तरह से लाभ-हानि दोनों दिखते हैं। लाभ क्या हुआ,यह सामने है। लेकिन इससे हानियां क्या-क्या होंगी इसका अंदाजा शायद हम आप फिलहाल न लगा पाएं।

जब आप एकजुटता दिखाने लगते हैं, तो आपके सामने जो भी हो वो भी एकजुट होने लगता है। क्योंकि वो देखता है कि यदि वो एकजुट नहीं हुए तो वो भी खतरे में पड़ जाएंगे। शिखरजी को लेकर जैन समाज पूरे देश में चर्चा का विषय है। हमारी संख्या कितनी है, हम किसी से छुपा नहीं है। हम, हमारे तीर्थ सुरक्षित तब तक हैं, जब तक वो फोकस के बिंदू नहीं, उनकी नजर आप पर नहीं है। हम आप अभी तक इसलिए बच जाते हैं कि अभी तक वो हमें आपको अपना हिस्सा ही समझते हैं। बाकि एक समुदाय विशेष से उनकी लड़ाई, समुदाय विशेष का डर,फिलहाल हमें बचाए रखती है। सोचिए, यदि विशेष समुदाय की तरह उन्होंने आपका डर दिखाना शुरू कर दिया। भले ही आर्थिक समृद्धि का डर दिखाएं तो क्या हाल होगा।

 मैंने शिखर जी पर सरकार की प्रतिक्रिया के बाद आदिवासियों समेत अन्य लोगों के अंदर पनप रहे आक्रोश को महसूस किया है। कुछ यूट्यूब चैनल्स की रिपोर्टस देखी हैं,कुछ छोटे बड़े अखबारों में खबरें देखी हैं, जिनसे लगता है कि आग सुलग चुकी हैं। आदिवासियों के मन में अब भरा जा रहा है कि यह शिखरजी का पहाड़ उनका है और वह इस पर अधिकार चाहते हैं।यदि वाकई आदिवासी समाज एकजुट हुआ तो आपको क्या लगता है, सरकार आपके साथ खड़ी होगी, बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम वोट बैंक नहीं है। झारखंड तो वैसे भी आदिवासी स्टेट है। मुख्यमंत्री ही वहां के आदिवासी हैं। फिर फैसले किसके हक में होगा। झारखंड से उठी लपटें फिर पूरे देश में फैलेंगीं, हमारे हर तीर्थ पर, हर पर्वत पर वो अपना हक जमाने की कोशिश करेंगे। बताईए कहां-कहां किस किस से हम लड़ेंगे।

 इस पूरे आंदोलन में हमने सोशल मीडिया और अति उतावले युवाओं, हिंसक बातों, चेतावनियों, पार्टियों, नेताओं के बॉयकॉट से जो माहौल खराब करने की कोशिश की है। वह बेहद नुकसानदेह है। शिखर जी, गिरनार जी, पालिताना, द्रोणगिर, नैनागिर वो हर पहाड़ पर पहुंचेगे। कहां-कहां के प्रमाण देते रहेंगे हम आप। और जब न्यायालयों में, प्रशासन में, सत्ताओं में भी वहीं बैठे हैं। कौन सुनेगा हमारी। शायद तब हालात मुश्किल होंगे और हमारे सामने गिरनारजी की तरह कंप्रोमाइज करने के आलावा कोई उपाय नहीं बचेगा। इसलिए अब समय बेहद शांति का है। समन्वय है। समाधान का है। लड़ाई-झगड़े का नहीं।

 सोशल मीडिया में पार्टी, नेताओं को गाली देना बंद कीजिए। हमारा है, हमारा है कहना बंद कीजिए। जब तक हक नहीं जमाओगे, तब तक ही हमारा रहेगा। हक जमाओगे तो कोई और तुरंत हक जमाने आ जाएगा। मैं देख रहा हूं कि शिखरजी के बाद जैन समाज में नेताओं की बाढ़ आ गई है, हर कोई कुछ का कुछ फैलाने में लगा है। कोई शिखरजी चलने का आह्वान कर रहा है तो कोई लड़ने-झगड़ने तैयार है। ऐसे हमारा भला नहीं होगा। हमें बेहद समझदारी से काम लेना है। सोचिए, हजारों सालों से हमारे तीर्थ सुरक्षित कैसे रहे, यवन, मुगल, अंग्रेज कितने आक्रांता आये फिर भी हम सुरक्षित रहे। जानते हैं क्यों, क्योंकि हमने समन्वय और परस्पर संवाद की नीति का पालन किया। समझदारी से समस्याओं को हल किया। इसलिए हर मुश्किल से हम बचे रहे। लेकिन यह सांप्रदायिक काल है, धार्मिक गठजोड़ का काल है। धर्म के नाम पर हर कोई तलवार उठाने खड़ा है। इसलिए आपस में लड़ने से नुकसान हमारा ही होना है।

 हम अंहिसक है तो बातों में व्यवहार में वहीं झलके, आराम से बैठकर जहां-जहा समस्याएं हैं वो सुलझाएं, विरोध करके विरोध को नहीं दबाया जा सकता। विरोध का हल सिर्फ आपसी संवाद है। परस्पर स्नेह है, कोई बैर नहीं, कोई द्वेष नहीं। कोई दिखावा नहीं, अब कोई बिना मतलब का आंदोलन नहीं। यह समय विराम का है, विश्राम का है, समाधान का है। धीरे-धीरे सब नार्मल हो जाएगा। हम यही चाहते हैं कि जितना जल्दी हो सके यह मामला ठंडा हो जाये। यदि जलता रहा तो इसकी आंच दूसरी जगह भी पहुंचेगी फिर आग लगना तय है। वो यही चाहते हैं कि आग लगे, क्योंकि उसमें कई लोग राजनीति रोटियां सेंकेंगे। कईयों को नेता बनने का मौका मिलेगा। खैर जो भी हो नुकसान हमारा होगा। इसलिए अति उग्रता, अति उतावलनापन. बडबोलापन हमारी चिंता को मूर्त रूप दे देगा। सौहार्द बनाए रखिए। बेकार की चीजों को फारवर्ड करने से बचिये। बाकि के साथियों को भी समझाईए। क्योंकि सरकार से लड़ाई तो हम जीत गये, यह लड़ाई वर्गों में, समाजों में, धर्मों में हुई तो कोई नहीं जीतेगा, सब हारेंगे लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान हमारा आपका होगा।

 



बात पर गंभीरता से विचार कीजिए। बार बार विचार कीजिए।

 


 

 

 

 

 

 

 

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