कुछ व्यक्त सा कुछ अव्यक्त सा {दिल के अल्फाज़ शब्दों में बयां कर-4 }
आप को खिचड़ी बनानी आती है, नहीं मतलब आपको फिर राजनीति भी नहीं आती होगी...अब आप सोच रहे है होंगे की में ये क्या कह रहा हूँ .......सोचिये सोचिये में भी यही चाहता हूँ की आप कुछ न कुछ तो जरुर सोचे ......आखिर इसके आलावा हम कर भी क्या सकते है .....हा हा हा खैर छोडिये खिचड़ी की बात करते है ...जिन्दगी का लगभग १ साल खिचड़ी खा कर गुजारा इसलिए वो मुझे बहुत पसंद भी है ...इसलिए मैने खिचड़ी के उपर बहुत चिंतन किया और बहुत सारी बाते सामने आई जिन्हें में जरुर बताऊंगा ......दरअसल यह १ ऐसा पकवान है जिसे चाहे न चाहे खाना ही पड़ता है गरीबी में पेट के लिए और अमीरी में बीमारी के लिए ......भाई बहुत पहुची हुई चीज़ है खिचड़ी ....जब कभी राजनेताओ के पास काम नहीं होता तो खिचड़ी पकानी शुरू हो जाती है ....अभी आजकल महंगाई बढने से खिचड़ी बहुत सस्ती हो गई है यत्र तत्र पकाई जा रही है .........अमीर गरीब सब खिचड़ी बनाने में लगे है कोई ममता बनर्जी टाइप ज्यादा तीखी तो कोई मायावती टाइप थोड़ी सी कम तीखी .....हा कोई कोई उपवास वाली मेरा मतलब बिना मसाले की मनमोहन टाइप खिचड़ी भी बना रहा है पर बना सब रहे है .....खिचड़ी बन...