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Showing posts from September, 2012

कुछ व्यक्त सा कुछ अव्यक्त सा {दिल के अल्फाज़ शब्दों में बयां कर-4 }

आप को खिचड़ी बनानी आती है, नहीं मतलब आपको फिर राजनीति भी नहीं आती होगी...अब आप सोच रहे है होंगे की में ये क्या कह रहा हूँ .......सोचिये सोचिये में भी यही चाहता हूँ की आप कुछ न कुछ तो जरुर सोचे ......आखिर इसके आलावा हम कर भी क्या सकते है .....हा हा हा खैर छोडिये खिचड़ी की बात करते है ...जिन्दगी का लगभग १ साल खिचड़ी खा कर गुजारा इसलिए वो मुझे बहुत पसंद भी है ...इसलिए मैने खिचड़ी के उपर बहुत चिंतन किया  और बहुत सारी बाते सामने आई जिन्हें में जरुर बताऊंगा ......दरअसल यह १ ऐसा पकवान है जिसे चाहे न चाहे खाना ही पड़ता है गरीबी में पेट के लिए और अमीरी में बीमारी के लिए ......भाई बहुत पहुची हुई चीज़ है खिचड़ी ....जब कभी राजनेताओ के पास काम नहीं होता तो खिचड़ी पकानी शुरू हो जाती है ....अभी आजकल महंगाई बढने से खिचड़ी बहुत सस्ती हो गई है यत्र तत्र पकाई जा रही है .........अमीर गरीब सब खिचड़ी बनाने में लगे है कोई ममता बनर्जी टाइप ज्यादा तीखी तो कोई मायावती टाइप थोड़ी सी कम तीखी .....हा कोई कोई उपवास वाली मेरा मतलब बिना मसाले की मनमोहन टाइप खिचड़ी भी बना रहा है पर बना सब रहे है .....खिचड़ी बन...

मैं निराश ........

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वो चुपचाप सा अहसास  वो आस वो विश्वास   वो कोई अपना सा खास  जिसे पाने का  हो आभास  जाने कब वो पल आयेगा  जब सब कुछ सिमट कर  उसमे ही कही खो  जायेगा और जिसे खोजने का मकसद  भी एक दिन पूरा हो जायेगा  वो है कौन  यह सवाल भी  दिल में हलचल बचाएगा  पर क्या आप सोचते है  की ऐसा कोई इस  दुनिया में  हमको ऐसा कोई  मिल पायेगा  शायद नहीं! नहीं! नहीं!  वो आस वो विश्वास  और आभास  यथार्त में तो  सबकुछ है बकवास  क्योंकि  सब जतन करने पर भी  न जाने कब से अब तक  हूँ मैं  निराश मैं  निराश मैं  निराश !!!!!!                             ABHI AVYAKT  

कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त सा .......{दिल का उफान अल्फाजो के साथ }

      कल झमाझम बारिश देख कर दिल गार्डन गार्डन हो गया ......उसके बाद जब शाम को सड़क पर निकले तो पता नहीं क्यों ऐसा लगा की जिन्दगी की सीरत और सुरत भी एम .पी.की सडको की तरह हो गई है .........जहाँ गड्डे ज्यादा है और रास्ते कम ठीक उसी तरह जिस तरह जिन्दगी में उलझने तो बहुत है पर सुलझने या कहे समाधान कम .......ऐसी उबड़ खाबड़ सड़क होने पर भी लोग चले रहे है क्योंकि चलना तो है ही और शायद यही जिन्दगी है ..........सच में जितना पानी असमान से बरस रहा है उतना ही लोगो की आँखों से भी .....उनकी लाचारी मज़बूरी भले ही कुछ बयां n कर पा रही हो या नहीं पर दर्द का सेलाब इतना है की जितना शायद किसी सुनामी या बाड़ के उफान में नहीं होगा.......पर सरकार की फितरत भी बादलो की तरह हो गई है पहले तो पानी बरसता नहीं है और जब कभी बरसता है तो घरो को भी बहा ले जाता है .......और शायद मंहगाई की मार उसी बरसात का पानी है जो सिर्फ और  सिर्फ आंसुओ की नदियो को भरती है ......खैर हमारी पूजाओ से जिस तरह इन्द्र देवता प्रसन्न हो गए है शायद अन्ना हजारे की तपस्या से सरकार का भी दिल भी प्रसन्न जाये और लोकपाल बिल पारि...