कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त सा .......{दिल का उफान अल्फाजो के साथ }

     कल झमाझम बारिश देख कर दिल गार्डन गार्डन हो गया ......उसके बाद जब शाम को सड़क पर निकले तो पता नहीं क्यों ऐसा लगा की जिन्दगी की सीरत और सुरत भी एम .पी.की सडको की तरह हो गई है .........जहाँ गड्डे ज्यादा है और रास्ते कम ठीक उसी तरह जिस तरह जिन्दगी में उलझने तो बहुत है पर सुलझने या कहे समाधान कम .......ऐसी उबड़ खाबड़ सड़क होने पर भी लोग चले रहे है क्योंकि चलना तो है ही और शायद यही जिन्दगी है ..........सच में जितना पानी असमान से बरस रहा है उतना ही लोगो की आँखों से भी .....उनकी लाचारी मज़बूरी भले ही कुछ बयां n कर पा रही हो या नहीं पर दर्द का सेलाब इतना है की जितना शायद किसी सुनामी या बाड़ के उफान में नहीं होगा.......पर सरकार की फितरत भी बादलो की तरह हो गई है पहले तो पानी बरसता नहीं है और जब कभी बरसता है तो घरो को भी बहा ले जाता है .......और शायद मंहगाई की मार उसी बरसात का पानी है जो सिर्फ और 
सिर्फ आंसुओ की नदियो को भरती है ......खैर हमारी पूजाओ से जिस तरह इन्द्र देवता प्रसन्न हो गए है शायद अन्ना हजारे की तपस्या से सरकार का भी दिल भी प्रसन्न जाये और लोकपाल बिल पारित हो जाये और जिस आस में देश की जनता बैठी है वह उसे मिल जाये ......आप लोग भी दुआए कीजिये अन्ना हजारे जी के लिए नहीं उनके उपवास के लिए भी नहीं और लोकपाल बिल और बरसात के होने या थमने के लिए नहीं बस दुआ करनी है तो सरकार को सदबुद्धि देने के लिए .......क्योंकि सरकार को अक्ल आ गई तो देश की शक्ल तो अपने आप ही बदल जानी है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जय हिंद ,जय भारत


     
कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त सा .......{दिल का उफान अल्फाजो के साथ-2  }
   
                
कल शाम को ऑफिस से घर जाने के बाद थकान मिटाने के लिए सोचा क्यों न एक कप चाय पी ली जाये........पर पता नहीं था 1 कप चाय के लिए अन्ना के 1 लोकपाल बिल जितनी मेहनत करनी पड़ेगी और आखिर मिलेगा कुछ नहीं ......दरअसल हुआ यूँ की जैसे ही हमने रूम में चाय पीने की मंसा बताई तो वैसे तैयार तो सभी हो गये पर सवाल खड़ा हुआ की आखिर दूध कौन लाये ऐसा लगा जैसे कोई कह रहा हो सरकार को जन लोकपाल बिल पारित करने के लिए ज्ञापन देने कौन जाये ......जैसे तेसे दूध आया और आते ही बहस शुरू हो गई की आखिर चाय बनाये कौन और वो भी बहुत जोर शोर से और यदि बनाये तो क्यों बनाये ?ऐसा लगा जैसे सभी राजनीतिक पार्टिया साथ बैठी हो और कह रही हो की भाई आखिर हम क्यों लोकपाल बिल को सपोर्ट करे .....और भाई चाय बनाने की चर्चा में इतना वक्त बीत गया की लगा अब तो अन्ना की तरह चाय के लिए अनसन ही करना पड़ेगा क्योकि न तो कोई चाय बनाने के लिए तैय
ार था और ना उसके बनाने में सहायता करने के लिए ......और अब चाय पर लोकपाल की तरह जंग शुरू हो गई और उसकी खबर मुहल्ले वालो तक पहुच गई और लगभग हर न्यूज़ चेनल की ब्रकिंग न्यूज़ बन गई .......अब कुछ सुधि लोग सरकार की तरफ से हमारे पास आये की जो पहले से बनी बनाई चाय है उसे ले आते है उसे ही थोडा अदरक डाल के पी लेना ....भला सरकारी लोकपाल कहा का बुरा है ....तभी आवाज़ आई की नहीं हम बाहर की चाय नहीं पियेंगे हमे तो अभी नई चाय ही चाहिए और तभी सरकार ने सोचा ये तो अड़ियल स्वाभाव के लोग है छोडो इन्हें .......सब ख़त्म हो गया पर अभी भी चाय कैसे बने यह मुद्दा बना हुआ था .........तभी चाय पीने वालों ने सोचा चलो हम सब मिलकर ही कुछ करते है और जैसे ही चाय बनाने की कोशिश की गई तभी दूध फट गया और दूध का कण कण अलग हो गया .....अन्ना की टीम की तरह .....पर अभी भी चाय की प्यास बरकरार है ...और हम अभी भी फटे दूध से चाय बनाने के लिए प्रयासरत है ...........अब फटे दूध से चाय कैसे बनेगी यह तो पता नहीं पर बस डर इस बात का है की और दूसरों [सरकार }की तरह हम भी बाहर की चाय ना पीने लग जाये ....और अभी तक की हमारी मेहनत और विश्वास हमारा ही गला काटने ना लगे जाये .....और तभी मेरी थकान ने मुझे सुला दिया पर चाय नसीब नहीं हुई !!!!!!!!!!!
      
कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त सा .......{दिल का उफान अल्फाजो के साथ-3 }


        
कल टीवी देख रहा था तभी मेरे रूममेट तन्मय जी रात में ऑफिस से आये और हमेशा की तरह दिनभर की खबरे सुनाने लगे .......और मुझे भी आदत हो गई है उनसे खबरे सुनने की....पर विगत कुछ दिनों की खबरों में २ खबरे लगभग सामान होती थी ....एक तो किसी नेता के बेतुके बयान की और दूसरी किसी आन्दोलन की ....सोते टाइम ख्याल आया इस देश में भी रामलीला मैदान और दशहरा मैदान की तरह एक अनशन मैदान भी होना चाहिए ....जहाँ अनसन करने 
की अनुमति न लेना पड़े न ही भीड़ को बुलाना पड़े ठीक दशहरा और रामलीला की तरह .....और आज वैसे भी अनसन या आन्दोलन का कोई खास फर्क तो पड़ता नहीं है .......लोग रामलीला देखने बहुत भीड़ लगा कर आते है और राम की जय जय कार और रावण को गली दे कर चले जाते है ....पर न तो कोई आज तक उस रामलीला को देख कर राम बना और न ही रावन की बुराई सुनकर कोई कलयुगी रावण सुधरा .....वैसे ही जितने भी आन्दोलन हुए उससे कुछ नहीं बदला न ही बदलेगा ......क्योंकि हम सब बदलना चाहते तो है पर खुद नहीं देश या दुनिया को ...और खुद बदले बिना देश और दुनिया कभी नहीं बदलती क्योंकि वो खुद से अलग थोड़ी ही है .....रावण दहन की तह आन्दोलन भी हो गया है जिस तरह इतनी बार दहन करने पर जिस तरह रावण आज तक नहीं मरा और आज भी हम उसे जला रहे है उसी तरह यह आन्दोलन हम आज भी कर रहे है पर कुछ नहीं बदला और न ही बदलेगा ....हमे लगता है अन्ना और रामदेव कलयुगी सरकार से हमे निजात दिलाने के लिए अवतार लेकर आये है ......और यही भ्रम इस भीड़ का विश्वास है जो उसे यह सब करने पर मजबूर कर रहा है ....खैर कीजिये आन्दोलन वो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है चीखना चिल्लाना तो हमारी आदत है .....सच में सरकार भी हसती होगी और धन्यवाद देती होगी गाँधी जी को बहुत अच्छा तरीका बताकर चले गये ....भूखे रहो और विरोध करो ....पर सच में बदलेगा कुछ नहीं क्योंकि अब गाँधी जी के सिद्धांत आदर्श है पर नव यथार्थ तो नेताओ की गर्दन ही है ....अब राम लीलाए करना बंद कीजिये ....जेल भरना भी बंद कीजिये सब नोटंकी लगता है ......ऐसा लगता है की हम रंगमच की कटपुतली है कभी अन्ना के साथ तो कभी रामदेव .....और अब तो बालकृष्ण और केजरीवाल के साथ भी ......में हंगामा या आवाज़ उठाने के लिए मना नहीं करता न ही इनका विरोध कर रहा हूँ .....अब हंगामा करने का नहीं हालात बदलने का वक्त है ....क्योंकि सरकार को तो रोज के खाने की तरह आन्दोलनों की भी आदत हो गई है ....इसलिए कुछ नहीं बदलता .....हम खुद यदि बदल गये तो कैसे कोई भ्रष्टाचारी कालाबाजारी बलात्कारी संसद में घुस पायेगा ....यह कांडा, राजा ,मदेरणा सब कही बिचक कर बैठे होंगे ....पर अब जरूरत कृष्णलीला और रामलीला की नहीं महाभारत की है वो भी खुद से ....अब भीड़ का हिस्सा नहीं कारण बनना है ....तब सरकार तो ठीक है खुद परमेश्वर आकर देश की दिशा और दशा बदलंगे |||||||||


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