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Showing posts from November, 2012

प्रेम- प्रेमालाप, प्रदर्शन, पश्चाताप या फिर पागलपन

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ओशो का एक वाक्य है "वासना का नाम प्रेम नहीं पर इसका मतलब यह नही है की वासना को दबाकर  प्रेम को प्राप्त किया जा सकता है ,प्रेम तो उसका नाम है जिसके होते ही वासना की  भावना क्षीण होती जाती है और और उसका अस्तित्व ख़त्म होता जाता है ,सच्चे प्रेम में तो वासना का कही स्थान ही नहीं है जैसे ही प्रेम का सूर्य उदित होता है वासना का अँधेरा अपने आप कही छुप जाता है ,असल में यही वो निर्मलता  है जिसमे  मन का मिलन  होता है या कहे इश्वर का मिलन होता और यही प्रेम आदर्श है | पर जैसे जैसे वक्त ने करवटें बदली प्रेम की परिभाषा  भी अपने आप बदल गई  ....प्रेम बस शब्द रह गया उसके मायने उसका मतलब और अर्थ सबकुछ बदल गया और उसका स्थान ले लिया वासना ने  प्रदर्शन ने या  पागलपन ने  आज  की ज्यादा समझदार  युवा पीडी से प्रेम का मतलब पूछा जाये तो तो उनके चेहरे राक्षसी हसी आ जाती है...खैर गलती उनकी नहीं है ,भागमभाग भरी जिन्दगी में जब इन्सान मशीन बन जाता है तो काम भी मशीनों जैसे ही करता है .सब संवेदनाएं, सचेतनाएं तो उसकी कभी की काल  ...

परेशान बहुत हूँ ..............

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हा खुद से भागना चाहता हूँ बहुत दूर कही छिप जाना चाहता  हूँ हा डरता हूँ खुद से लड़ता हूँ खुद से खुद के सपनो से खुद की बातो से अपनों और  अपनेपन के अहसास से  कही दूर बहुत  दूर खो जाना चाहता हूँ अपना साया भी  डराता  है अब मुझेको   अब सारे जहां का साथ भी कचोटता है मुझको ,खुद से ही अब भागता हूँ अब इसी तरह हालत हो गये है मेरे अपने हालत का पता नहीं है मुझको मैंने लोगो से सुना है  की मैं आजकल परेशान बहुत   हूँ .......                     

तेरा ही फल तुझको

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                                                                   आखिर क्यों नहीं समझते                                   मेरी मज़बूरी ,क्यों लांघते हो मर्यादाएं                                   मैं भी तो चाहती हूँ की तुम खुश रहो                                   भले...