तेरा ही फल तुझको
आखिर क्यों नहीं समझते
मेरी मज़बूरी ,क्यों लांघते हो मर्यादाएं
मैं भी तो चाहती हूँ की तुम खुश रहो
भले मेरा पेट काटो मुझे जलाओ
फिर भी मेरे कत्ले आम की हद होती है
में ने हमेशा तुम्हे अपनी संतान समझा
तुमने भी अगर माँ समझा होता तो
कभी इस सेंडी,सुनामी ,नीलम जैसी आपदाओ
का सामना तुझे सामना तुझे नहीं करना पड़ता
मुझे माफ़ करना सब तेरा ही कसूर है
जो तूने किया है उसका फल तो भुगतना ही पड़ेगा....
मेरी मज़बूरी ,क्यों लांघते हो मर्यादाएं
मैं भी तो चाहती हूँ की तुम खुश रहो
भले मेरा पेट काटो मुझे जलाओ
फिर भी मेरे कत्ले आम की हद होती है
में ने हमेशा तुम्हे अपनी संतान समझा
तुमने भी अगर माँ समझा होता तो
कभी इस सेंडी,सुनामी ,नीलम जैसी आपदाओ
का सामना तुझे सामना तुझे नहीं करना पड़ता
मुझे माफ़ करना सब तेरा ही कसूर है
जो तूने किया है उसका फल तो भुगतना ही पड़ेगा....
सुन्दर ,.............
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