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Showing posts from January, 2014

आम आदमी "खास"हूँ मैं ???????

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आम आदमी" का इन दिनों बड़ा फैशन जनाब हर खास आम बनने को आतुर है जनाब तथाकथित सादगी का चोला पहना है सबने खास बनने की कशमकस सबके दिल में है जनाब सफेद टोपी सारे दाग मिटा देती है ऐसा कुछ भ्रम आजकल बड़ा फैला है जनाब जुबां पर खास लोगों के आम आदमी ही तो है आम आदमी तो बस इतने में ही खुश है जना फिजूल की बात है उम्मीदें औऱ बदलाब की  आम आदमी तो तब, अब, सब से महरूम आज भी है जनाब..                                                                               " अव्यक्त"

निर्णय..नतीजे..आनंद..अंतर्दंद..और हम!!!!!!!!!!!!!!!!!

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Add caption किसी ने कहा हैं इंसान अपने कामों से नहीं निर्णयों से महान होता है।इसी से जुड़ा हुआ एक और वाक्य है,निर्णय कभी गलत नहीं होते नतीजे गलत निकल     आते हैं।हम सभी के मन में हमेशा जब     कभी दो धाराएं होती हैं।दो चीजों के बारे में हम सोच रहे होते हैं तब बड़ा मुश्किल होता है, कि आखिर उन दो सवालों में से किसे चुना जाए,क्योंकि पहले के सही होने से ज्यादा दूसरे के गलत होने का भय बना रहता है।और वो भय इतना भयानक होते है कि कभी कभी वो पश्चाताप का लाइलाज रोग बन जाता है,जो कभी नहीं मिटता।हमारा एक सही या गलत निर्णय हमारी जिंदगी बदल देता है,या कहें जिंदगी की इबारत लिख देता है इसलिए निर्णय लेने की क्षमता आपकी तरक्की और सफलता को दर्शाती है। हम से कई लोग हैं,जो हमेशा किसी ना किसी संकल्प विकल्प में उलझे रहते है कि क्या सामने खड़े होने वाले सवाल का क्या निर्णय लें।जैसे कोई छात्र है वो बारहवीं पास करने के बाद सोचता है कि वो अब क्या करें इंजीनियरिंग करे या डॉक्टर बने या कुछ और इसी तरह नौकरी करने वाले यहां तक की घर में खाना बनाने वाली पत्नी भी कई मर्तबा सोचती है कि आज उ...

स्मारक इंडियंस “यादों का कारवां”पार्ट- 11

  (स्मारक में नव वर्ष पर बनने वाली खीर विशेषांक) जिंदगी के लगभग हम में से सभी लोगों ने 2 दशक देख लिए हैं,और आज हम उस उम्र की दहलीज पर हैं,जब समाज हमें समझदारी का लिबास पहना देती है।मतलब आप अब बिना वजह मुस्कुरा नही सकते,हर समय माथे पर चिंता की लकीरे दिखना जरूरी है,क्योंकि अब हम समझदार जो हो गए हैं।लेकिन इस बिना मतलब की समझदारी से अपनी वही नासमझी की दुनिया अच्छी थी... तो फिर क्टों ना अब उसी दुनिया में वापिस लौट चलें यादों की नाव लेकर,तो देर मत कीजिए औऱ सवार होइए इस यात्रा में,इस नव वर्ष एक बार फिर यात्रा शुरू करते हैँ... अरे अतुल...अरे ओ वेवड़े अतुल तू भी हमारी क्लास का है चलना ना चलते है यादों के इस कारवां में...तो भाई लोगों 31 दिसंबर की शाम..पूरी क्लास शांति जी के प्रवचन में बैठी हुई है..सौरभ मौ को छोड़कर,वो इसलिए क्योकि सौरभ मौ  कुछ ज्यादा ही भूखा रहता है ना...अरे यार समझे नहीं आज 31 दिसबंर है..मतलब राजस्थान यूनिवर्सिटी के बाहर दूध मिलने वाला है..क्या यार सजल तुम भी ना कमाल करते हो...बातें मत करो प्रवचन सुनने दो..विवेक तू बड़ा पंडित हो गया प्रवचन सुनने के लिए...अरे यार ...

स्मारक इंडियंस “यादों का कारवां” पार्ट-10

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(इसे पढ़ने से पहले कृप्या भाग-1-2-3-4-5-6-7-8-9 जरूर पढ़े)                               लो जी आखिरकार सबके परिचय की श्रृंखला भी खत्म होने की कगार पर पहुंच गई...इस यादों के सफरनामें की ही तरह   हमारे पांच साल बीते होंगे..पता ही नहीं चला..अच्छा वक्त कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता..फिर वो रियल हो या वर्चुयल ,, इतनी तेजी    से गुजरता है कि पूछिए मत ,, खैर वक्त अपना काम कर रहा है और हम अपना..एक दूसरे में जरा भी हस्तक्षेप नहीं कर रहे है..खैर परिचय के इस अंतिम पड़ाव को हम आगे बढ़ाते हैं यदि कोई वर्तमान दोस्त छूट गया हो तो सूचिक करे उसे भी सफर में साथ ले लिया जाएगा.... तो फिर चलते हैं यादों की उस मनमोहक और दिल में गुदगुदी मचाने वाली दुनिया में , जब कभी इस दुनिया की गफलत से तंग आ जाओ तो इस दुनिया की सैर पर निकल पड़ना बड़ा सूकून मिलेगा... अभिषेक जोगी   - सबसे मुश्किल काम है भाई तेरे बारे में लिखना। कि-बोर्ड से हाथ बार बार फिसल जा रहे हैं कि क्या लिखूं औऱ कितना लिखूं , क्योंकि यदि सबसे ज्यादा...