स्मारक इंडियंस “यादों का कारवां”पार्ट- 11
(स्मारक में नव वर्ष
पर बनने वाली खीर विशेषांक)
जिंदगी के लगभग हम
में से सभी लोगों ने 2 दशक देख लिए हैं,और आज हम उस उम्र की दहलीज पर हैं,जब समाज
हमें समझदारी का लिबास पहना देती है।मतलब आप अब बिना वजह मुस्कुरा नही सकते,हर समय
माथे पर चिंता की लकीरे दिखना जरूरी है,क्योंकि अब हम समझदार जो हो गए हैं।लेकिन
इस बिना मतलब की समझदारी से अपनी वही नासमझी की दुनिया अच्छी थी... तो फिर क्टों
ना अब उसी दुनिया में वापिस लौट चलें यादों की नाव लेकर,तो देर मत कीजिए औऱ सवार
होइए इस यात्रा में,इस नव वर्ष एक बार फिर यात्रा शुरू करते हैँ...
अरे अतुल...अरे ओ
वेवड़े अतुल तू भी हमारी क्लास का है चलना ना चलते है यादों के इस कारवां में...तो
भाई लोगों 31 दिसंबर की शाम..पूरी क्लास शांति जी के प्रवचन में बैठी हुई है..सौरभ
मौ को छोड़कर,वो इसलिए क्योकि सौरभ मौ कुछ
ज्यादा ही भूखा रहता है ना...अरे यार समझे नहीं आज 31 दिसबंर है..मतलब राजस्थान
यूनिवर्सिटी के बाहर दूध मिलने वाला है..क्या यार सजल तुम भी ना कमाल करते हो...बातें
मत करो प्रवचन सुनने दो..विवेक तू बड़ा पंडित हो गया प्रवचन सुनने के लिए...अरे
यार जे शांति जी और दम खाय हैं..अबें तक प्रवचन नई छोड़े..वो दूध खतम भव जात है..राहुल
चिता ने कर 10 बजे लो मिलत है...करन तो जैसे पूरी तहकीकात करके आया हो सब पता था उसे
दूध कब कितना मिलना है...
इन आदित्य जी खो और
ज्यादा जिनवानी स्तूति करने पड़त है..दीपेश आदित्य जी कोस ही रहा था ..तब तक अपन
भी बोल पड़े इनखो ना बोलवे की भोरी
है..क्या वे कपिल जिनवाणी स्तूति तो हो जाने दे यही हरामखोरी शुरू कर दी..जोगी
ज्यादा ज्ञान मत दे काम कर अपना..ये वेवड़े जयदीप के शब्द हुआ करते थे..तभी संतोष
मुंह से श..श..श..श..की आवाज निकाल कर सबको चुप कराया करता था...क्यों वे संतोष
मुंह से पादत है का तू जो श.श..श. कर रहा है..दीपेश तो हमेशा पता नहीं कहा कहा से
पंच लाया कता था..हर बात में हसना जरूरी था..खैर हसना छोड़ो आगे बढ़ते हैं..
जैसे ही प्रवचन खत्म
ऐसी दौड़ लगाई जाती थी की बस जैसे पहले कभी हमने दूध ही ना पीया हो पर यार वो फ्री
वाला दौड़ लगाकर दूध पीने का जो मजा था वो अब किसी सीसीडी में 150 रूपए की क़ॉफी
पीने में नहीं आता। यार उन दिनों की बात ही कुछ निराली थी..औऱ राहुल दीपेश तो 5-7
ग्लास वैसे ही पी जाया करते थे,सौरभ मौ का नाम इसलिए नहीं लिया क्यंकि वो इतने
ग्लास पीता था कि उसे ही होश नहीं रहा करता था।हां और एक बात कहीं ना दिखने वाले
हमारे अतुल जी वहां जरूर मौजूद होते थे।जहां कुछ फ्री में मिल रहा हो,फिर चाहे
फ्री में पुलिस के डंडे खाकर आईपीएल के मैच एसएमएस ग्राउंड में देखने जाना या फिर
नसियां जी में खाना खाने..आखिरकार दूध पीके हम वापिस लौट आते थे..सुबह भोजनालय में
बनने वाली खीर खाने के इंतजार में..यार खीर का भी गडब किस्सा हुआ करता था..राहुल
जिस दिन खीर बननी होती थी .उसके एक दिन पहले खाना ही नहीं खाता था..जिससे ज्यादा
से ज्यादा खीर खाई जा सके..सौरभ मौ, निशंक के भी यही हाल थे...
जैसे ही खीर आती
थी..कटोरी के साथ ग्लास की भी जुगाड़ करके रख ली जाती थी.जिससे खीर का ज्यादा से
ज्यादा लाभ लिया जा सके,,,पर यार जो मजा
उस लड़ झगड़ कर खाने वाली खीर में आता था वो मजा अब किसी फाइव स्टार होटल में 1000
रूपए का खाना खाने में नहीं आता..चलो कहां तुम भी बातों मे उलझ जात हो...अभिषेक
मड़देवरा भी ना सनकी है पूरो पता नहीं कहां की कहां बातें ले जात..और आता भी क्या
इस अभिषेक को..जयदीप ज्यादा मुंह मत चला..समझा..क्या यार लड़ने लग जाओगे क्या गोरे
की आवाज आती है और सब फिर खीर खाने में मशगूल हो जाते हैं....
यार अब तो सोने के
मन कर रहा है..हां यार लेकिन सोने से पहले
सजल के रुम में मीटिंग हुआ करती थी औऱ हिसाब लगाया जाता था कि किसने कितनी खीर खाई
है..बेचारा फिर सौरभ मौ मरता था...काय ठाड़े उते काय ठाड़े अंदर आ आ जओ..दीपक को
बुलाने के लिए दीपेश के ही ज्यादातर यही शब्द हुआ करते थे...पर दीपक कभी नहीं आया
क्योंकि वो जानता था..जहां सजल राहुल औऱ दीपेश होंगे वहां अपना चीरहरण करवाने
क्यों जाएं..
और इस तरह स्मारक की
खीर की महिमा हुआ करती थी..और हां कुछ लोगों का तो सुबह की खीर से पेट नहीं भरता
था तो शाम को भी गोपाल की जान खा खाकर बची हुई वो गाड़ी खीर भी पी जाया करते थे..
भाई लोगो खीर का
स्वाद के बाद जब उसका साइड इफेक्ट होता था तो क्लास में बैठना मुश्किल हो जाता
था..और जो राहुल,दीपेश के बगल में बैठ गया वो तो समझो गया काम से, ये तो कुछ नहीं
चैतन्यधाम की चार की चारों लेट्रिंग उस समय 24 घंटे फुल ही रहती थी..जो साइड में
ओवर फिलो खराब लेट्रिंग थी उसे भी नहीं छोड़ते थे भाई लोग..
बस यार जितना लिखो
बस लिखता जाता है..इतना कुछ है याद करने के लिए की पूछो मत..पर हर बात हाथों को
रोक लेता हूँ..कि बस यार..बहुत हो गया..अगले पार्ट में मिल लेना ..अभी सुतेश जी की
क्लास है ..उसमें जाना है..फिर क्लास के बाद बातें करते हैं..तो फिर आगे की कहानी
अगले पार्ट में...
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