स्मारक इंडियंस “यादों का कारवां” पार्ट-10
(इसे पढ़ने से पहले कृप्या भाग-1-2-3-4-5-6-7-8-9 जरूर पढ़े)
लो जी
आखिरकार सबके परिचय की श्रृंखला भी खत्म होने की कगार पर पहुंच गई...इस यादों के
सफरनामें की ही तरह हमारे
पांच साल बीते होंगे..पता ही नहीं चला..अच्छा वक्त कब बीत जाता है पता ही नहीं
चलता..फिर वो रियल हो या वर्चुयल,,इतनी तेजी से गुजरता है कि पूछिए मत,,खैर वक्त अपना काम कर रहा
है और हम अपना..एक दूसरे में जरा भी हस्तक्षेप नहीं कर रहे है..खैर परिचय के इस अंतिम
पड़ाव को हम आगे बढ़ाते हैं यदि कोई वर्तमान दोस्त छूट गया हो तो सूचिक करे उसे भी
सफर में साथ ले लिया जाएगा....
तो
फिर चलते हैं यादों की उस मनमोहक और दिल में गुदगुदी मचाने वाली दुनिया में,जब कभी इस दुनिया की गफलत से तंग
आ जाओ तो इस दुनिया की सैर पर निकल पड़ना बड़ा सूकून मिलेगा...
अभिषेक
जोगी -
सबसे मुश्किल काम है भाई तेरे बारे में लिखना। कि-बोर्ड से हाथ बार बार फिसल जा
रहे हैं कि क्या लिखूं औऱ कितना लिखूं,क्योंकि यदि सबसे
ज्यादा मुझे अपनी लाइफ में प्रभावित किया है या
आज भी कोई कर रहा है तो भाई वो तू ही है और शायद मेरे शब्दों में इतनी हिम्मत नहीं
है कि वो तेरे बारे में लिख पाएं ..फिर भी कोशिश करता हूँ..महाराष्ट्र के नासिक से
आया हुआ एक छोटा सा लड़का..पहली बार गोष्ठी में सुना था भाई को ऐसा बोला कि अच्छे
-अच्छे सीनियर्स उस दिन सोच रहे होंगे की यार मैं क्यों इसके जैसा नहीं बोल पाता,,,उसी दिन भाई ने बता दिया था कि भाई क्या चीज है और हमने भी भाई से
उम्मीदें कर ली थी,वक्तृत्व की सारी जिम्मेदारी भाई के ऊपर
होगी पर पता नहीं क्यों भाई की प्रतिभा में निखार की जगह ह्रास दिखाई दिया।उसका
कारण मुझे आज भी पता नहीं था,शायद उम्र से पहले आई हुई
उदासीनता इसका कारण हो सकती है...प्रतिभाओं की कहीं से कहीं तक कोई कमी नहीं थी पर
प्रतिभाओं का प्रयोग ना के बराबर ही किया..हां ये बात अलग ही कि अंदर में दृढ़ता
इतनी बड़ती गई कि आज की बात करें तो सबसे ज्यादा किसी की श्रद्धा दृढ़ होगी तो वो
अभिषेक भाई है..मेरा हमेशा से साथी..बहुत अच्छा दोस्त..जिसके कारण हमने चाहे गौरव
टावर के पास, बने अणु विभा में और भी कई वाद विवाद
प्रतियोगिता में पुरस्कार जीते..वो भी जोगी की बदोलत क्योंकि भाई की तर्क शक्ति इतनी तगड़ी थी कि चाणक्य को भी फेल कर दे,और भाई की ही रणनीति के कारण हम स्मारक कप जीत पाए औऱ जो हमारे यादों के
सफरनामें का नामकरण हो पाया...क्या रणनीति बनाई थी भाई ने..बाद में पूरे
सांस्कृतिक कार्यक्रम का काम भी खुद ही सम्हाला औऱ आखिरकार सब में सफल भी हुआ।वैसे
भी भाई जो भी काम अपने हाथ में लेता था उसमें सफल जरूर होता था....सच पूछो तो
क्लास में सबसे बढ़ा यदि किसी का दिल था वो अभिषेक का ही था,,,जिसमें पूरी क्लास के लिए जगह थी..उधम मस्ती भी इतनी की पूछों मत,औऱ इकदम बिंदास दुनिया चाहे इधर से उधर आ जाए पर भाई क चेहरे पर सिकन तक
नहीं आया करती थी। इसलिए जब कभी 9-12 का शो देखने जाया करते थे तो भाई ही
हौसलाफजाई किया करता था कि चलना यार जो होगा देख लेंगे..और भाई की इसी निडरता के
चलते स्मारक से गोल मारकर जवाहर कला केन्द्र में महफिले जमाई जाती थी...इतना ही
नहीं जब कभी कोई पार्टी करनी हो बस भाई से बोल दो फिर वो चाहे प्रवीण जी के घर भेल
पार्टी हो या भोजनालय से रोटियां ला कर पवित्र भोजनालय में होने वाली पार्टी सबमें
जोगी तैयार रहा करते थे औऱ हां जब कभी नेता वाले काम में आंगे आने की नौबत आती तो
उसमें भी जनाब सबसे आगे खड़े होते थे...बड़े गजब निराले हुआ करते थे अभिषेक भाई । भाई
के साथ कुछ परेशानी थी तो वो थी हद से ज्यादा गंभीरता जिसके चलते बहुत बार हम
चीजों को उतना इंजाय नहीं कर पाते ते जितना हमें करना चाहिए। भाई का ज्ञान भी इक
दम शार्प हर चीज का इकदम सटीक उत्तर हुआ करता था। फाइनल ईयर में ही भाई के साथ कुछ ज्यादा नजदीकियां बढ़ी थी, जिसके
चलते भाई के साथ उतना टाइम नहीं गुजार पाया जितना गुजार सकता था।पर भाई आज दिल के
बहुत करीब है और भाई को हम दिल से प्यार करते
हैं..वर्तमान में भाई सबसे गजब काम कर रहा है जिसे शायद ही हम मैं से कोई कर रहा
हो...क्योंकि हमने तो सिर्फ तत्वप्रचार और तत्वविचार करने का संकल्प लिया था,
जिसे बहुत से लोग या तो भूल गए हैं य़ा फिर मेरी तरह टाइम ना होने का
बहाना करके नहीं कर रहे हैं.....पर भाई ने उसी संकल्प को जिंदगी बनाया है और हमेशा
तत्वज्ञान में ही रत है औऱ समय समय पर हम लोगों
का मार्गदर्शन भी करता रहता है...वैसे भाई का लक्ष्य एक अच्छा विजनिशमेन बनना है
जिसे भाई ने शुरू तो कर दिया है और जल्द ही भाई आप लोगों के सामने एक सफल बिजनिशमेन के रूप में सामने होगा...वैसे भाई का जो
जीवन हमारे सामने है वो हमें हमेशा प्रेरित करता हैं औऱ धर्म से जुड़े रहने के लिए
प्रेरणा देता है..भाई हमें गर्व है तुझ पर की कभी हम लोग मार्ग से भटकेंगे तो तू
हमें सही मार्ग दिखा देगा.......
अभिषेक
जैन - वैसे तो आप खुद ही अपने सबसे अच्छे आलोचक होते
हैं और अपने बारे में सच लिख सकते हैं...पर मुझे सौरभ भाई खड़ेरी ने अपने बारे में
लिखने के लिए मना किया है..क्योंकि उसे डर है कि मैं अपना बारे में इतना कुछ लिख
दूंगा जितना नहीं लिखना चाहिए..इसलिए आप लोगों से गुजारिश है कि यदि भाई का ये काम
पसंद आया हो तो..मेरे बारे में 5-10 लाइन में लिखकर मुझे जरूर भेज दें...जिसे में
आपके विचार समझ कर डिक्टों यहां लिख दूंगा....आप के विचार के इंतजार में मेरा
अधूरा परिचय........
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आपकी टिप्पणियां मेरे लेखन के लिए ऑक्सीजन हैं...कृप्या इन्हें मुझसे दूर न रखें....