निर्णय..नतीजे..आनंद..अंतर्दंद..और हम!!!!!!!!!!!!!!!!!

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किसी ने कहा हैं इंसान अपने कामों से नहीं निर्णयों से महान होता है।इसी से जुड़ा हुआ एक और वाक्य है,निर्णय कभी गलत नहीं होते नतीजे गलत निकल  आते हैं।हम सभी के मन में हमेशा जब  कभी दो धाराएं होती हैं।दो चीजों के बारे में हम सोच रहे होते हैं तब बड़ा मुश्किल होता है, कि आखिर उन दो सवालों में से किसे चुना जाए,क्योंकि पहले के सही होने से ज्यादा दूसरे के गलत होने का भय बना रहता है।और वो भय इतना भयानक होते है कि कभी कभी वो पश्चाताप का लाइलाज रोग बन जाता है,जो कभी नहीं मिटता।हमारा एक सही या गलत निर्णय हमारी जिंदगी बदल देता है,या कहें जिंदगी की इबारत लिख देता है इसलिए निर्णय लेने की क्षमता आपकी तरक्की और सफलता को दर्शाती है।

हम से कई लोग हैं,जो हमेशा किसी ना किसी संकल्प विकल्प में उलझे रहते है कि क्या सामने खड़े होने वाले सवाल का क्या निर्णय लें।जैसे कोई छात्र है वो बारहवीं पास करने के बाद सोचता है कि वो अब क्या करें इंजीनियरिंग करे या डॉक्टर बने या कुछ और इसी तरह नौकरी करने वाले यहां तक की घर में खाना बनाने वाली पत्नी भी कई मर्तबा सोचती है कि आज उसे खाने में क्या बनाना चाहिए।और ये जो क्या शब्द दिल में हलचल बनाता है वो आपको ताउम्र परेशान करता है,चाहे आप सही निर्णय ही क्यों ना ले क्योंकि जिसे आपने  छोड़ा है वो आपको इससे बेहतर लगता है।

मैंने अपनी जिंदगी लगभग तमाम लोगों को इस दौर से गुजरते हुए देखा है मैं खुद कई बार इस तरह के अंतर्द्वद से गुजरा हूँ या गुजरता रहता हुँ।पर कभी सही समाधान नहीं ले पाता और किस्मत पर सब छोड़कर आगे बढ़ जाता हूँ,लेकिन एक बात  साफ है निर्णय को किस्मत पर छोड़ने वालों को सिर्फ उतना ही नसीब होता है जितना निर्णय लेने वाले छोड़ देते हैं,इसलिए सवालों को किस्मत पर छोड़ना तो समाधान नहीं है,दूसरा समाधान ये हो सकता है कि हम किसी अपने से पर सलाह मशबिरा करें,जैसा की अधिकतर लोग  करते हैं ,लेकिन उसमें भी एक समस्या है कि,जो भी व्यक्ति आपको निर्णय तक पहुँचा रहा है वह कहीं ना  कहीं अपनी खुद की विचारधार या पूर्वाग्रह से ग्रसित है इसलिए वो निर्णय उसके लिए तो सही हो सकता है पर आपके लिए नहीं ऐसे में लवाल ये उठता है कि आखिर फिर इस अंतर्द्वंद से बाहर निकलने का समाधान क्या है।क्योंकि जक दिल में अंतर्द्वंद है तब तक आपको आनंद नहीं मिल सकता,क्योंकि दोनों एकदूसरे के परस्पर विरोधी हैं।

सवाल अभी भी जस का  तस बना हुआ है कि आखिर फिर निर्णय कैसे लें या दिल में उठने वाले विकल्पों का समाधान कैसे करें।अब यहां दो बातें हो सकती हैं पहली जो रतन टाटा ने अपने रिटायर्टमेंट के समय कही थी कि ऐसा नहीं है कि मैंने जीवन में गलत निर्णय नहीं लिए,कई बार लिए हैं।पर मैंने अपने गलत निर्णयों को भी मेहनत लगन से सही साबित किया। मतलब यदि हम कभी गलत निर्णय ले भी लेते हैं तो उसे सही किया जाता है।लेकिन जरूरत है खुद पर विश्वास और धैर्य की क्योंकि यही दो चीजें आपके गलत निर्णयों को सही साबित करने के लिए मददगार साबित हो सकता है।

लेकिन ये समाधान भी नाकाखी है,इसलिए शायद जब कभी कोई निर्णय लें तो जरा विचार करें कि जो आप निर्णय लेने जा रहे हैं उसके नजीते क्या हो सकते हैं और जो छोड़ने जा रहे हैं वो आपके लिए कितना हानिकारक हो  सकता है,किसी भी प्रकार की जल्दबाजी हमे नहीं करनी चाहिए।दरअसल सच बात तो यहीं है हमारा कोई निर्णय गलत नहीं होता सब सही होते है,पर अपने आप से जब भरोसा उठने लगता है तो हमारे लिए हुए निर्णय  हमें गलत लगने लगते हैं पर यदि हम खुद के भरोसे पर कायम रखे तो कभी भी वो अंतर्द्वंद की स्थिति हमारे सामने नहीं आ सकती,हमारे पास होगा सिर्फ संकल्प विकल्प द्वंद अंतर्द्वंद से पृथक अपने फैसलों का आनंद क्योंकि वही फैसले आप हैं और आपका वजूद हैं इसलिए फैसलों फर भरोसा खुद पर भरोसा है औऱ जब तक आपके फैसले जिंदा है तब तक आप भी जिंदा है...

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