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मन अब भी नहीं कांपा...

भू कांप गई पर मन अभी भी नहीं कांपा मौत अब भी मजाक लगती है हमें सब कुछ देखकर भी हम अनजान से हैं सिर्फ इसलिए की हम अभी जिंदा हैं यही गलती की थी मरने वालों ने जो जिंदा लोग कर रहे हैं सबकुछ मनमर्जी के करने की सिर्फ अपने बारे में सोचने की अपने सुख दुख से मतलब रखने की जिसके लिए हमने जज्बातों का कत्ल किया संवेदानाओं,संचेतनाओं का गलाघोैंटा प्रकृति की अनदेखी की पशुओं को बलात मार दिया मार क्या दिया मौत का महोत्सव किया फिर भी मन नहीं कांपा डर,दहशत,खौफ,भय कुछ भी जहन में नहीं आया क्योंकि अपनों कि मौत के आलावा सब तमाशा है ना पर “ जैसे को तैसे ” का नियम है प्रकृति का वही सब सामने आता है भूकंप,सुनामी,तूफान बनकर और बर्बाद हो जाता है वो सबकुछ जिसके लिए तूने प्रकृति को बर्बाद किया इकदिन वही प्रकृति तुझे बर्बाद कर देती है भूत की तरह,वर्तमान की तरह और भविष्य की तरह..                                 ...

मौत का मौसम...

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डर, दहशत, भय, खौफ सब कुछ नजर आ रहा है इन दिनों शहजादे,शाहबजादे,नबाबजादे सभी के चहरों पर संवेदानाशून्य हुए थे ना हम Add caption डर,भय,खौफ,दहशत शून्य तो नहीं हां इंसान को किसी का डर नहीं यही गुमान है ना हमें अपने विकास पर तभी तो हम प्रकृति का हर दम कत्ल करते हैं कभी पेड़ों को काटकर तो कभी मिट्टी को खोदकर सब अपनी सुविधा के अनुसार बदलाव हम मौसम को बदलना   चाहते हैं पर क्यों जब वो खुद स्वभाव से बदलता है पर हमने विकास के नाम पर उसमें भी छेड़छाड़ की पर याद रखना जब मौसम से जबरन छेड़छाड़ की जाती है तो वो मौत का मौसम बन जाता है और हमारे विकास का सर्वनाश बनकर सामने आता है फिर कोई भगवान कोई खुदा या विज्ञान इसे नहीं रोक सकता सिर्फ कुछ होता है तो वो है नाश, विनाश और सर्वनाश....                                                 “ अव्यक्त ” ...

जज्बात जिंदा हैं अभी…

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Add caption   . जज्बात सूखे नहीं हैं अभी   मेरे उनमें अभी भी कुछ सांसे जिंदा हैं.. वो धड़कन,तड़पन अभी सुनाई देती है सबकुछ खत्म नहीं हुआ है ना अभी जरूरी नहीं हर बार मोहब्बत के अहसासों को ही सिर्फ अहसास समझा जाये.. किसी के दर्द,चीख,दुख,वेदना शायद ये भी उसी अहसास के हिस्से ही तो हैं हां उसमें जरूरी नहीं मैं शामिल हूं पर इंसान हूं तो संवेदनाएं तो जरुरी   हैं खैर ये बात अलग है हम बदल गये हैं वो भी इतने की बगल की मौत भी माथे पर सिकन और पशीना तक नहीं   लाती तड़पते   लोग,लाचार बच्चे,अधमरे इंसान इन्हें देखकर भी जज्बात गीले नहीं होते     हां अल्फाजों में इन सबके लिए बहुत जगह है     जिन्हें हम मदद के आलावा हर तरीके से जाहिर   करते हैं    पर क्या सिर्फ उन अल्फाजों से    क्या मन भींगता है हमारा    मन छोड़िये क्या आंख की पलके गीली होती हैं कभी     शायद नहीं क्योंकि हमारी भावनाएं,संवेदनाएं      संचेतनाएं और हर एक मन का भाव ...