मन अब भी नहीं कांपा...




भू कांप गई पर मन अभी भी नहीं कांपा
मौत अब भी मजाक लगती है हमें
सब कुछ देखकर भी हम अनजान से हैं
सिर्फ इसलिए की हम अभी जिंदा हैं
यही गलती की थी मरने वालों ने
जो जिंदा लोग कर रहे हैं
सबकुछ मनमर्जी के करने की
सिर्फ अपने बारे में सोचने की
अपने सुख दुख से मतलब रखने की
जिसके लिए हमने जज्बातों का कत्ल किया
संवेदानाओं,संचेतनाओं का गलाघोैंटा
प्रकृति की अनदेखी की
पशुओं को बलात मार दिया
मार क्या दिया मौत का महोत्सव किया
फिर भी मन नहीं कांपा
डर,दहशत,खौफ,भय कुछ भी जहन में नहीं आया
क्योंकि अपनों कि मौत के आलावा सब तमाशा है ना
पर जैसे को तैसे का नियम है प्रकृति का
वही सब सामने आता है भूकंप,सुनामी,तूफान बनकर
और बर्बाद हो जाता है वो सबकुछ
जिसके लिए तूने प्रकृति को बर्बाद किया
इकदिन वही प्रकृति तुझे बर्बाद कर देती है
भूत की तरह,वर्तमान की तरह और भविष्य की तरह..
                                         अभिषेक अव्यक्त

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