जज्बात जिंदा हैं अभी…
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जज्बात सूखे नहीं हैं अभी मेरे
उनमें अभी भी कुछ सांसे जिंदा हैं..
वो धड़कन,तड़पन अभी सुनाई देती है
सबकुछ खत्म नहीं हुआ है ना अभी
जरूरी नहीं हर बार मोहब्बत के अहसासों
को ही सिर्फ अहसास समझा जाये..
किसी के दर्द,चीख,दुख,वेदना
शायद ये भी उसी अहसास के हिस्से ही तो हैं
हां उसमें जरूरी नहीं मैं शामिल हूं
पर इंसान हूं तो संवेदनाएं तो जरुरी
हैं
खैर ये बात अलग है हम बदल गये हैं
वो भी इतने की बगल की मौत भी
माथे पर सिकन और पशीना तक नहीं
लाती
तड़पते लोग,लाचार बच्चे,अधमरे
इंसान
इन्हें देखकर भी जज्बात गीले नहीं होते
हां अल्फाजों में इन सबके लिए बहुत जगह है
जिन्हें हम मदद के आलावा हर तरीके से जाहिर करते हैं
पर क्या सिर्फ उन अल्फाजों से
क्या मन भींगता है हमारा
मन छोड़िये क्या आंख की पलके गीली होती हैं कभी
शायद नहीं क्योंकि हमारी भावनाएं,संवेदनाएं
संचेतनाएं और हर एक मन का भाव
धूप में बारिश की तरह हो गया है
जो भीगोती तो है पर गीला रहने नहीं देती
“अव्यक्त”
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