मौत का मौसम...



डर, दहशत, भय, खौफ
सब कुछ नजर आ रहा है इन दिनों
शहजादे,शाहबजादे,नबाबजादे सभी के चहरों पर
संवेदानाशून्य हुए थे ना हम
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डर,भय,खौफ,दहशत शून्य तो नहीं
हां इंसान को किसी का डर नहीं
यही गुमान है ना हमें अपने विकास पर
तभी तो हम प्रकृति का हर दम कत्ल करते हैं
कभी पेड़ों को काटकर तो कभी मिट्टी को खोदकर
सब अपनी सुविधा के अनुसार बदलाव
हम मौसम को बदलना  चाहते हैं
पर क्यों जब वो खुद स्वभाव से बदलता है
पर हमने विकास के नाम पर उसमें भी छेड़छाड़ की
पर याद रखना जब मौसम से जबरन छेड़छाड़ की जाती है
तो वो मौत का मौसम बन जाता है
और हमारे विकास का सर्वनाश बनकर सामने आता है
फिर कोई भगवान कोई खुदा या विज्ञान इसे नहीं रोक सकता
सिर्फ कुछ होता है तो वो है नाश, विनाश और सर्वनाश....
                                            अव्यक्त


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