किस्मत पर कितना भरोसा करें? कब तक भरोसा करें? उम्मीद टूटती है तो दुख तो होता है

हम सभी सपने देखते हैं, कुछ करने के कुछ बनने के, ये स्वाभाविक प्रक्रिया भी है। कई बार हम भरसक कोशिश करते हैं उन्हें पूरा करने के लिए बहुतों के सपनों को पंख भी लगते हैं लेकिन अधिकतर लोगों के सपने नींद टूटने की तरह ही होते हैं। जो शायद कभी पूरे नहीं होते। यहां बहुत सारी बाते कहीं जा सकती हैं कि मेहनत पूरी तरह से नहीं की गई, तन,मन का समर्पण नहीं हो पाया और भी बहुत कुछ लेकिन जब उम्मीद या सपना टूटता है न तो दुख तो होता ही है। खैर एक रामवाण इलाज है इस असफलता को पचाने का जिसे हम किस्मत कहते हैं। जब कभी हमारे साथ ऐसा कुछ होता है हम सभी सिर्फ एक ही बात करते हैं शायद किस्मत खराब थी। अगली बार देखने सफलता जरूर मिलेगी।


लेकिन क्या किस्मत का पोस्टमार्टम करने पर इस बात की गारंटी मिल सकती है कि जो कमी मेरी मेहनत में रह गई थी वो किस्मत के कारण थी। उसमें मेरी गलती नहीं है। यहां यह भी कह सकते हैं क्या सच में किस्मत नाम की कोई चिडिय़ा होती है। आप कहेंगे बिल्कुल हम तो हर दिन, हर क्षण मुखातिब होते हैं ऐसे उदाहरणों से, मतलब किस्मत का अस्तित्व है तो सही लेकिन यदि वो है तो रहती कहां है। उसकी साधना का रास्ता क्या है। आप कहेंगे भगवान? फिर सवाल उठता है क्या किस्मत भगवान है। आप कहेंगे नहीं हमारे हिस्से की किस्मत देने वाला भगवान है इसलिए भगवान को साधो तो किस्मत अपने आप मिल जाएगी।

 

पर ये तार्किक दृष्टि से समाधान नहीं करता तब कुछ लोग कहते हैं कि किस्मत कर्म प्रधान है आप कर्म करो किस्मत झक मारकर आपके पास आएगी। अब यहां बड़ा सवाल है कि कर्म किस तरह का किया जाए। धर्म प्रधान, स्वाभाव प्रधान, समाज प्रधान किस तरह से उस किस्मत की साधना की जा सकती है। यहां मैं किसम्त को नकार नहीं रहा हूं। बस ये कोशिश कर रहा हूं कि जिसके भरोसे बैठकर हम जिंदगी गुजार देते हैं दरअसल उसमें इंतजार के लिए अवकाश ही नहीं है। वो आपके पास चलकर नहीं आती क्योंकि किस्मत और मेहनत अविनाभावी हैं। वो अकेले आ ही नहीं सकते। उसे उम्मीद के भरोसे बैठकर नहीं पाया जा सकता.

 

 यहां आप पूछेंगे तो क्या करें। उम्मीद करना छोड़ दें? अरे नहीं उम्मीद छोडऩे की नहीं। मेहनत ज्यादा करने की जरूरत है। फिर से जिंदगी की जंग में एक योद्घा की तरह खड़े होने की जरूरत है जो कभी नहीं हारता क्योंकि वो सिर्फ विजेता होने के लिए लड़ता है उसकी तलवार किस्मत से नहीं मेहनत के बाजुओं से चलती है, किस्मत खुद व खुद उसमें ऊर्जा भरती जाती है। यही सफलता का सूत्र है। यही वो चीज है जो उम्मीद को टूटने नहीं देती। चेहरे से मुस्कान गायब होने नहीं देती। बस हमारे हाथ में एक चीज है वो साधना, कर्म की साधना, सपनों की साधना, उम्मीद की साधना।

Comments

Popular posts from this blog

विश्वास में ही विष का वास है

मानव जीवन का आधार शुद्ध आहार शाकाहार

गणतंत्र दिवस और कुछ कही कुछ अनकही बातें ....सच के आइने में !!!!!!!!