दिल का दर्द शब्दों में बयाँ कर

बहुत  दिनों  बाद  कुछ  लिखने को  कलम मचल गई
फिर  क्या  था दिल  की  बात  कागज पर  उतर  गई 
क्या  बताता क्या छीपाता कब तक खुद को रोक पाता
लिखते  लिखते  जिन्दगी  की   कहानी आंख भर गई
उलझनों   ने   इस  कदर  उलझा   के  रख  मुझे
की  खुद   को  समझने   में   फिर   उम्र  गुजर  गई
मौत  भी  दरवाजे    पर  आकर  लौट  गई  शायद
लगता है जिन्दगी की उलझने देख कर वो भी डर गई

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