युवाओं सब हाथ तेरे सब साथ तेरे ...हंगामा नहीं हालात बदल तू
बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं उसका कारण यही रहा
की मेरे दोस्तों ने मुझसे कहा की तुम लिखते तो अच्छा हो परन्तु बहुत
ज्यादा लिखते हो .......इतना टाइम भी नहीं है पड़ने का और दूसरी बात पता
नहीं कितना घुमा फिराकर लिखते हो .......समझ ही नहीं आया क्या कहूँ क्या न
कहूँ इसलिए बस बिना कहे ही रह गया ....जरुरत भी नहीं समझी कुछ कहने की
शायद मेरे कहने से कुछ फर्क भी नहीं पड़ता ......पर इसमें मेरी क्या गलती
है |मुझे लगा की शायद जो प्यार मोहब्बत की उलझी हुई बातें समझ जाते है और
अपनी प्रयासी के साथ घंटो फोन पर बात कर सकते है ....उन्हें देश के बारे
बताने की कोशिश करूंगा तो शायद वो समझ जाये ......पर शायद अब वो फितरत
युवाओं की नहीं रही ....उन्हें बस अपने आप से मतलब है ...हा ऐसी बात नहीं
वो देश के लिए कुछ नहीं कर सकते बहुत कुछ कर सकते है अभी भीड़ को बुलाये
नारे लगवाइए सब तैयार है ....मोमबत्तिया हाथ में लेकर रैलियां लगाने को
आन्दोलन घेराव और हंगामा मचाने को ....हा और सबसे बड़ी बात अनसन करने को
....पर वो सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए या फिर भीड़ का हिस्सा बनने के लिए
.....युवाओं का तो कहना होता है इस बहाने थोड़ी मौज मस्ती हो जाती है और
छोरियों से मिलने भी मिल जाता है |
. आप सोच रहे होंगे मुझे कुछ लिखने मिल नहीं रहा होगा इसलिए बस लिखते जा रहा हूँ ...यदि आप यह सोच रहे है तो सोच सकते है सही भी है ....क्योंकि इसका भी दर्द मुझे कम नहीं है की हम अपनी शक्ति समर्थ ....उन आन्दोलनों में लगा रहे है या फिर ऐसे कामो में लगा रहे है जिसका कोई मतलब नहीं है ....और हो भी नहीं सकता |भला होगा भी क्यों क्योंकि जो काम स्वार्थ वश किया जाता है वो कभी सही नहीं होता कभी स्वार्थ के कपडे उतार कर नहा कर देखिये ...सब गंदगी अपने आप दूर हो जाएगी ....पर हसी तो इस बात की आती है की इस देश के लोग कितने बेबकूफ है या कहे क्या है .....समझ ही नहीं आता |बस कोई एक आगे झंडा लेकर भ्रष्टाचार और कालाधन चिल्लाने लग जाता है ....सारा देश उसके पीछे दोड़ने लगता है और वो नेता बन जाता है .....बाकि लोग जैसे आये थे वेसे ही चले जाते है ....कुछ नहीं बदलता और शायद कभी बदलेगा भी नही| |.....
हम अपने शोषण की बुनियाद खुद रखते है फिर जिन्दगी भर उसे गिराने की कोशिश में लग जाते है ....पर वो कभी नहीं गिरती क्योंकि तब तक वो दीवार इतनी मजबूत हो चुकी होती है हम चाह कर भी उसे हटा नहीं पाते ..... बस फिर क्या अपनी गलतियों पर जिन्दगी भर पछतावा और क्या ...पर क्या जिन्हें हमने बनाया है और शिखर सिहासन पर बिठाया है क्या उन्हें वहा से पदच्युत नही कर सकते क्या हम इतने लाचार मजबूर है की चुपचाप द्रोपदी के चीरहरण को देखते रहेंगे ....शायद हाँ हम कभी चैन की साँस नहीं लेंगे हमेशा गुलाम ही रहेंगे क्योंकि जंजीरों में कैद होना ही हमे अच्छा लगता है ....हममे इतना भी दम नहीं होता की ललकार कर दे की तुम गलत हो.... नही हम किसी चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहते इसलिए किसी मजबुर आदमी को हॉस्पिटल ले जाने से भी कतराते है किसी शोषित की पुलिस स्टेशन नहीं ले जा सकते क्योंकि बहुत सारे सवालों को जवाब देना पड़ेगा .....कब तक आखिर हम इन छोटी छोटी चीजों से भागते फिरेंगे .....क्या सिर्फ हमारी परेशानियाँ ही परेशानी है .....दूसरों का दर्द क्या दर्द नहीं है .....अब बस मैं आगे कुछ लिख नहीं पाउँगा और जरूरत भी नहीं समझता मेरे लिखने और न लिखने से कोई फर्क भी पड़ने वाला नहीं है जिसे जो करना है वो वही करेगा....पर याद रखना माशूक की बाँहों में पड़े रहने से कुछ नहीं होगा ....प्यार मोहब्बत में उलझे रहने से कुछ नहीं होगा कभी कालीन के नीचे का यथार्त भी देखने की कोशिश करके देखो अपने आप से नजरे नहीं मिला पाओगे भले ही शिक्षा की कितनी ही दुहाई देते रहना यदि न्याय के खिलाफ आवाज़ लगाना नहीं आता तो मर जाना और अनपड रहना ही बेहतर है ....जिन्दगी बस उन सब चीजों के लिए नहीं है और भी बहुत काम है मोहब्बत के सिवा ....बस मैं अपने हमउम्र लोगो से इतना ही कहूँगा की सीना चोडा करके खड़े हो जाइये ...और भीड़ का हिस्सा नहीं कारण बनिए...हर आन्दोलन में हंगामा खड़ा मत कीजिये क्योंकि इतिहास गवाह है की हल्ला मचाने से कुछ नहीं होता .....कुछ करना ही है तो महाभारत कीजिये आर या पार ...गाँधी अपनी जगह सही थे और वो आदर्श है लेकिन नव यथार्थ कुछ और ही है जिसमे सिर्फ बदलाव की आहट या आवाज़ नहीं है बदलाव ही है |
.. जागिये चेतिए और अपने अंदर के पुरुषत्व को जगाइए और करके दिखाइए ....फिर न तो अन्ना को अन्दिलन करने की जरूरत पड़ेगी ना ही रामदेव को हंगामा करने की ....बस इतना करना है आप जहा है वहां अन्याय न हो पाए ....भले उसके लिए आहुति देनी पड़े या फिर लेनी पड़े ......फिर देखिये किसी के बाप में हिम्मत नहीं होगी .....की किसी को भंवरी तरह मरना पड़े या गीतिका की तरह आत्महत्या करनी पड़े ....मदेरणा और कांडा खुद न मर जाये तो नाम फिर देखिये .....न तो कोई घोटाला होगा न ही विदेशो में काला धन जमा करने की हिम्मत करेगा ....बस जरूरत है आपके जागने की क्योंकि जब युवा सूर्य उदित होता है तो भ्रष्टाचार का अंधकार कहा गायब हो जायेगा आपको पता भी नही चलेगा ....अब हंगामा नहीं हालत बदलने है .....जेल नहीं जहन्नुम भेजिए ....अंत में बस इतना ही की अभी भी वक्त है युवाओं जागिये जागिये और जागिये यह देश तेरी बेहोशी नहीं बलिदान चाहता है |||||||||||
. आप सोच रहे होंगे मुझे कुछ लिखने मिल नहीं रहा होगा इसलिए बस लिखते जा रहा हूँ ...यदि आप यह सोच रहे है तो सोच सकते है सही भी है ....क्योंकि इसका भी दर्द मुझे कम नहीं है की हम अपनी शक्ति समर्थ ....उन आन्दोलनों में लगा रहे है या फिर ऐसे कामो में लगा रहे है जिसका कोई मतलब नहीं है ....और हो भी नहीं सकता |भला होगा भी क्यों क्योंकि जो काम स्वार्थ वश किया जाता है वो कभी सही नहीं होता कभी स्वार्थ के कपडे उतार कर नहा कर देखिये ...सब गंदगी अपने आप दूर हो जाएगी ....पर हसी तो इस बात की आती है की इस देश के लोग कितने बेबकूफ है या कहे क्या है .....समझ ही नहीं आता |बस कोई एक आगे झंडा लेकर भ्रष्टाचार और कालाधन चिल्लाने लग जाता है ....सारा देश उसके पीछे दोड़ने लगता है और वो नेता बन जाता है .....बाकि लोग जैसे आये थे वेसे ही चले जाते है ....कुछ नहीं बदलता और शायद कभी बदलेगा भी नही| |.....
हम अपने शोषण की बुनियाद खुद रखते है फिर जिन्दगी भर उसे गिराने की कोशिश में लग जाते है ....पर वो कभी नहीं गिरती क्योंकि तब तक वो दीवार इतनी मजबूत हो चुकी होती है हम चाह कर भी उसे हटा नहीं पाते ..... बस फिर क्या अपनी गलतियों पर जिन्दगी भर पछतावा और क्या ...पर क्या जिन्हें हमने बनाया है और शिखर सिहासन पर बिठाया है क्या उन्हें वहा से पदच्युत नही कर सकते क्या हम इतने लाचार मजबूर है की चुपचाप द्रोपदी के चीरहरण को देखते रहेंगे ....शायद हाँ हम कभी चैन की साँस नहीं लेंगे हमेशा गुलाम ही रहेंगे क्योंकि जंजीरों में कैद होना ही हमे अच्छा लगता है ....हममे इतना भी दम नहीं होता की ललकार कर दे की तुम गलत हो.... नही हम किसी चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहते इसलिए किसी मजबुर आदमी को हॉस्पिटल ले जाने से भी कतराते है किसी शोषित की पुलिस स्टेशन नहीं ले जा सकते क्योंकि बहुत सारे सवालों को जवाब देना पड़ेगा .....कब तक आखिर हम इन छोटी छोटी चीजों से भागते फिरेंगे .....क्या सिर्फ हमारी परेशानियाँ ही परेशानी है .....दूसरों का दर्द क्या दर्द नहीं है .....अब बस मैं आगे कुछ लिख नहीं पाउँगा और जरूरत भी नहीं समझता मेरे लिखने और न लिखने से कोई फर्क भी पड़ने वाला नहीं है जिसे जो करना है वो वही करेगा....पर याद रखना माशूक की बाँहों में पड़े रहने से कुछ नहीं होगा ....प्यार मोहब्बत में उलझे रहने से कुछ नहीं होगा कभी कालीन के नीचे का यथार्त भी देखने की कोशिश करके देखो अपने आप से नजरे नहीं मिला पाओगे भले ही शिक्षा की कितनी ही दुहाई देते रहना यदि न्याय के खिलाफ आवाज़ लगाना नहीं आता तो मर जाना और अनपड रहना ही बेहतर है ....जिन्दगी बस उन सब चीजों के लिए नहीं है और भी बहुत काम है मोहब्बत के सिवा ....बस मैं अपने हमउम्र लोगो से इतना ही कहूँगा की सीना चोडा करके खड़े हो जाइये ...और भीड़ का हिस्सा नहीं कारण बनिए...हर आन्दोलन में हंगामा खड़ा मत कीजिये क्योंकि इतिहास गवाह है की हल्ला मचाने से कुछ नहीं होता .....कुछ करना ही है तो महाभारत कीजिये आर या पार ...गाँधी अपनी जगह सही थे और वो आदर्श है लेकिन नव यथार्थ कुछ और ही है जिसमे सिर्फ बदलाव की आहट या आवाज़ नहीं है बदलाव ही है |
.. जागिये चेतिए और अपने अंदर के पुरुषत्व को जगाइए और करके दिखाइए ....फिर न तो अन्ना को अन्दिलन करने की जरूरत पड़ेगी ना ही रामदेव को हंगामा करने की ....बस इतना करना है आप जहा है वहां अन्याय न हो पाए ....भले उसके लिए आहुति देनी पड़े या फिर लेनी पड़े ......फिर देखिये किसी के बाप में हिम्मत नहीं होगी .....की किसी को भंवरी तरह मरना पड़े या गीतिका की तरह आत्महत्या करनी पड़े ....मदेरणा और कांडा खुद न मर जाये तो नाम फिर देखिये .....न तो कोई घोटाला होगा न ही विदेशो में काला धन जमा करने की हिम्मत करेगा ....बस जरूरत है आपके जागने की क्योंकि जब युवा सूर्य उदित होता है तो भ्रष्टाचार का अंधकार कहा गायब हो जायेगा आपको पता भी नही चलेगा ....अब हंगामा नहीं हालत बदलने है .....जेल नहीं जहन्नुम भेजिए ....अंत में बस इतना ही की अभी भी वक्त है युवाओं जागिये जागिये और जागिये यह देश तेरी बेहोशी नहीं बलिदान चाहता है |||||||||||
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आपकी टिप्पणियां मेरे लेखन के लिए ऑक्सीजन हैं...कृप्या इन्हें मुझसे दूर न रखें....