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Showing posts from September, 2013

अहम की लड़ाई लड़ते आडवाणी..क्या अपना अस्तित्व खो रहे हैं ????????

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एक बहुत पुरानी कहावत है कि हवा जिस ओर हो अपना रूख भी उसी ओर कर लेना चाहिए..वरना हमारा बजूद खो जाता है...मुझे नहीं पता कि लालकृष्ण आडवाणी ने ये कहावत सुनी है या नहीं पर इतना जरूर है कि यदि उनने इस पर अमल नहीं किया तो शायद वो अपने अस्तित्व को अपनी ही पार्टी में जरूर को देंगे..औऱ फिलहाल उस दौर से जूझते हुए भी आडवाणी दिखाई दे रहे है..और लोग तो उनके युग की समाप्ति औऱ सन्यास तक की बाते करने लगे है..और बहुत से लोग तो आडवाणी को बीजेपी का वीभिषण तक कहने लगे है..खैर आडवाणी को ये बातसमझना चाहिए कि..जब पेड़ में नये पत्ते आ जाते हैं तब पुरानी पत्तों को झड़ना ही बड़ता है..औऱ ये तो प्रकृति का निय म से इससे मुकरना कैसा..ये वक्त तो खुद कुर्सी छोडकर किसी सशक्त हाथों में सौंपने का है। पर आडवाणी की महत्वाकांक्षाओं का मगरमच्छ शायद उन्हें ये करने नहीं दे रहा है.उनका मन बार-बार प्रधानमंत्री बनने के लिए आकंठित हो रहा है..किसी भी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना है..लेकिन क्या इतना आसान है जितना आडवाणी समझ रहे हैं..दरअसल आडवाणी जो कुछ समझ रहे है वैसा कुछ है ही नहीं..उन्हें लगता है कि मेरे...

पब्लिक सिटी के शंहशाह...पार्टी के बादशाह..मोदी औऱ राहुल..चुनावी रण में क्या होगा अंजाम...शह या मात ????

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देश में महाभारत की तैयारियां चल रही है। सब अपनी अपनी   सेना को संवारने में लगे हैं..एक तरफ कौरवो की सेना कांग्रेस है तो दूसरी तरफ पांडवो की सेना बीजेपी..युध्द की तैयारियों के लिए जगह जगह गुप्त सभाएं की जा रही है..जनता को जोड़ा जा रहा है..लुभावने सपने दिखाकर लोगों को सेना मे शामिल किया जा रहा है तो कहीं दंगे फसाद कराके,जाति का आधार दिखाकर सेना की विस्तार किया जा रहा..जिसे देखकर लगता है..कि सच में महाभारत को युध्द से भी भयानक युध्द होने की संभावना जताई जा रही है..औऱ महाभारत की तरह अब एक संजय नहीं बहुत से संजय भी युध्द का आंखो देखा हाल दिखाने को तैयार हो गये है... अब यदि कुछ बाकि है तो वह है..सेनापतियों की घोषणा..दोनों ही तरफ से जनता ने दो सेनापतियों क   नाम घोषित कर दिए है..लेकिन अभी पार्टी के आलाकमान ने हरि झंडी नहीं दिखाई है..औऱ उनकी हरि झंडी बिना सेनाध्यक्षों के नाम की घोषणा नामुमकिन है..खैर हमें तो जनता द्वारा घोषित सेनाध्यक्षों को बात करना है..सबसे पहले बात नरेन्द्र मोदी की करनी है..वैसे उनकी बात करने की जरूरत नहीं है..क्योंकि आजकल उनका नाम इतना ज्यादा खबरों में ...

चुनावी दौर..बयानों की बरसात..और जीत के लिए जद्दोजहद..

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किसी की पंक्तियां हैं.. ” सरहदो पर तनाव बढ़ गया है..क्या देश को चुनावी बुखार चढ़ गया है ” इन पंक्तियों का मतलब देर से ही सही लेकिन फिलहाल समझ आ गया..हर जगह होने वाली रैलियां,पोस्टर.औऱ ट्राफिक जाम देखकर..ऐसा लगता है मानों देश में आपातकाल की स्थिति पैदा हो गई है..हर नेता अपनी अपनी पार्टी को बेहतर बनाने में बताने मे लगा हुआ है..दूसरी पार्टी के हर मुर्दे को मुद्दे को जिंदा किया जा रहा है..और आरोप प्रत्यारोप..फूहड़ राजनीति की चरम पर पहुंचा जा रहा है..क्योंकि खबरों में तो बना ही रहना है भाई..क्योंकि इस देश में जो खबरों में नहीं वो जिंदा नहीं..इस लिए खबरों की सुर्खियों के लिए कोई मोदी की तरह नाम बना रहा है तो   कोई दिग्विजय कि तरह बदनाम होकर भी सुर्खियां बटोर रहा है..औऱ ये   हाल महज राजनेताओं का नहीं है.आम आदमी से लेकर खास आदमी सभी इसकी ही जद्दोजहद में लगे है..... खैर बात यहां चुनावी दौर की करना है ..सारे देश में इस समय महामारी फैली है ..चुनावी महामारी..औऱ एसे हर पार्टी ने फैला रखी है..औऱ हर पार्टी चाहती भी यही है कि सबसे ज्यादा बीमार उसकी पार्टी के हों..इसलिए सब बीमारियां...

आसाराम..आस्था का लुटेरा...आबरू का लुटेरा..सबसे बड़ा लुटेरा !!!!!!!!!!!

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आज भी मुझे अच्छी तरह याद कक्षा पांचवी का वो दिन ..जब हमारे टीचर ने हमें एक नोट बुक दी थी। लगभग मेरी तरह सभी छात्रों को ..हम सभी खुश थे..पर उससे भी ज्यादा खुश हमारे टीचर थे..क्योंकि जो   नोटबुक हमें दी गई थी..उसमें आसाराम की तस्वीर बनी थी..उनके सदवाक्य लिखे थे..जिससे टीचर को लगता था कि इसे पड़कर औऱ इनके दर्शन करके हमें सदबुध्दि आएगी औऱ हम होशियार हो जाएंगे..बुध्दि आने औऱ होशियार होने का तो मुझे नहीं पता..कुछ हुआ या नहीं..पर एक बात जरूर याद है..कि आसाराम की छवि हमारे मन में गढ़ी गई थी..औऱ हमने भी आसाराम को वही दर्जा भी दिया..भला देते भी क्यों ना..जिसे गुरू पूजे उसका तिरस्कार हम कैसे कर सकते हैं..सबकुछ बिना सोचे समझे आस्था का कतरा कतरा समर्पित कर दिया था..औऱ ऐसा लगता तो मानों भगवान भी ऐसे ही होते होंगे..लेकिन!!! वक्त अपनी रफ्तार से बीतता गया...औऱ हम भी बहुत कुछ बदलते रहे ..लेकिन कुछ आझ भी जिंदा था..जो दिखता तो नहीं था..पर था..जिंदगी के समाधान का एक रास्ता..जो की बचपन के संस्कारों की देन थी औऱ कहते हैं ना बचपन के संस्कार कभी नहीं बदलते..शायद वहीं संस्कार अंतर में घर ...