अहम की लड़ाई लड़ते आडवाणी..क्या अपना अस्तित्व खो रहे हैं ????????
एक बहुत पुरानी कहावत है कि हवा जिस ओर हो अपना रूख भी उसी ओर कर लेना चाहिए..वरना हमारा बजूद खो जाता है...मुझे नहीं पता कि लालकृष्ण आडवाणी ने ये कहावत सुनी है या नहीं पर इतना जरूर है कि यदि उनने इस पर अमल नहीं किया तो शायद वो अपने अस्तित्व को अपनी ही पार्टी में जरूर को देंगे..औऱ फिलहाल उस दौर से जूझते हुए भी आडवाणी दिखाई दे रहे है..और लोग तो उनके युग की समाप्ति औऱ सन्यास तक की बाते करने लगे है..और बहुत से लोग तो आडवाणी को बीजेपी का वीभिषण तक कहने लगे है..खैर आडवाणी को ये बातसमझना चाहिए कि..जब पेड़ में नये पत्ते आ जाते हैं तब पुरानी पत्तों को झड़ना ही बड़ता है..औऱ ये तो प्रकृति का निय म से इससे मुकरना कैसा..ये वक्त तो खुद कुर्सी छोडकर किसी सशक्त हाथों में सौंपने का है। पर आडवाणी की महत्वाकांक्षाओं का मगरमच्छ शायद उन्हें ये करने नहीं दे रहा है.उनका मन बार-बार प्रधानमंत्री बनने के लिए आकंठित हो रहा है..किसी भी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना है..लेकिन क्या इतना आसान है जितना आडवाणी समझ रहे हैं..दरअसल आडवाणी जो कुछ समझ रहे है वैसा कुछ है ही नहीं..उन्हें लगता है कि मेरे...