आसाराम..आस्था का लुटेरा...आबरू का लुटेरा..सबसे बड़ा लुटेरा !!!!!!!!!!!







आज भी मुझे अच्छी तरह याद कक्षा पांचवी का वो दिन ..जब हमारे टीचर ने हमें एक नोट बुक दी थी। लगभग मेरी तरह सभी छात्रों को ..हम सभी खुश थे..पर उससे भी ज्यादा खुश हमारे टीचर थे..क्योंकि जो  नोटबुक हमें दी गई थी..उसमें आसाराम की तस्वीर बनी थी..उनके सदवाक्य लिखे थे..जिससे टीचर को लगता था कि इसे पड़कर औऱ इनके दर्शन करके हमें सदबुध्दि आएगी औऱ हम होशियार हो जाएंगे..बुध्दि आने औऱ होशियार होने का तो मुझे नहीं पता..कुछ हुआ या नहीं..पर एक बात जरूर याद है..कि आसाराम की छवि हमारे मन में गढ़ी गई थी..औऱ हमने भी आसाराम को वही दर्जा भी दिया..भला देते भी क्यों ना..जिसे गुरू पूजे उसका तिरस्कार हम कैसे कर सकते हैं..सबकुछ बिना सोचे समझे आस्था का कतरा कतरा समर्पित कर दिया था..औऱ ऐसा लगता तो मानों भगवान भी ऐसे ही होते होंगे..लेकिन!!!

वक्त अपनी रफ्तार से बीतता गया...औऱ हम भी बहुत कुछ बदलते रहे ..लेकिन कुछ आझ भी जिंदा था..जो दिखता तो नहीं था..पर था..जिंदगी के समाधान का एक रास्ता..जो की बचपन के संस्कारों की देन थी औऱ कहते हैं ना बचपन के संस्कार कभी नहीं बदलते..शायद वहीं संस्कार अंतर में घर किए हुए थे..आसाराम के प्रति वहीं श्रध्दा,भक्ति दिल में हुआ करती थी..इसलिए उन पर लगे तमाम आरोपों के बाद भी कभी भरोसा नहीं हुआ..क्योंकि आसाराम पर भरोसा इतना था कि..उनके खिलाफ किसी आरोप को माना कैसे जा सकता था..और शायद इसी अतिविश्वास का नाम अंधविश्वास है औऱ यहीं अंधविश्वास मुझे था भी..लेकिन  मैंने तो इसे हमेशा विश्वास ही समझा..पर जो हाल ही में आसाराम पर नाबिलिक के साथ दुष्कर्म करने का आऱोप लगा..उसके बाद संस्कारो औऱ आस्था के तारों ने खुद से सवाल करना शुरू कर दिया..दिल ने खुद को धिक्कारना शुरू कर दिया..श्रध्दा का कतरा कतरा जैसे गुनाहगारों की तरह कोर्ट में हो सवाल पर सवाल..कि आखिर क्या यही है..मेरी भक्ति का प्रसाद..मेरी प्रार्थना का वरदान..और दिल पर आघात तो तब लगा..जब इन तथाकथित धर्मात्माओं के कारण ..दिल भगवान पर भी सवाल करने लगा ..क्या तेरी पूजा भक्ति का यही प्रतिफल है और यदि हां तो मैं तुझे नहीं मानता..तेरे अस्तित्व को नकारता हूं में..नहीं चाहिए "धम्म शरणं गच्छामि" की आस्था ..हे आसाराम तूने सच में ऐसा हो सकता है..इतना बड़ा संत इतना नीचा घिनौना काम कर सकता है..आबरू जहां सबसे ज्यादा सुरक्षित मानी जा सकती है..वहां क्या आबरू अस्मत को लूटा जा सकता है.चरित्र दिवाकर क्या  दुष्चरित्र का चक्रव्यूह रच सकता है ..ये सवाल आज भी दिल में बार-बार कौंध जाता है..

आसाराम पर लगे आऱोप..हमारी श्रध्दा पर लगा वो तमाचा  है..जिसने हमारे भरोसे का कत्ल किया है..हमारी श्रध्दा को लूटा है..औऱ श्रध्दा का लुटेरा तो सबसे बड़ा लुटेरा होता है..अगर आसाराम पर लगे आरोप सही हैं तो उन्हें ऐसी सजा मिलनी चाहिए..जिससे फिर कभी आसाराम पैंदा ना ..राम जैसे चरित्र की आसा करने वाले लोगों को राम की जगह रावण मिला..जिसने हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़..माथा टेकने वाली जगह का माथा शर्म से झुका दिया..पता नहीं आने वाली पीड़ी कैसे धर्म और आस्था पर भरोसा कर पाएगी..कैसे मानेगी राम,कृष्ण,बुध्द,महावीर के सिध्दांतो..पता नहीं इस कुकृत्य की सजा किसे मिलेगी..आसाराम को या हमें ...डर लगता है कि कहीं धर्म,श्रध्दा,आस्था जैसे शब्द डायनासोर ना बन जाये...

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