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Showing posts from 2018

घर से विदा सिर्फ लड़कियां ही नहीं होती लड़के भी होते हैं?

दसवीं का रिजल्ट आया ही था, मार्कशीट के साथ ऐसा लगा जैसे घर छोड़ने का फरमान आया हो। आगे की पढ़ाई के लिए घर छोड़ना था। मेरे जैसे कई युवा ऐसे ही पहली बार घर छोड़ते हैं पढ़ने के लिए, अपने और अपनों के सपने पूरे करने के लिए, उम्मीदों को पंख देने के लिए, बड़ा बनने के लिए। सब कुछ मिलता है जो सोचा गया था सिवाय घर के। घर से निकलते समय शायद ये अहसास ही नहीं हुआ कि ये विदाई ही है अब घर ब्याही गई बहनों की तरह ही कभी-कभी ही आना हो होगा। घर से निकलने के कई सालों तक हमारे जहन में ये बात नहीं आती लेकिन कभी आंख बंद करके सोचो तो समझ आता है कि पढ़ाई और फिर पढ़ाई के फल ने हमें अपने घर से हमेशा के लिए दूर कर दिया। अपने मां-बाप से दूर। अब हम सिर्फ फोन पर या त्यौहार पर ही साथ होते हैं। याद नहीं आता कभी एक पूरा हफ्ता इन 10-15 सालों में साथ गुजारा हो। हम मस्त हैं अपने काम में और मां-बाप खुश है संतोष में कि उनके बेटे ने तरक्की कर ली। जैस-जैसे समय गुजरता जाता है हम दूर होते जाते हैं उनसे वो जब भी फोन करो कुशलक्षेम के साथ एक बार जरूर पूछते हैं कि घर कब आ रहे हो और हमारा हमेशा जवाब होता है जब छुट्टी मिलेगी तब।...

“जो नहीं मिलता है, वही तुम्हें दौड़ाता है”

हम सभी दौड़ रहे हैं, ख्वाब बुन रहे हैं, ख्वाहिशों के घोड़े दौड़ा रहे हैं, इच्छाएं, महत्वाकाक्षाएं, सपने दिखा रही हैं, स्मृतियों में भले ही भूत सुंदर न हो पर भविष्य की सफलता रोमांच पैदा कर रही है। विचारों की इसी उधेड़बुन को उम्मीद कहते हैं, हम में से अधिकतर लोग सुबह उठकर सफल होने का संकल्प लेते हैं। कार्य योजना तैयार करते हैं, मन को दृढ़ करते हैं, खुद को समझाते हैं, भूत को भुलाने की सलाह देते हैं, भविष्य को बेहतर करने का खुद से वादा करते हैं। इसलिए सुबह हमेशा खूबसूरत होती है..लेकिन जैसे-जैसे सूरज सिर पर चढ़ता है..वैसे-वैसे हमारे सपने स्मृति से विलुप्त होने लगते हैं..आखिरकार रात अपराध बोध में गुजरती है कि फिर एक दिन गुजर गया..कुछ नहीं बदला..दरअसल हम पूरे जीवन में सिर्फ तैयारियां करते हैं..तैयार नहीं हो पाते। सवाल ये है कि तो क्या सपने देखना बंद कर दें, जड़ हो जाएं, उम्मीदों का गला घोंट दें, महत्वाकांक्षाओं को मृत मान लें। यदि ऐसा है तो फिर जीवन क्या है..रक्त का संचार उम्मीद ही तो है, सपने ही तो हैं वे मर जाएं तो फिर जिंदगी क्या है...देखिए..जितना हो सके उतना देखिए..हर दिन..हर क...

किसी बिना मोबाइल वाले इंसान से मिलना चाहता हूं..वही बता पाएगा सुकून क्या है?

हमारी आंखें मोबाइल देखने के बाद खुलती है और शायद बंद भी मोबाइल देखने के बाद ही होती हैं। इस बीच गुजरने वाले 24 घंटे मोबाइल की दुनिया में ही गुजरते हैं। क्योंकि उसके बिना हमारा काम नहीं हो सकता। या कहें उसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते। एक पल, एक क्षण, एक मिनिट बिना मोबाइल के होना मन में कंपन सी पैदा कर देता है। जब मोबाइल साथ हो या न भी हो तब भी हम उसकी गिरफ्त में होते हैं। इतनी आदत तो हमें किसी चीज की नहीं है शायद जितनी मोबाइल की है। जब मोबाइल शुरू हो रहा था तब बीएसएनएल एक विज्ञापन दिखाता था कि दूरियां करें कम, रहें अपनों के संग.. फिर हजार किमी दूर बैठा सिपाही घर में इंतजार कर रही अपनी बीबी से बात कर रहा होता था। उस समय सोचने में ही रोमांच आ जाता था कि हम हमेशा अपनों से कभी भी कहीं भी बात कर पाएंगे। बहुत सुंदर स्वप्न था जो पूरा हुआ हमारी दूरियां कम हो गई। हम नजदीक आ गए। सब साथ हैं। हम जब चाहे एक दूसरे से बात कर सकते हैं देख सकते हैं लेकिन क्या सच में दूरियां कम हुई हैं क्या हम सच में साथ आए हैं। अब समझ आ रहा है कि ये सिर्फ गलतफमियां थी। दुनिया का कोई भी आधुनिक संसाधन रिश्ते मजबूत ...

2018 का चुनाव छत्तीसगढ़ के इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला होगा

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गुजराज चुनाव की जीत के बाद भाजपा का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है। इस जीत के बाद भाजपा को त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड मैं भी उम्मीद दिख रही है। वहीं कर्नाटक तो मानो भाजपा जीती हुई बाजी मानकर ही चल रही है। इन जगहों के आलावा इस साल के अंत में जो चुनाव होने हैं उनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ है। हिन्दी भाषी इन राज्यों में अभी भाजपा की सरकारें हैं। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में तो भाजपा 15 सालों से काबिज है। राजस्थान जरूर हर बार भाजपा-कांग्रेस को राज करने का मौका देता है। लेकिन गुजरात की तरह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो भाजपा के गढ़ हैं। ऐसे में इन दोनों जगहों पर जीतना भाजपा के साख का सवाल है। दोनों जगह के आंकड़े मिले-जुले हैं। चुनावी परिस्थितियां भी कमोवेश बहुत कुछ एक जैसी हैं। परंतु मध्य-प्रदेश की अपेक्षा छत्तीसगढ़ छोटा प्रदेश हैं यहां सिर्फर 90 विधानसभा सीटें जबकि मध्य प्रदेश में 230 सीटें हैं। सभी चुनावी राज्यों में सियासी हलचल शुरू हो चुकी है। खासकर छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया पर किए गए शोध के आधार पर यदि बात करें तो राजस्थान व मध्यप्रदेश की अपेक्षा छत्तीसगढ़ में सरगर...

पद्मावत पर सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला नतमस्तक कर देता है

पद्मावत फिल्म की रिलीज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वो सच में मिसाल है। सियासी खिचड़ी पकाने के लिए राज्य सरकारें संविधान को ताक पर रखकर लोगों को गुमराह करती हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा सरकार ने अपने-अपने राज्यों में सुरक्षा कारणों का हवाला देकर फिल्म बैन कर दी। कोर्ट सख्त हिदायत देते हुए कहा है कि कानूनी व्यवस्था सरकार का काम है फिल्म रिलीज होगी। कानून को कैसे बनाकर रखोगे ये आपका काम है। सच में इसी तरह से साहसिक फैसले होने चाहिए। बात सिर्फ फिल्म की  नहीं है। आरक्षण, तीन तलाक, हज सब्सिडी, राम मंदिर जैसे उन तमाम मुद्दों की है जो वोट बैंक के कारण हमेशा अनदेखा कर दिए जाते हैं। सरकारें तो इन मुद्दों को खाद देती है कि जब-जब चुनाव आए वे इस वटवृक्ष बनाकर लोगों को गुमराह कर सकें। ऐसे में न्याय के यही मंदिर तो उम्मीद होते हैं जो सरकारों के कान खींचकर गलत को गलत कह सकते हैं क्योंकि जनता तो सिर्फ वो प्यादा है जिसे तख्त पर पहुंचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फिर घी में मक्खी की तरह पांच साल तक फेंक दिया जाता है।हम अब धर्म,जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठना होगा। जो भी हम...

'तुम मरोगे नहीं, तो स्कूल में छुट्टी कैसे होगी'... कहते हुए छात्रा ने मासूम को मारा चाकू"

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आखिर ऐसा क्या पढ़ाया जा रहा है इन बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स और महंगे स्कूलों में। समझ नहीं रेयान इंटरनेशनल स्कूल में प्रद्युम्न की हत्या का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि अब लखनऊ के अलीगंज स्थित ब्राइटलैंड स्कूल की एक छात्रा ने अपने स्कूल के बच्चे को सिर्फ इसलिए चाकू घोंप दी क्योंकि वो स्कूल में छुट्टी कराना चाहती थी। ये क्या पढ़ाया जा रहा है इन तथाकथित स्कूलों में। ये कैसी शिक्षा दी जा रह ी है नासमझ नौनिहालों को। सिलेबस में संवेदनशीलता नहीं है क्या। ऊंची बिल्डिंग्स ने ईमान नीचे गिरा दिया क्या। ज्यादा फीस ने जमीर सस्ता कर दिया क्या। जिन स्कूल की छतों पर छप्पर नहीं होता। बैठने के लिए दरी नहीं होती। पढ़ाई खुले मैदानों में होती है। इतनी मानवीय मूल्यों की इतनी गिरावट तो वहां भी नहीं हैं। जिम्मेदार कौन है स्कूल, शिक्षक, पैरेंट्स? तलाशना पडेगा। जितना जल्दी हो उतना। वरना विद्या के ये मंदिर दानव पैदा करने लगेंगे। सबको सोचना है, हम सभी को मिलकर सोचना है। गलती किसी की भी पर अब आगे ऐसी घटना न हो। विद्या के इन मंदिरों में दाग अच्छे नहीं लगते। आईए मिलकीर प्रयास करते हैं। कुछ तो बदलेगा। थोड़ा ही सह...