किसी बिना मोबाइल वाले इंसान से मिलना चाहता हूं..वही बता पाएगा सुकून क्या है?
हमारी आंखें मोबाइल देखने के बाद खुलती है
और शायद बंद भी मोबाइल देखने के बाद ही होती हैं। इस बीच गुजरने वाले 24 घंटे
मोबाइल की दुनिया में ही गुजरते हैं। क्योंकि उसके बिना हमारा काम नहीं हो सकता।
या कहें उसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते। एक पल, एक क्षण, एक मिनिट बिना मोबाइल
के होना मन में कंपन सी पैदा कर देता है। जब मोबाइल साथ हो या न भी हो तब भी हम
उसकी गिरफ्त में होते हैं। इतनी आदत तो हमें किसी चीज की नहीं है शायद जितनी
मोबाइल की है। जब मोबाइल शुरू हो रहा था तब बीएसएनएल एक विज्ञापन दिखाता था कि दूरियां
करें कम, रहें अपनों के संग..फिर हजार किमी दूर बैठा सिपाही घर में इंतजार कर
रही अपनी बीबी से बात कर रहा होता था। उस समय सोचने में ही रोमांच आ जाता था कि हम
हमेशा अपनों से कभी भी कहीं भी बात कर पाएंगे।
बहुत सुंदर स्वप्न था जो पूरा हुआ हमारी
दूरियां कम हो गई। हम नजदीक आ गए। सब साथ हैं। हम जब चाहे एक दूसरे से बात कर सकते
हैं देख सकते हैं लेकिन क्या सच में दूरियां कम हुई हैं क्या हम सच में साथ आए
हैं। अब समझ आ रहा है कि ये सिर्फ गलतफमियां थी। दुनिया का कोई भी आधुनिक संसाधन
रिश्ते मजबूत नहीं कर सकता। दूरियां कम नहीं कर सकता। हमारी दूरियां कम नहीं हुई
हैं बल्कि दूरियां बढ़ गई हैं। हम साथ हैं लेकिन साथ नहीं। घर के लोगों के पास
इकदूसरे से बात करने की फुरसत नहीं है सब अपनी दुनिया में मस्त। इस चंचल मन को
मोबाइल ने चलायमान होने का जरिया दे दिया है वो ठहरता ही नहीं। रुकता ही नहीं एक
जगह। चलता रहता है हमेशा। याद रखिए दूरियां जब नजदीक आती हैं तब नजदीकियां दूर चली
जाती है। ऐसा ही हमारे साथ हो रहा है। हम गिरफ्त में हैं। कैद में हैं। इसलिए
सुकून से जी नहीं पा रहे हैं। मोबाइल की रिंगटोन की तरह धड़कनें चल रही हैं। कब
क्या हो जाए।किसका मैसेज। किसका फोन। मन इतना व्याकुल हो गया है कि भावनाएं
सम्हालने की ताकत खत्म हो गई। घबड़ाहट, उतावलेपन ने घर कर लिया है।
-हाथ में मोबाइल लेकर हम सारी दुनिया साथ
लेकर चलते हैं लेकिन आपको क्या लगता है मेमोरी सिर्फ मोबाइल की फुल होती है आपकी
नहीं।
-कई अनहोनी घटनाओं का पता हमें देर से चलता
था तब तक हम सम्हल जाते थे लेकिन अब तुरंत चलता है। संचार क्रांति ने खून का संचार
भी बढ़ा दिया है। इसलिए अब खुद पर कंट्रोल नहीं रहा।
-कई बार लड़ाइयां शुरू होते ही खत्म हो जाती
थी लेकिन अब मोबाइल से दस जगह फोन औऱ दस तरह की बातों ने कई जिंदगियां खत्म कर दी।
-मोबाइल पर कई तरह के मैसेज, फोन या अत्यधिक
व्यस्तता ने दाम्पत्य जीवन में अविश्वास पैदा कर दिया है। कई घर टूट गए हैं क्या
इतना जरूरी है मोबाइल।
-परिवार के लोगों से बात करने की फुरसत नहीं
है। हर समय हाथ में मोबाइल ने एक दूरी से बना दी है ऐसे में रिश्तों में मजबूती
कैसे संभव है।
-हर पल मैसेज, फोन के लिए मोबाइल चैक करने
से हमने अपना कॉसट्रेशन खत्म कर दिया है।
-पहले हम अकेले होते थे तो कभी अपने बारे
में सोच लेते थे लेकिन अब हम अकेले भी नहीं रह पाते।
-मोबाइल ने इतना सब कुछ दे दिया है कि हमें
परिवार, दोस्तों की जरूरत ही महसूस नहीं होती हम सिर्फ उसमें ही पूरी समय निकाल
देते हैं।
-टेंशन, स्ट्रेस मोबाइल जितना पैदा करता है
शायद ही कहीं होता होगा।
-पहले हमें सिर्फ खुद की चिंता होती थी अब
पूरी दुनिया की हर खबर से अपडेट रहने के चक्कर में खुद को भूल गए।
-अनचाहे रिश्तों का पैदा होना। मजबूत
रिश्तों का टूटना। ये सब कैसे पैदा हुआ है।
-ज्यादा बातें समय, ऊर्जा व अहमियत कम करती
हैं क्या ये नहीं हुआ है हमारे साथ
-जियो व तमाम टेलीकॉम कंपनियों ने फ्री के
ऑफर देकर हमें टेक्नोलॉजी का गुलाम बना दिया है। हम सांसे भी नहीं ले पा रहे हैं।
सोचना होगा। विचारना होगा। चिंतन करना होगा।
हम किससे दूर जा रहे हैं। हम कहां जा रहे हैं। ये क्या गुलामी नहीं है..ये वरदान
है या अभिश्राप। गलती मोबाइल की नहीं है उन टेलीकॉम कंपनियों की नहीं है हमारी है।
हमने ही आदत डाली है। हम खुद गिरफ्त में आए हैं। इसलिए सुधरना हमें खुद होगा। इतनी
बेचैनी आखिर क्यों। परिणामों में इतनी उथल-पुथल क्यों। हो सकता है इसे पढ़कर कुछ
लोग मुझे दकियानुकुसी। छोटी सोच। छोटी मानसिंकता। अनपढ़ गंवार जैसे शब्दों से भी
उपाधि दे सकते हैं लेकिन ये दर्द हम सबका है। हम सब हर दिन एक बार तो सोचते हैं
काश ये मोबाइल न होता तो सुकून मिल जाता।
ये तय मान लीजिए की सच्चा सुख, सुकून, आनंद
तभी मिलेगा। जब आप खुद के नजदीक आएंगे। खुद से बातें करेंगे। अपनों के साथ वक्त
बिताएंगे। अपनों के साथ रहेंगे। थोड़ा सा बस नजदीक आना है अपने मोबाइल को छोड़ना
नहीं बस थोड़ा सा दूर करना है। निर्जीव को निर्जीव ही रहने देना है। फिर आनंद की बारिश होगी। खुशियां
दिखाई देंगी। रास्ता खोजना पडेंगा। ढूंढ़ना पड़ेगा। मन को समझाना पड़ेगा। हम इससे
निजात पाने के लिए दवाईयां खाने लगें। उससे पहले हमें इस रोग से मुक्त हो जाना चाहिए।
बस इसलिए हर दिन सुकून की तलाश में जब निकलता हूं तो ऐसे आदमी को ढ़ूढ़ता हूं
जिसके पास मोबाइल न हो।
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