2018 का चुनाव छत्तीसगढ़ के इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला होगा
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गुजराज चुनाव की जीत के बाद भाजपा का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है। इस जीत के बाद भाजपा को त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड मैं भी उम्मीद दिख रही है। वहीं कर्नाटक तो मानो भाजपा जीती हुई बाजी मानकर ही चल रही है। इन जगहों के आलावा इस साल के अंत में जो चुनाव होने हैं उनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ है। हिन्दी भाषी इन राज्यों में अभी भाजपा की सरकारें हैं। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में तो भाजपा 15 सालों से काबिज है। राजस्थान जरूर हर बार भाजपा-कांग्रेस को राज करने का मौका देता है। लेकिन गुजरात की तरह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो भाजपा के गढ़ हैं। ऐसे में इन दोनों जगहों पर जीतना भाजपा के साख का सवाल है। दोनों जगह के आंकड़े मिले-जुले हैं। चुनावी परिस्थितियां भी कमोवेश बहुत कुछ एक जैसी हैं। परंतु मध्य-प्रदेश की अपेक्षा छत्तीसगढ़ छोटा प्रदेश हैं यहां सिर्फर 90 विधानसभा सीटें जबकि मध्य प्रदेश में 230 सीटें हैं।
सभी चुनावी राज्यों में सियासी हलचल शुरू हो चुकी है। खासकर छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया पर किए गए शोध के आधार पर यदि बात करें तो राजस्थान व मध्यप्रदेश की अपेक्षा छत्तीसगढ़ में सरगर्मी ज्यादा तेज हैं। यहां कांग्रेस जिस तरह से चुनावी अभियान चला रही है उसे देखकर लगता है कि चुनाव कितना नजदीक है। कांग्रेस के साथ ही नई नवेली जोगी कांग्रेस ने तो दो कदम आगे बढ़कर चुनाव अभियान तेज कर दिया है। अजीत जोगी की पार्टी ने तो एक साल पहले ही कई विधानसभाओं के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। छत्तीसगढ़ के छोटे-छोटे गांवों से लेकर शहरों में दीवारों व होर्डिंग्स को देखकर आप समझ सकते हैं कि किसने कितनी कमर कसी है। जोगी के आलावा छत्तीसगढ़ में जो तीसरी पार्टी है वो आम आदमी पार्टी है। कहने को अभी बहुत कुछ अस्तित्व छत्तीसगढ़ में नहीं है लेकिन बदलवो छत्तीसगढ़ को जो समर्थन मिल रहा है उसे देखकर आप को नकारा नहीं जा सकता।
छत्तीसगढ़ में चुनाव चतुष्कोणीय हो गया है। पदयात्राओं का दौर जारी है। आरएसएस व संगठन की रिपोर्ट पढ़ने के बाद भाजपा की भी नींद खुली है। वो भी अब थोड़ा बहुत मैदान में कूंदती नजर आ रही है। संगठन महामंत्री रामलाल व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के दौरे के बाद से भाजपा की भी सक्रीयता बढ़ी है। सह संगठन मंत्री सौदान सिंह और प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक लगातार दौरे पर हैं। वे बस्तर व सरगुजा का दौरा कर चुके हैं अभी बिलासपुर दौरे पर हैं उसी तरह कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया व प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल भी युद्धस्तर पर दौरे कर रहे हैं। सरकार पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। कांग्रेस की जो सबसे बड़ी समस्या है आपसी टकराव, गुटबाजी व भितरघात उससे निपटने के लिए राहुल गांधी ने पार्टी में परिवर्तन कर नाराज नेताओं को जाति के आधार पर साधने की कोशिश की है। जोगी के करीबी नेताओं को महत्वपूर्ण पद दे दिया है। चरणदास महंत को चुनाव प्रचार की कमान सौंपकर उनकी नाराजगी भी दूर कर दी है। पुनिया के नेतृत्व में कांग्रेस संगठित दिखाई दे रही है। शैलेष नितिन त्रिवेदी को फिर से मीडिया का चेयरमेन बनाकर कांग्रेस ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। कांग्रेस की तैयारी देखकर लगता है कि चौथी बार भाजपा सरकार का सपना आसानी से पूरा नहीं होगा।
यदि धरातल पर हाल ही में अखबारों में छपि रिपोर्ट पर नजर डाले तो सरकार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। लोगों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री रमन सिंह को लेकर सकारात्मक छवि है लेकिन पार्टी के नेताओं-मंत्रियों के प्रति बेहद नाराजगी है। लोग नेताओं की निष्क्रीयता में अनावश्यक घमंड से परेशान हैं। सरकार ने कई अच्छी योजनाएं संचालित की हैं लेकिन नेताओं-अधिकारियों ने उसके क्रियान्वयन में इतनी लेट-लतीफी की है कि नाराजगी साफ देखी जा सकती है। राशन कार्ड, स्वास्थ बीमा योजना, धान व तेंदुपत्ता बोनस आदि सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के लाभ या तो लोगों को मिला नहीं। मिला भी तो उन्हें इसके लिए काफी परेशान होना पड़ा है। केन्द्र व राज्य सरकारों ने जनता को रिझाने की कोशिश की है लेकिन उनके ही प्रतिनिधि सरकार को पलीता लगाने में लगे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के चुनावी गणित को हम सरगुजा, बस्तर व मध्य क्षेत्र के आधार पर समझ सकते हैं। बस्तर में विधानसभा की 12 सीटें हैं। 2008 में जहां कांग्रेस को सिर्फ कोंटा में जीत मिली थी वहीं 2013 में कांग्रेस को 8 व भाजपा को 4 सीटें मिली थी। सरगुजा की 14 सीटों में से कांग्रेस-भाजपा को 7-7 सीटें मिली थी। इन्हीं दो क्षेत्रों से छत्तीसगढ़ में सरकार बनती है। पिछले चुनाव में भाजपा को 49 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस के पास 39 सीटें थी। एक बसपा व एक निर्दलीय के पास थी। पिछले चुनाव में भाजपा को मोदी लहर का बहुत कुछ फायदा मिला था। वरना झीरम कांड जैसी घटना के बाद सरकार बनना नामुमकिन था। दूसरा कांग्रेस मुद्दों को भुना नहीं पाई और जोगी, महंत व भूपेश की आपसी कलह ने 2013 का चुनाव कांग्रेस के मुंह से छीन लिया।
2018 में चुनावी परिस्थितियां इकदम बदल गई हैं। एंटी इनकंबेंसी, आदिवासी, शिक्षाकर्मी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। वहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं में सरकार को लेकर नाराजगी है कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं है। सौदान सिंह के दौरे के समय अधिकतर शिकायतें यही सुनने को मिली हैं। जीते हुए प्रत्याशियों ने पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की है इसलिए वे ठगा सा महसूस कर रहे हैं । दूसरी तरफ रमन सिंह के फरमान के बाद भी नेताओं ने ग्रामीण इलाकों का दौरा नहीं किया है, सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थिति भी नगण्य हैं। ऐसे में चौथी बार सरकार दिवास्वप्न साबित हो सकती है। सरकार का जो सबसे मजबूत पक्ष है वो है सीएम रमन सिंह की स्वच्छ छवि जिस पर अभी भी प्रदेश की जनता भरोसा करती है।
इस चुनाव में मोदी और रमन का चेहरा फिर से कमल खिला सकता है। साथ ही यदि भाजपा ने अभी जनता का मानस पहचान कर प्रचार प्रसार व छवि सुधार नहीं किया तो मुश्किल होगा। खैर सीएम साहब का लोकसुराज तैयारी में है साथ ही वे कह चुके हैं कि उनके पास ब्रह्मास्त्र भी है। जिसे में चुनाव के समय उपयोग करेंगे। खैर हालिया रिपोर्ट देखकर तो यही लगता है कि भाजपा को ब्राह्स्त्र की जरूरत पढ़ने वाली है। सीएम रमन सिंह भी ये बात जानते हैं कि कुछ मौजूदा विधायकों और मंत्रियों को लेकर लोगों में नाराजगी है इसलिए वे टिकट बंटवारे के समय वे इसे दूर करने की कोशिश जरूर करेंगे
भाजपा की निश्चिंतता के दो कारण है जिसके कारण उसे लगता है कि सरकार बनना तय है। पहला गुजरात विजय। दूसरा जोगी का कांग्रेस से अलग हो जाना। भाजपा जानती है कि जोगी की नई पार्टी बनने से कांग्रेस को जाने वाला वोट कटकर या तो भाजपा को मिलेगा या जोगी कांग्रेस को। जिसका सीधे तौर पर फायदा भाजपा को होगा। एक और मुगालता भाजपा को है कि यदि त्रिकोणीय सरकार बनी तो जोगी भाजपा के पाले में बैठेंगे। चूंकि अभी दोनों पार्टियां एकदूसरे के साथ जोगी के मिले होने का आरोप-प्रत्यारोप कर रही हैं लेकिन जोगी किस करवट बैठते हैं ये तो वही जानते हैं।
जानकार बताते हैं कि जोगी जिस तरह से राजनीति करते हैं उससे कोई भी पार्टी उन पर पूर्ण विश्वास नहीं कर सकती। सीएम रमन सिंह के साथ उनकी नजदीकियों के किस्से गाहे-बगाहे सुनने मिलते रहते हैं। साथ ही सोनिया-राहुल पर अभी भी अजीत जोगी भरोसा जताते रहे हैं। वे इस अहसान में भी दबे हैं कि राजीव गांधी व कांग्रेस ने ही उन्हें राजनीति सौंपी है ऐसे में वे कांग्रेस के साथ कभी न जाएं ये संभव नहीं है। दूसरी तरफ यदि कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन की रणनीति पर नजर डाले तो बिहार चुनाव में लालू-नीतीश के साथ महागठबंधन, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ दोस्ती, गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के साथ गटबंधन। ये दिखाते हैं कि जिस तरह है राज्य में जोगी का जनाधार बढ़ रहा है। जोगी के साथ गठबंधन करने की बातों को नकारा नहीं जा सकता। यदि ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए सबसे मुसीबत वाली बात होगी।
खैर अभी स्थितियां ऐसी हैं कि भाजपा का पलड़ा बाकी से मजबूत दिख रहा है लेकिन अभी एक साल बचा है। मौके सबके पास हैं। जिसने भी जनता की नब्ज पकड़ ली। उनका भरोसा जीत लिया सेहरा उसके सिर पर होगा। विजेता कोई भी हो लेकिन इस बार का विधानसभा चुनाव छत्तीसगढ़ के इतिहास का सबसे रोमांचक मुकाबला होगा।
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