सोचना तो पड़ेगा! हम सोशल मीडिया चला रहे हैं या वो हमें चला रहा है
मै यह पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि आपके घर में जितने भी सदस्य हैं उससे ज्यादा मोबाइल आपके घर में होंगे। उनमें से सब सोशल मीडिया के किसी ने किसी प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद होंगे क्योंकि उससे ही हमारा स्टेटस तय होता है। सोने और जागने तक दिल की धड़कनों से ज्यादा आप मोबाइल अनलॉक करते हैं, इतनी बैचेनी हो गई है कि हमेशा मोबाइल तांकों न तो लगता है कि ब्लड जम गया है, अंजाम यह हुआ कि अब हम पांच मिनट आंखें बंद करके नहीं बैठ सकते, सिर फटने लगता है, दम घुटने लगता है। हम मोबाइल और सोशल मीडिया के ज्यादा उपयोग से बीमार होते जा रहे हैं, डूबते जा रहे हैं लेकिन खतरनाक बात यह है कि हमें इस खतरे की खबर ही नहीं है। हम सोच ही नहीं पा रहे हैं हम सोशल मीडिया चला रहे है या वो हमें।
यह ज्ञान सिर्फ इसलिए कि भास्कर और पत्रिका में छवि इन दो खबरों को पढ़िए और सोचिए कि हम सोशल मीडिया की कितनी चपेट में आ गए हैं कि हमें जरा सी भी रोक-टोक बर्दाश्त नहीं। संवेदनाएं इतनी शून्य हो गई है कि एक बेटी मोबाइल न चलाने के लिए टोकने पर अपने पिता की हत्या कर सकती है। यह किसने सिखाया है बच्चों को। आप किसी बाल सुधार गृह में जाकर आईए आपकी आंखे खुली रह जाएंगी कि वहां सबसे ज्यादा बच्चे संभ्रात परिवारों के हैं और उनमें भी कई हत्या जैसे संगीन आऱोपों में जेल में बंद हैं। बच्चे कैसे आपराधिक प्रवृत्ति के होते जा रहे हैं, हमें सोचना होगा, जल्दी सोचना होगा क्योंकि हम भी कभी पेपर्स की हेडलाइन्स में आ सकते हैं।
दूसरी खबर छत्तीसगढ़ के दुर्ग कि है, आप भविष्य गढ़ने स्कूल-कॉलेजों में पढ़ रहे बच्चों की गंभीरता देखिए। इसे उनकी बिगड़ती आदत भी कह सकते हैं। क्योंकि चैटिंग कि जो आदत उन्हें लगी है, उससे उनकी भाषा इतनी दोयम दर्जे की हो गई है कि वे न शुद्ध हिन्दी लिख पा रहे हैं न ही अंग्रेजी। आलम यह है कि परीक्षा की कॉपियों में छात्रों ने चैटिंग की भाषा लिखी है। चैटिंग की शार्ट लैंग्वेज ने भाषा का सत्यानाश कर दिया है। अब हम पेन-कापियों पर कितना लिखते हैं और चैट करते हुए कितना खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि हमारी लिखावट कैसी होगी। हम दिन ब दिन इसकी गिरफ्त में आकर खुद को खोखला कर रहे हैं, प्रतिभाओं को खत्म कर रहे हैं, आदत ऐसी है कि यदि स्कूल-कॉलेज में मोबाइल बंद करवा दिए जाएं तो बच्चे स्कूल से नाम कटवा लें। सोशल मीडिया पर मिल रही आधी-अधूरी जानकारी ने युवाओं के दिमाग में इतना कचरा भर दिया है कि वे सही-गलत के फर्क को समझ ही नहीं पा रहे हैं। वाट्सअप यूनिवर्सिटी ने दिमाग ब्लॉक कर दिया है, परिणाम यह हुआ कि कई प्रतिभाएं गर्भ में ही दफन हो गईं।
सोचिए! क्योंकि सोचना बहुत जरूरी है, नहीं सोचने का फल है कि हमें ऐसी खबरे पढ़ने मिल रही हैं। आखिर बच्चे इतने हिंसक, चिड़चिड़े, जिद्दी कैसे होते जा रहे हैं, क्यों आपका बच्चा बिना मोबाइल देखे खाना नहीं खाता? क्यों आप उसके रोते ही कार्टून लगा देते हैं? क्या बच्चों को चुप कराने के खाना खिलाने के यही उपाय बचे हैं। याद रखिए बच्चे जितना सिखाने से नहीं सीखते उससे ज्यादा देखकर सीखते हैं, वे जो देख रहे हैं वो बनते जा रहे हैं, फिर मोबाइल में गोली चलाता हुआ कोई कैरेक्टर हो या फिर भूत-चुड़ैल या तेज गाड़ी चलाता का कोई वीडियो गेम। यह सब हमें एक अलग दुनिया में ले रहा है फेसबुक, वाट्सअप की दुनिया जहां कि संख्या कई देशों से ज्यादा है, वर्चुअल दुनिया, आभासी दुनिया जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन फिर भी हम इस दुनिया में जाने के लिए पागल हुए जा रहे हैं। अभी विचार कीजिए क्योंकि अभी सफर आधा हुआ है, लौटा जा सकता है कहीं देर हो गई तो फिर लौटना नामुमकिन होगा। फिर मरी हुई भावनाएं, मरा हुआ प्रेम, मरा हुआ अपनत्व, बेजान रिश्ते ही मिलेंगे क्योंकि हम सब मशीन बन चुके होंगे।
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