विचारों का अंर्तद्वंद.........
जब कभी आखें बंद करके सोचता हूँ
तो सिर्फ अंधेरा दिखाई देता है
फिर अपने आप से बाते करने
लगता हूँ,अपने को समझाने की
फिर भी दिल बार बार अपने
आप से ना जाने कितने प्रश्न
करता है,और कभी भी कोई
उत्तर डूंड नहीं पाता हूँ मेरे
विचारों में अंर्तद्वंद आनंद
कुंठा सुख दुख ना जाने
कितने विचारों की धारायें
अविछिन्न होकर बहती हैं
इन सबके बीच में मे अपने
को खोजता हूँ ,कि मैं कोन हूँ
मेरा अस्तित्व क्या है,मेरा
उद्देश्य मेरे जीवन का औचित्य
क्या है,पर तभी आंखे खुल जाती
और पता चलता है कि सब भ्रम
है और उसी भ्रम में जिंदगी जीने
लगता हूँ,शायद भ्रम ही जीवन हैं........
अभिषेक जैन अभि
27.05.2011
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