दो पहलू जिन्दगी के .........
बहुत कहने सुनने में आता है की हर किसी की जिन्दगी के दो पहलू हुआ करते है शायद हा ! एक पहलू जितना सुंदर होता है दूसरा उतना ही भयाभय पर दोनों जरूरी है |क्योंकि पहले पहलू की सुन्दरता दुसरे की वीभत्स्यता के कारण ही तो समझ आती है |सुख का अनुभव भी दुःख के अनुभव के बाद ही आता है ,क्योंकि असल में कमी का अहसास ही वस्तु को कीमती बना देता है |खैर यहाँ बात जिन्दगी के उन दो पहलुओं की करनी है जिसे हमने न सिर्फ सुना पड़ा या बस देखा नहीं है जिसे जिया है या कहू तो जी रहे है |असल में पड़ा सुना उतना यथार्त का रूप अख्तियार नहीं करता जितना वो होता है, क्योंकि हमें पड़ी सुनी बातो पर भरोसा ही नहीं होता उसे सिर्फ हम कहने सुनने या फिर ज्ञान देने के लिए ही उसका उपयोग करते है ,अमल तो बस उन्ही का किया जाता है जिसे हमने जिया है है या जिसे अनुभव किया है |
जिन्दगी के दोनों पहलुओ में चकाचोंध बहुत है ,हसी ख़ुशी गम भी शायद सबकुछ सामान ही है ,पर सवाल यह है की आखिर कुछ यदि बदला है तो वो क्या है और जो बदला है वो सही है या फिर गलत ..बहुत कसमकस वाले सवाल है और शायद सबसे बड़ा अंतर्द्वंद भी उन्ही सवाल को लेकर है |कभी कभी सही गलत की जंग में फैसले लेना बहुत मुश्किल होता है और तब तो और भी मुश्किल जब हम दोनों को सही और दोनों को गलत मानते है ,पर ऐसे सवालों का कभी उत्तर नहीं मिलता क्योंकि हम उत्तर खड़े करना चाहते है उन्हें खोजना नहीं क्योंकि हमें डर रहता है की कही वो जिसे हम सही मानकर बैठे है |वो गलत न हो जाये ,क्योंकि सवाल का जवाब हमने अपने मन ही मन में दे दिया होता है और मन वहि उत्तर देता है , जो आप चाहते है बस बुध्दी और विवेक का यही सामंजस्य तो समझना आवश्यक है क्योंकि निर्णय हम उनसे ही तो खोज पाएंगे असल में वो निर्णय भी कभी गलत नहीं होते बस नतीजे गलत निकल आते है |
बस इसी तरह जिन्दगी के पहलू है जो हमेशा अपनी राह से भटकते रहते है इस लेख की तरह और बस यही कारण है की दोनों का सामंजस्य कभी नहीं बन पाता|हमारी तल्लीनता एक पक्ष में इतनी अधिक हो जाती है की दूसरा नजर ही नहीं आता है कभी चकाचौंध बस तो कभी अँधेरे बस ...शायद यही वो कारण है की हम कभी अपने आप से संतष्ट नहीं हो पाते और होंगे भी नहीं क्योंकि हमारी दुविधा तो यही है की हम चाहते कुछ है और करते कुछ
,असल में हमे पता ही नहीं है की हम चाह क्या रहे और हमे मिल क्या रहा है बस इसलिए जो है उसकी ख़ुशी से ज्यादा जो नहीं है उसका गम कही ज्यादा होता है बस इसी उलझन का नाम जिन्दगी है और ये जिन्दगी ऐसे ही उलझनों से चलती है और चलती रहेगी |
असल में बात सिर्फ इतनी ही हैं की जिन्दगी जितनी कठिन किताबो और ज्ञान ने बना दी है उतनी है नहीं सभी पहलु उसके बहुत सुंदर है बस समझदारी ने दोनों को अलग अलग कर दिया है "किसी ने कहा है की ''जब तक बेखबर था तो परिंदों की तरह उड़ता था ...परेशान हुआ तो पर कट गये मेरे "; सौ फीसदी सही है बात हम खुद ही जिन्दगी के सम्बन्ध में ऐसा भ्रम बना लेते है की वो बहुत ही कठिन है पर असल में तो वो इतनी सरल और खुशियों से भरी है की पूछिये मत "बस जिन्दगी के उस भ्रम को ख़त्म कीजिये और उस भ्रम ख़त्म करने का उपाय भ्रम को दूर करना ही है |तो सोचिये समझिये और जिन्दगी हर पहलू को उजला उजला देखिये जिन्दगी अपने आप रोशन हो जाएगी ||||||||||
जीवन के हर एक पहलू में आशा और निराशा है
हस कर रोना रो कर हसना जीवन की परिभाषा है "
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