राजनैतिक महाभारत ......जीत किसकी ....क्या होगा अन्ना -केजरीवाल की पार्टी का !!!!!!!!!!


      महाभारत तो देखी होगी सभी ने न भी देखो हो सुनी तो जरुर ही होगी प् असल में देखने और सुनने देखने की जरूरत क्या है सभी की जिन्दगी में कोई न कोई महाभारत  तो चल ही रही है .....लेकिन यहाँ में पूरी महा भारत की बात नह्गी कर रहा हूँ में तो सिर्फ  कृष्ण अर्जुन की  महाभारत में भूमिका की  बात कर रहा हूँ | जब कभी महाभारत देखता हूँ तो हमेशा यही बात दिमाग में आती है  की   श्रीकृष्ण इतने शक्तिशाली थे पर उन्होंने कभी युध्द क्यों नहीं लड़ा  सारथी का काम करना क्यों चुना ....बहुत सोचने पर एक बात सामने आई की  जो सच में शक्तिशाली और समझदार होता है वो कभी परदे के आगे के रंगमंच पर आता ही नहीं वो अद्रश्य शक्ति की तरह काम करता  रहता है|और सभी अच्छे बुरे कार्यो का कर्ता धर्ता भी वाही होता है ....युध्द लड़ने  वाला कभी असली युद्धा नहीं होता असली युद्धा तो वाही होता है जो संचालन करता है कभी युद्ध नहीं लड़ता .....हा युध्द चलता जरुर है लेकिन उसके विचारों में वह भी परिणाम के साथ और यही वो  चीज़ है जो उसे अद्रश्य शक्ति बनाती है |
                        यह सब कहने का उद्देश्य बस मेरा महाभारत पर विचार करना नहीं अपितु उसका आज के परिपेक्ष्य में देखना है आज बहुत सारी राजनेतिक पार्टियाँ देश में सक्रीय है  और रोज भान्ति भांति के युद्ध भी  लड़ रही है पर जिसके पास वो अद्रश्य शक्ति है वो ही बलवान है और उसकी सत्ता कायम है |चाहे वो कांग्रेस हो जिसका संचालन सोनिया गाँधी कर रही है कृष्ण की तरह सारथी का काम लेकिन सबकुछ उनके हाथो में समाहित मनमोहन और बाकि तो बस कटपुतलियाँ है उनके राजनेतिक खेल की  यदि भाजपा की बात करे तो उसकी कमान असल में मोहन भागवत के हाथो में ही है भले ही युद्ध मोदी गडकरी या आडवानी लड़ रहे हो पर हर तीर भागवत जी के इशारो   पर ही छोड़ा जाता है |ऐसा ही लगभग हमेशा से चला आ रहा है ,और शायद आगे भी चलता रहेगा |
                          अब जो बात में कर रहा हूँ शायद सही हो या नहीं भी पर राजनेतिक इतिहास तो यही कहता है की पहले  अपनी राजनेतिक बुनियाद मजबूत करो और एक अद्रश्य शक्ति  बनाओ फिर युद्ध के मैदान में कदम रखो |अब उसी युद्ध का शंखनाद किया है केजरीवाल की पार्टी ने उनके पास सब कुछ है |अन्ना रूपी सारथी और आम आदमी रूपी राजनेतिक बुनियाद | शायद जन लोकपाल बिल या अनसन उसी बुनियाद को बनाने की महज प्रक्रिया थी कार्य तो कुछ और ही होना था |यह सवाल इसलिए खड़ा होता है की जो अन्ना हजारे केजरीवाल के हर कदम से कदम मिलकर चल रहे थे वो एकदम से कदम पीछे  क्यों मोड़ लेते है |क्योंकि वो अद्रश्य शक्ति बनना कहते है |जिससे जनता का भरोसा उन पर बना रहे और केजरीवाल अर्जुन की तरह राजनीती की महाभारत को लड़ते रहे है| और अच्छे बुरे परिणाम की परवाह किये बिना यह युद्ध जीते और राज्य करे भले राजतिलक उनका न होकर किसी और का हो पर युद्ध तो केजरीवाल को ही लड़ना है क्योंकि उनके अपने तो किरन वेदी और कुमार विश्वास  तो भीष्म पितामह की तरह कोरवो के साथ है पर मन उनका केजरीवाल के साथ ही है |
                   अब देखने  वाली बात यह होगी की आखिर इस युध्द का परिणाम क्या होगा क्योंकि अब बस कोरवो से नहीं लड़ना है अब तो बहुत कोरवो की तरह और भी बहुत सारे विरोधी युद्ध के लिए तैयार बैठे है और अन्ना -केजरीवाल के पास अस्त्र शस्त्र कुछ है तो वह है जनता या आम आदमी का भरोसा अब भरोसे और भ्रष्टाचार  की लड़ाई में क्या होगा है सच में  यह देखना  बहुत दिलचस्प  होगा और यदि यह महाभारत अन्ना -केजरीवाल जीत भी गये तो कब तक काजल की कोठरी में बिना काले हुए रह पाएंगे .....बहुत सारे सवाल है जिनका उत्तर सिर्फ वक्त देगा तो  हम तुम अब फिरसे एक और महाभारत देखने के लिए तैयार हो जाये और देखे की अब युद्ध कौन  जीतता है और अहिंसा और भरोसे  की बुनियाद पर कोनसा राजनेतिक महल तैयार होता है |

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