स्मारक इंडियंस पार्ट-17 (दीपावली पर घर जाने की हलचल)
दोस्तों यादों के सफर में आगे बढ़ने में मिल रही प्रतिक्रियाओं से आप सबके साथ होने का अहसास जिंदा हो रहा है और बार-बार कलम वापिस उसी दौर में लौट जाने को कह रही है..जिसे हम सब संजोकर जीवन में उस तस्वीर की तरह दिल में उतारना चाहते हैं जिस हर अल सुबह हम देख सकें..क्योंकि यादों के वो अंकुर इतने फलीभूत हुए है X कि यदि उनके फलों को खानें में हम अपनी ताउम्र लगा दे तो भी वो कम नहीं होंगे..सच में लोग छूट बोलते हैं कि जब तक धड़कने चलती है तब तक ही इंसान जिंदा रहता दरअसल वो धड़कने नहीं यादें होती हैं गुजरने वाले वक्त की और जब वो यादें खत्म हो जाती हैं तो शायद हम भी... पर चिंता मत करो जनाब हमारे पास तो यादों का इतना बड़ा साम्राज्य है शायद सिकंदर के पास जितना राज्य ना रहा होगा..इसलिए हम सब यादों के सिकंदर है..तो चले फिर से निकल पड़ते उसकी ही तरफ किसी को जीतने नहीं अपितू यादों क जीने लिए... कनिष्ठ उपाध्याय सच वो वो कक्षा होती है जब हम इतने मासूम होते हैं कोई भी हमें भगवान को रूप समझ ले लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ हम क्या हो जाते हैं वो तो सौरभ मौ और र...