स्मारक इंडियंस पार्ट-15


विदाई समारोह की यादें जारी है.......
कारे अभिषेक का पेर रय तुम विदाई समारोह में...राहुल ने अपने चिरपरिचित अंदाज में पूछा था मुझसे..का बताय यार पैसा हैं नई के कछू नव खरीद लय हम तो जोई शहढोल से मिलो कुर्ता पेन रय..चांगला है गोरे की आवाज आई..यार मराठी में चांगला और आहे के अलावा कभी कुछ समझ नहीं आया ...और ऊपर से गोरे के मुंह से तो पता नहीं मरीठी कौनसी भाषा बन जाती थी...हमतो ऊ सौरभ उमरमऊ को मंगा ले वोई पेरे...राहुल ने उत्तर दिया था

अरे हम लोग क्यों ना सब पगड़ी पहने अच्छा लगेगा,,,जयदीप का सजेशन था अच्छा था पर जयदीप का था तो कहा से अच्छा हो सकता था..उतने में दीपेश ,,कोउ कय कऊं की मदन कय मऊ की...ई खो और कछू काम नईया जो सारो डंडदीप...यार सही तो कह रहा है करन ने जयदीप को सपोर्ट किया था..पर राहुल या विवेक के सपोर्ट के बिना कहा कुछ हो पाना था..अपन बीमार थे तो क्या बोलते बाकी सब अपनी मटरगस्ती में मस्त थे..सौरभ,सजल, दीपेश तो इंदिरा मार्केट से खरीद चुके थे..अतुल,निशंक और भी कई0 मित्र दीपाली टेलर्स के यहां से कुर्ते बनवा चुके थे..कुछ ने पुराने कुर्तों पर ड्रायक्लीन करा कर उन्हें नया कर लिया था...मतलब तैयारी शबाब पर थी हर कोई अच्छा दिखना चाहता था क्योंकि अंतिम दिन था जिसे ताउम्र फिर यादों के आइने में देखना था इसलिए सब उसे अच्छा बनाना चाहते थे....

मैंने बढ़ा दुस्साहस किया था ऐसे ही प्रवचन हॉल को देखने का उतने में सौरभ अमरमऊ ने बीच में ही रोक दिया था क्या यार अभिषेक जी अबे ना देखो कल देख लेना अबे सस्पेंस खराब मत करो,,,अपन भी चुपचाप निकल लिये क्योंकि हमारे स्वागत के लिए ही तो आखिर प्रवचन हॉल को सजाया जा रहा था...

और वो सुबह भी हुई जिसका इंतजार था...सब कुछ पहले की ही तरह था ..लेकिन हम सब अनुभव कर रहे थे जैसे हवा के झोंके हम से दूरी बना रहे हों..सुबह की रोशनी धुंधली पड़ रही हो,,सूरज भी उगना ना चाहता हो..क्योंकि अच्छा वक्त और बुरा वक्त जब साथ-साथ होते हैं तब बहुत मुश्किल होता जज्बातों को कि किस तरह की संवेदनाएं ह्रदय में उठाए...सच में बढ़ा अनिर्वचनीय सा नजारा था उस सुबह का...हमें हमारे जूनियरों ने 5.30 से ही जगाना शुरू कर दिया था, बहुत प्यार से क्योंकि हम दोनों का ही दिन था..हम सब भी तैयार होने में लग गये...उतने में कारे निशंक दाड़ी तो बना ले,,,कैसो खब्बीसा सो लग रव..दीपक ने निशंक से कहा...ते अपनी सूरत देख ठाड़े..यार जल्दी निकल अभिषेक हमें सोई जाने है राहुल ने आवाज लगाई...उतने में विवेक.. राहुल बाके ते नंबर ने लगाओ वे मड़देवरा बारे आय 1 घंटा लगत उने...उतने में राहुल ने पानी फेका...राहुल सोच लियो फिर तुम जेओ सो हम का करें....बातों बातों में हंसी मजाक में सब लगे हुए थे...

उसके बाद सबसे पहले सजल तैयार दिखा..सच में हमेशा की तरह वो हममें से सबसे सुंदर लग रहा था,,,साथ में कपिल के होने से चार चांद लगा दिये...क्योंकि हमारी क्लास के मॉडल थे...सबको उस समय नहीं देखा था हम ऐसे ही सब साथ पूजा में आ गए थे...और फिर सबने नीचे जाकर पूजा के लिए धोती दुपट्टा पहन लिया था..विवेक तुम मेरे पास बैठना विवेक के साथ सबको बैठना होता था,,,लेकिन विवेक के दोनों तरप दोनों अभिषेक बैठ गए थे,,,और पूजन शुरू हुई...आकाश, एकत्व काफी जोश के साथ हमें नचाने के लिए भजन गा रहे थे और हम भी पूरी शिद्दत के साथ इस दिन को जी रहे थे मानो ये हमारी जिंदगी का अंतिम दिन हो..

सबसे ज्यादा कोई नाच रहा था तो वो था चिंतामन भाई इकदम मगन साथ ही प्रकाश उकलकर भी काफी  खुश था उस दिन...सजल की धोती बार बार खुल जा रही थी जिसके चलते वो अच्छे से नाच नहीं पा रहा था..दरअसल उसे राहुल बार बार खोल दे रहा था...लेकिन सब फिर भी नृत्य कर रहे थे..अपने अपने दोस्तों के साथ....जूनियरों के साथ तो अपने अपने ग्रुप के साथ..त्रिमूर्ति जिनालय पर हमारा वो अंतिम नृत्य था उसके बाद हमें एक साथ नृत्य करने का शायद ही फिर कभी मौका मिलने वाला था...ये सब लोगों के ध्यान में था इसलिए में देख रहा है,,,किसी के मन में उस दिन कुछ नही था..सब बहुत सारी यादें समेट लेना चाहते थे जिसकी जुगाली वो हमेशा करते रहे क्योंकि इस नृत्य के बाद जिंदगी हमें नचाने वाली थी...वो भी सबको अकेले अकेले............
भक्ति भाव के साथ पूजा करने के बाद नास्ते का दौर शुरू हुआ...स्पेशल नास्ता,,,सबने भर पेट खाया लेकिन ये ध्यान में रखते हुए की अभी खाना इससे भी ज्यादा टेस्टी मिलने वाला है...
और अब प्रवचन होल में स्वागत की तैयारी शुरू हुई...सबको उस दिन हमारे जूनियरों ने ये अहसास कराने की कोशिश की थी कि सभी अपने आपको विशेष फील करें...जिसके लिए सबके लिए अलग-अलग गाने सिलेक्ट किये गये थे..हर गाने पर हम में से कोई एक आता और हमारा जोरदार स्वागत किया जाता...इस तरह हम सब एक साथ एक मंच पर बैठ गए..हमें बुलाया भी हम सबके ग्रुप के हिसाब से था उसी के हिसाब से हम बैठे थे...

अब हमारे बोलने का समय था,,,वीरेन्द्र विवेक, जयेश,राहुल, संचालन कर रहे थे..शांति जी ने पहले ही हिदायत दे दी थी की दादा भी रहेंगे इसलिए अपनी सीमा में बोलना है साथ ही सिर्फ 5 मिनिट..लेकिन सबसे पहले अतुल ने जाकर 15 मिनिट बोला और शांति जी को आकर अतुल से माइक छीनना पड़ा..बढ़ा बुरा लगा लेकिन गलत गलत होता है...अतुल के बाद मुझे जाना था..जैसे ही में पहुंचा समझ ही नहीं आया क्या बोलूं क्या नहीं..सब बहुत इंतजार कर रहे थे कि में क्या बोलूंगा पर यकीन मानिये जिंदगी में पहली मरतबा मेरे पास शब्द नहीं थे में कांप रहा समझ नहीं आ रहा था क्या बोलूं...पर खैर जो दिल में आया बोल दिया...मेरी ही तरह सबने अपनी अपनी बात रखी,,,..उस वक्तव्य में मुझे उस दिन संयम और दीपेश साथ ही सजल और दीपक का वक्तव्य काफी प्रभावी लगा...

वक्त गुजरा सबके बोलने के बाद हमारे आदरणीय गुरूजनों ने भी हमें आशीवचन दिये साथ ही स्मारक के इतिहास में पहली बार हमारा स्मारक से सीधे प्लेसमेंट हुआ..जिसे मुकेश जी इंदौर ने हमें जॉब के लिए ऑफर किया..बाद में क्या हुआ पता नहीं.....
खैर विदाई समारोह का अंतिम पड़ाव पर था सब अपने अपने साथियों के साथ फोटो खिचा रहे थे...यादों को सब समेट रहे थे ..जितना हो सके उतना..फोटो..वीडियोग्राफी....हर तरह से उस वक्त को हम कैद कर रहे थे क्योंकि सब जानते थे...ये वक्त गुजरा तो सिवाय यादों के कुछ नहीं रहेगा...और आज सच में हमारे पास कुछ नहीं है सिवाय उन तस्वीरों को उकेर कर फिर से यादों का सजाने के.....

पर दोस्तों जो था जितना था बहुत था...और आज हम उसे याद करके ही जिंदगी के तन्हाई के पलों में फिर से मुस्कुरा सकते हैं...तो मुस्कुराते रहिए उन पलों को याद करते हुए.....अभी बस सिर्फ इतना ही और भी यादों के कई पन्ने है जब कभी पलटने में आएंगे तो साझां करूंगा...बने रहिए सफर में.....

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