अनकही मोहब्बत..जज्बातों की जुबान से...पार्ट-04



हम सब बहुत खुश थे पास जो हो गए थे हम सभी दोस्तों मैं से वैसे फेल तो कोई नहीं हुआ था ।पर एक अदभुत व्यक्तित्व के धनी को हिन्दी में सप्लीमेंट्री जरूर आई थी..जिसे लेकर उसके बड़े मजे लिए जा रहे थे..हमारे रिजल्ट आने की खुशी में सौम्या ने हमें अपने घर पार्टी पर बुलाया था...हम सभी पहुंचे थे गीतिका और मेरी दीदी भी साथ ही थी...हम हंसी मजाक कर रहे थे..मैंने दापिका को इशारों में अपने पास बैठने को कहा था..वो मेरे बगल में ही बैठी थी..जो निर्भय को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था..इसलिए वो जरा अनकंफर्ट सा फील कर रहा था..थोड़ी देर बाद सब लोग चले गए सिवाय मेरे दीपका और निर्भय के हम अभी भी सौम्या के घर पर ही थे..लेकिन महौल बड़ा शांत था कोई कुछ बोल नहीं रहा था। सिवाय सौम्या के लेकिन सौम्या को कोई सुनना नहीं चाहता था..मैं गीतिका से बात करना चाहता था..और सौम्या निर्भय से..पर निर्भय भी गीतिका के बात करना चाहता था लेकिन उस दिन की लड़ाई के बाद वो भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था..गीतिका से बात करने की...उस दिन सबके पास कहने के लिए इतना कुछ था पर कोई कुछ कह नहीं पा रहा था..लेकिन सबकी आंखे बहुत कुछ कह रही था...दीपिका ने खामोशी तोड़कर कहा क्या हुआ यार इतना गुमशुम क्यों हो सब..निर्भय ने कहा अरे कहा हां बोलो ना..वो दोनों फिर से बात  करने लगे थे । शायद आतिफ असलम के सान्गस् को लेकर पर मैंने उस समय तक इस तरह के किसी सिंगर का नाम नहीं सुना ना इसलिए मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था..वो एकदूसरे को गाना गाकर सुना रहे थे,.,.और में ना चाहते हुए भी मुस्कुरा रहा था क्योंकि अब निर्भय के साथ में कोई पंगा नहीं चाहता था.....
उस दिन मैंने कसम खाई की गीतिका को जो जो गाने पसंद हैं मैं वो सब सुनूंगा और याद करूंगा फिर क्या कहीं से भी जुगाड़ करके मैं गाने सुनने लगा...निर्भय और गीतिका में नजदीकियां बड़ रही थी और मेरी और गीतिका के बीच थोड़ी दूरियां बड़ रही थी..लग रहा था मेरे और गीतिका के बीच कुछ फासले आते जा रहे हैं लेकिन अभि तक ऐसा कुछ हुआ भी नहीं था कि कुछ फासले आ जाये क्योंकि अभी तो हम नजदीक ही नहीं आये थे..हां इतना जरूर है कि गीतिका के लिए दिल में बहुत अहसास, जज्बाज पनपने लगे थे..उसके साथ बहुत सारे सपने मैंने सजा लिए थे..तो कह सकते हैं सपनों की दुनिया में तो मुझे उससे और उसे मुझसे मोहब्बत हो चुकी थी लेकिन हकीकत कुछ और ही थी..अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि वो पसंद किसको करती है मुझे या निर्भय को..वो कभी अहसास भी नहीं होने दे रही थी कि वो मुझे पसंद नहीं करती..ऐसा होता तो वो बार  बार मेरे पास क्यों आती..लेकिन वो मुझे पसंद करती है तो फिर निर्भय निर्भय क्यों  दिन भर करती रहती है...बहुत ही उथल-पुछल चल रही थी उन दिनों दिमाग...सच में मोहमब्बत एक ऐसा नशा है जो चढ़ने के बाद बड़ी मुश्किल से उतरता है..या कहें कभी नहीं उतरता..गीतिका की मोहब्बत का ही शुमार था की रात-रात भर नहीं सोने के बाद भी मुझे थकान नहीं हो रही थी और मैं सुधरता जा रहा था।
अब मोहल्ले में हम बैठते तो थे लेकिन सिर्फ चार लोग मैं गीतिका निर्भय और पास के ही एक गांव से आई हुई सिमरन..सिमरन भी गीतिका की तरह छुट्टियों में अपने मामा के घर आया हुई थी..हम चारों रात दिन अब साथ नजर आते थे। शायद हम यह जानकर भी अनजान बन रहे थे कोई हमें देखकर कुछ नहीं कह रहा है लेकिन गीतिका की दीदी के साथ मेरे घर वाले अच्छी तरह सब समझ रहे थे लेकिन  कोई कुछ कह नहीं रहा था।चूंकि गीतिका की दीदी कई बार गीतिका को समझा चूकी थी। वो हम लोगों के साथ ना घूमे नहीं तो फिर कभी वो उसे घर नहीं बुलाएगी..लेकिन वो नहीं मानी..उसका ये नेचर हमारे मोहल्ले वालों को भी जरा अजीब लग रहा था। लेकिन उस समय हम किसी की भी बात नहीं मानने चाह रहे थे..बहुत लोग मेरे डर से तो बहुत लोग ऐसे ही कुछ नहीं बोल रहे थे...इसलिए हम भी बिंदास होकर उस टाइम को इंजवाय कर रहे थे......
निर्भय,गीतिका औऱ मेरी मुलाकातों का दौर जारी था..तभी एक दिन निर्भय अपनी नई गाड़ी लेकर आया था,,जिसे चलाने की गीतिका ने जिद की लेकिन निर्भय ने कहा तुम्हें मेरे पीछे बैठना पड़ेगा उसके बाद तुम्हें गाड़ी चलाने दूंगा...सच में उस दिन मुझे ऐसा लगा की साला अभी गाड़ी खरीद लूं और गीतिका को अपने  पीछे बिठाऊं..पर क्या करता,,मैंने  गीतिका को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो कहा मानने वाली थी...लेकिन मैंने जब उसे गुस्से से देखा तो उसने गाड़ी चलाने से मना कर दिया..गीतिका मेरे गुस्से से डरने लगी थी..क्योंकि वो देख चुकी थी कि मुझे कितना गुस्सा आता है...
और इसी तरह हमारा मिलना बिना रूके चलता रहा उसी असमंजस में कि आखिर गीतिका पसंद किसे करती है..चूंकि मैं और निर्भय गीतिका को लेकर कोई बात नहीं करते थे या कहें पहले की तरह ज्यादा बात भी नहीं करते थे...तब मुझे समझ आया किसी की नजदीकियां..किसी से नजदीकियां को कैसे दूर कर देती हैं...हम समझ ही नहीं पाते की पुराने रिश्तों की नींव कमजोर पड़ रही है वो भी ऐसे रिश्तों के लिए जिनका कोई वजूद नहीं है...हम पुराने रिश्तों को उतनी अहमियत नहीं देते जितने नये रिश्तो को देंते हैं किसी ने सही कहा कि -
             रिश्ते कभी भी
            कुदरती मौत नहीं मरते..
             इनको हमेशा इंसान
              ही कत्ल करता है
                 नफरत से...
                नजरअंदाजी से..
             तो कभी गलतफहमी से...
बस इसी तरह कुछ रिश्ते बन रहे थे तो कई रिश्तो छूट रहे थे..ऐसा लग रहा था मानों पुराने रिश्तों की कब्र पर नये रिश्तों का पौधा लगा रहा हूं....लेकिन अब मुझे बाकी रिश्तों की जगह गीतिका के साथ अनकहे से अहसासों के लिबास में लिपटा वो सुंदर सा रिश्ता ही अच्छा लग रहा था..बाकी के रिश्तों की मुझे परवाह नहीं थी क्योंकि इश्क वो मदहोशी है जो खुद को भी नहीं देखती..और इश्क में कई बार इंसा खुद के वजूद कको भी खो देता है पर अपनी मोहब्ब को पाना चाहता  है..क्योंकि इश्क की कोई वजह नहीं होती वो तो बिना वजह बिना शर्तों के होता है...इसलिए कोई क्या कहता है गीतिका को लेकर मेरे बारे में मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था..गीतिका के लिए में सबसे लड़ जाने के लिए तैयार था...लेकिन अभी भी वो रिश्ता बना नहीं था ..हमारे बीच कुछ था तो वो सिर्फ मेरी तरफ से ..हालांकि मैनें उससे कहा बहुत बार कि मैं उससे कुछ कहना चाहता हूं पर कभी कह नहीं पाया..वो हमेशा पूंछती भी रही पर मैंने उससे कभी कुछ नहीं कहा बस बोला जब टाइम आएगा तब बता दूंगा।
शायद वो टाइम अब आ गया था जब मुझे उसे सबकुछ बता देना चाहिए था। क्योंकि मुझे अब बाहर पड़ने जाना था और जहां जाना था वहां से फोन आ गया था कि मैं यदि कल नहीं पहुंचा तो मेरा एडमीशन नहीं हो पाएगा..चूंकि मैंने दसवीं में पढ़ाई ही अच्छी तरह इसलिए कि थी कि बाहर पड़ने जा सकूं..चूंकि अब बुलावा आ गया था और मुझे जाना था..मैंने सुबह सुबह गीतिका को ये बात बताई कि मैं जा रहा हूं...इतना कहना था कि वो कुछ नहीं बोली...और रोने लगी..मैंने उसको सम्हाला..बात तो सुनो..उसने कहा कुछ नहीं सुनना..तुम जा रहे हो ना..तो जाओ..चूकि उसे मुझसे पहले ही कोई बता चुका था मेरे जाने के बारे में इसलिए वो पहले से ही रो रही थी..मैं उससे कुछ बोलता की वो मुझसे लिपट कर बहुत ही जोर जोर से मुझसे रूकने के लिए कहने लगी..क्या अभि जाना जरूरी है..कुछ दिन और नहीं रूक सकते क्या...पता नहीं फिर कभी मिल पाएंगे या नहीं...
किसी से बिछड़ने का दुख क्या होता है मुझे उस दिन पता चला..मैं उसे कैसे बताता कि मैं भी नहीं जाना चाहता उसे छोड़कर..उस दिन मैंने जितने आसूंओं को पिया शायद ही कभी पीउंगा...दिल रोना चाह रहा था..लेकिन रो नहीं पा रहा था...सच में उन आसुंओ की कीमत बहुत होती है जो दिल में ही समा जाते हैं..उसका हर आंसु मुझे और उसे अपना बनाने के लिए मजबूर कर रहा था..मैं खुद भी नहीं संभल पा रहा था जो उसे संभालता..मैं उससे दूर जाना चाह रहा था लेकिन वो अभी भी मुझसे लिपटी हुई थी...अब बातें हो रहीं थी तो सिर्फ आंसुओं से...लोग कहते  हैं कि बस जुबान बोलती है..लेकिन उस दिन हम एकदूजे की धड़कन महसूस कर रहे थे और हमारी धड़कने वाली हर धड़कन आपस में बात कर रही थी...हर आंसु इतना कुछ कह रहा था की उसकों समझ पाना असंभल सा था..उस दिन समझ आया आसुंओ का स्वाद खारा क्यों होता है क्योंकि वो समुद्र की तरह असीम और अपने अंदर बहुत कुछ छिपाए हुए होते हैं जो उस समय हमारे आंसु हम दोनों को बता रहे थे।
जाते जाते मैंने सोचा क्यों ना अब दिल की बात गीतिका को बता दी जाये..और मैंने गीतिका से कहा गीतिका मैं तुमसे प्यार करता हूं..उसने कहा क्या कह रहे हो पता भी है तुम्हें या फिर बस एवई कुछ भी बोलते जा रहे हो..मैंने कहा मुझे नहीं पता मैं क्या कह रहा हूं बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूं..दीपिका ने कहा आशू प्यार व्यार कोई मजाक नहीं होता..मैंने कहा जज्बात तो होता है...उसने कहा समझने की कोशिश करो आशू हम सिर्फ अच्छे दोस्त  हैं और मैंने कभी ऐसा सोचा नहीं...मैंने कहा लेकिन..उसने मुझे बीच में हीं रोकते हुए कहा कुछ मत कहो...मैंने कहा तुम कुछ तो बोलो उसने कहा तुम अहमदाबाद पड़ने चले जाओ फिर फोन पर बताऊंगी..और उसने मुस्कुरा दिया...मैं कुछ बोलता उससे पहले ही उसने मेरे होठों पर हाथ रखते हुए मुझे चुप करा दिया..और बोली आज तुम्हें मेरे साथ रहना..मैंने कहा लेकिन एक शर्त है निर्भय हमारे बीच में नहीं रहेगा..उसने हल्की सी मुस्कान के साथ हां में सिर हिला दिया....
अब हम सिमरन के घर पर थे गीतिका मेरी डायरी में कुछ लिख रही थी...और उसने मुझे अभी पड़ने  के लिए मना किया था मैंने भी कहा ठीक है नहीं पड़ूगा..अब हम बातें कर रहे थे...मेरे पास सिर्फ दो घंटे ही बचे थे फिर मुझे जाना था...जैसे ही मैंने उससे जाने की बात की उसकी आंखो में फिर से आंसू आ गए..मुझे समझ नहीं आ रहा था जब गीतिका मुझसे प्यार नहीं करती तो रो क्यों रही है..इसलिए मेरा दिल बार-बार मुझसे कह रहा था कि वो मुझसे प्यार करती है...तभी उसने मेरे लिए गाना गाया मुझे वो गाना अच्छी तरह से याद है...
जिंदगी में कभी कोई आये ना रब्बा,आये तो फिर कभी जाये ना रब्बा....
तभी निर्भय भी वहां आ गया और उसने भी गाना गाया मेरे लिए---ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना...
हम सभी  की आंखों में आंसू थे...एकदूसरे से बिछड़ने के ..तभी मेरे घर से मेरे लिए आवाज आई शायद मेरी दीदी की आवाज थी....आशू जाना नहीं क्या,,जल्दी आओ..और में जाने के लिए खड़ा ही हुआ  था कि गीतिका वहां से रोते हुए पहले ही चली गई सिमरन गीतिका को सम्हालने उसके पीछे दौड़ी और निर्भय मुझे अपने साथ ले गया....
(आगे अभि बहुत कुछ बाकी है)


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