अनकही मोहब्बत..जज्बातों की जुबान से...2..



 (लगातार जारी है....)
अब बस मैं सुबह होने का इंतजार कर रहा था..हांलाकि मैंने निर्भय से शाम को मिलने के लिए कहा था क्योंकि में उसे सब कुछ बताना चाहता था..कि क्यों हुआ कैसा हुआ..निर्भय मेरा सबसे अच्छा दोस्त था हम साथ ही पड़ते  थे..लेकिन वो उस शाम नहीं आया,,मैं सुबह जैसे ही उठा मैंने उसे अपनी छत से उसकी छत की तरफ देखा वो मुझे दिखाई नहीं दी..और में अपने दोस्तों के साथ उसके घर के बाहर ही बैठ गया और अपने दोस्तों से बतयाने लगा .तभी मुझे किसी के गाने की आवाज आई..अब तो आदत सी है मुझे जीने में पता नहीं कौन से गाने की लाइन थी मैनें पहली बार सुनी थी,,पर उसकी आवाज में मुझे बड़ी ही अच्छी लग रही थी मै बड़े ध्यान से सुन रहा था..

तभी अचानक वो फुदकती सी मुझे दिखाई दी शायद अभी अभी सो कर उठी थी..और थोड़ी अनमनी सी, बाल बिखरे हुए थे लोवर टी शर्ट में वो और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी..उसने मेरी तरफ नहीं देखा लेकिन मेरी आंखे उसके अलावा कुछ और नहीं देख पा रहीं थी..अब भी में उसे ही देख रहा था पर वो अपने घर वालों के साथ बातें करने में बिजी थी..हालांकि में कोई इतना बुरा लड़का भी नहीं था कि मुझसे कोई बात ना करे लेकिन मेरे झगड़ालू स्वभाव ने मुझे बदतमीज बना दिया था..इसीलिए में भी सम्हल सम्हल कर सुधरा हुआ सा दिखने की कोशिश कर रहा  था। डर था कहीं गीतिका की दीदी उसे मुझसे बात करने के लिए मना ना कर दे..हांलाकि उसकी दीदी मेरी दूर की भाभी लगती था..अब मैं भी उनसे बात करने लगा था.. किसी ना किसू बहाने गीतिका से बात करने का मौका तो मिले..
घर के काम भी मैं अब करने लगा था और हां अब थोड़ा सा सजने संवरने और दिन में कई बार आईना देखने की भी आदत सी पड़ गई थी..मेरी दीदी अचानक हुए परिवर्तन को देख रही थी। हालांकि उन्होंने कभी मुझसे कुछ कहा नहीं पर वो समझ सब  रहीं थी और मैं भी अंजान बना हुआ था... वो जब भी दीदी से मिलने आती में भी उसके पास आ जाता कोई ना कोई बहाना लेकर..हमारे यहां एक आदत है हम सब शाम को एक साथ ही घर के बाहर बैठते हैं बातें करते हैं और उस दिन वो भी आ गई और बोली क्यों ना हम अंताक्षरी खेले..सब तैयार हो गए। और दो टीमें हमने बना ली वो मेरे अपोजिट टीम में थी..और अंताक्षरी शुरू हुई, उसे बहुत गाने आते थे और मुझे नई फिल्मों के गाने तो नहीं आते थे पर हां पुरानी फिल्मों के गाने जरूर मुझे कुछ एक याद थे..मगर मेरी टीम में निर्भय था जिसे सब गाने याद थे साथ ही उसकी आवाज भी बहुत अच्छी थी..

मैंने देखा अंताक्षरी के दौरान उन दोनों की बहुत जम रही थी ।अब मुकाबला हमारा नहीं उन दोनों के बीच के हो रहा था.. उन्हें देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था....मुझे बड़ा बुरा लग रहा था कि वो निर्भय से इतनी  बात क्यों कर रही है। हां ये बात जरूर थी की मैं औऱ निर्भय बहुत अच्छे दोस्त थे ।लेकिन जब बात मोहब्बत की आती है तो फिर दोस्ती हमेशा किनारे हो जाती है। अब मुझसे ज्यादा निर्भय से बातें कर रही थी..और अंत में अंताक्षरी में वो जीत गई साथ ही..सब जाने लगे लेकिन वो अभी भी निर्भय से बातें करने में लगी हुई थी.चूंकि रात अधिक होने से गीतिका के घर वाले भी उसे कई बार आवाज दे चुके थे। लेकिन वो शायद निर्भय में बड़ा इंटरेस्ट ले रही थी। मैंने भी निर्भय से कहा चल ना भाई चलते हैं। लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी और मैं गुस्सा होकर अपने घर चला गया....जब मैं घर पहुंच गया तब कुछ देर बाद निर्भय आय़ा और उसने मुझे आवाज लगाई लेकिन मैंने उसे अनसुना कर दिया और घरवालों से कहा की उसे जाने के लिए कह दो..शायद वो समझ गया था कि मुझे उसका गीतिका से बात करना अच्छा नहीं लगा..  


मुझे रातभर नींद नहीं आई में पूरी रात यही सोचता कि मुझे गाना गाना क्यों नहीं आता और मैं निर्भय की तरह स्मार्ट क्यों नहीं हूं और भी बहुत कुछ..अगली सुबह में अपने घर के बाहर गुमशुम सा बैठा..तभी उसने मुझे आवाज दी..आशू बैटमिंटन खेलोगे..मैंने ना में सिर हिला दिया..उसने मुझे आंखे दिखाई..फिर भी मैंने कोई जबाव  नहीं दिया..साथ ही मैंने उसकी तरफ देखना बंद कर दिया..लेकिन वो कहा मानने वाली थी..वो अचानक आई मेरा हाथ पकड़ा और बोली चलो खेलो...मैंने कहा मुझे नहीं खेलने जाओ..अपने निर्भय के साथ खेलो..उसने कहा..ओ..हो..जनाब का इसलिए मूड़ खराब है..बड़े पजेसिव हो रहे हो यार कि गल है..कही प्यार व्यार तो नहीं हो  गया मुंडे को....वो बड़ी ओपन माइंडिड थी..मैं तो डर गया ये बोल क्या रही है..मैंने खुद को सम्हालते हुए जरा शर्माते हुए कहा..अरे पागल हो क्या मुझे और प्यार....हुररररररर..हुरररर...उसने कहा तो फिर तुम्हें निर्भय से मेरा बात करना बुरा क्यों लगा..मैं कुछ नहीं बोला..वो बोलती रही ,,,वो बेटा..शर्माओ मत,,,अब बोल भी दो...शायद वो मुझे चिड़ा रही थी...मेंने उससे गुस्से में कहा ..अगर अब तुमने कुछ बोला तो में तुम्हारे साथ कभी नहीं खेलूंगी....

तभी अचानक निर्भय आ गया..उसे देखकर में जाने लगा..तभी गीतिका ने निर्भय को बुलाया और खेलने के लिए बोला..पर उसने मना कर दिया..शायद वो मुझसे बात करना चाहता था..मैंने उसे नजरअंदाज करने की कोशिश की लेकिन वो जबरदस्ती मुझसे बात करने लगा..और बोला क्या हो गया वे,  बात क्यों नहीं कर रहा है..तभी गीतिका बीच में आ गई, मैं बताऊं मैंने उससे कहा गीतिका तुम बीच में मत बोलो..नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..शायद गीतिका ने मेरा पहली बार असली रूप देखा था..मैंने निर्भय को जोर से धक्का दिया और जाने लगा..तभी निर्भय ने मेरी कॉलर पकड़ ली और बोला ज्यादा हीरो मत बनो वरना हाथ पॉव चलाना मुझे भी आते हैं..मैंने उसे जोरदार चांटा मारा और उसने मुझे भी हमारी लड़ाई गीतिका पहली बार देख रही थी । और मेरे मुंह से धाराप्रवाह गंदी गंदी गालियां भी वो पहली ही बार सुन रही थी,..वो बहुत डर गई थी और अपने घर के बाहर से हमारी लड़ाई देख रही थी..तभी मेरे बड़े भईया ने मुझे शांत करने की कोशिश की लेकिन गुस्सा आने के बाद मैं कहां किसी की मानने वाला था..जिसके लिए मैं बदनाम तो था ही...वो आज गीतिका सब देख रही थी..थोड़ी देर बाद बड़े भैया ने मुझे बहुत मारा..गीतिका के साथ पूरा मोहल्ला मुझे मार खाते देख रहा था..लेकिन लड़ाई का कारण किसी को पता नहीं था..मार खाते हुए रोते हुए मैंने गीतिका को देखा....वो रो रही थी शायद उसे अहसास हो गया था कि लड़ाई मेरी वजह से हो रही है..थोड़ी देर बाद सब शांत हो गया....

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