स्मारक इंडियंस पार्ट-14



(इसे पढ़ने से पहले स्मारक इंडियन की श्रृंखला के बाकी पार्ट भी अवश्य पढ़े)
विलुप्त होती यादों के कुछ अवशेष जब ह्रदय से टकराते हैं तो वो टकसाल में परिवर्तित हो जाते हैं,जो देर सबेर स्मृतियों के मृग मायाजाल में अविर्भाव को प्राप्त होते हैं,..यह बात हमेशा समझ से परे रही है की दिल के जज्बात समझना मुश्किल है या फिर दिल के अल्फाज,,खैर इन सब शब्दों के जंजाल में उलझना मेरा मकसद नहीं हैं मैं तो बस अपने यादों के सफर को आगे बढ़ाना चाहता  हूं..तो चलिए फिर शुरू करते हैं वहीं से सफर को जहां हमने इसे छोड़ा था,,किसी कवि की उन पंक्तियों के साथ...

मैं वहीं पर खड़ा तुमको मिल जाऊंगा,,,,जिस जगह जाओगे तुम मुझे छोड़कर
अश्क पी लूंगा में गम उठा लूंगा में,         तेरी यादों को सो जाऊंगा ओड़कर

पहले की तरह अब कलम भी समझदार हो गई है इसने शब्दों के जंजाल को तो सीख लिया है लेकिन सीधे दिल की बात कहना नहीं सीखा..बहुत कोशिश करता हूँ हर बार की सीधे बात शुरू करूं पर ना जाने क्यों शब्दों से प्रेमालाप सफर को लंबा करता जाता है...

वो विदाई समारोह का पल था..मुझे अच्छी तरह याद है सौरभ,सजल, अजय,विनोद और लगभग सभी विदाई समारोह में पहनने वाली पौशाक को खरीदने में विजी थे,,हर कोई इसी बात को लेकर चिंतित था की भाई विदाई समारोह में आखिर बोला क्या जाए..बस एक बात तय हुई थी की बोलना सबको है चाहे कुछ भी बोलो, पर सच बताऊं हमेशा बहुत बोलने वाले भी उस दिन बस पांच मिनिट नहीं बोल पाते...क्योंकि अहसास, जज्बात इतने होते हैं कि सबको अल्फाजों के पैमाने में बांधना मुमकिन नहीं होता...फिर भी हम सब तैयार थे..दूसरी तरफ कोई औऱ  भी था जो हम से भी ज्यादा तैयारियां कर रहा था,,वो थे हमारे जूनियर...और इस समय उनके साथ भी वही चल रहा था जो परंपरागत तरीके से सबके साथ चलता था...

खैर विदाई समारोह के दौरान में वैड रेस्ट पर था इसलिए विदाई समारोह की हलचल में ज्यादा मग्न तो नहीं हो पाया लेकिन हां मेरे जूनियर वीरेन्द्र, विवेक लगभग हर बात साझां करने जरूर आते थे कि किस तरह कक्षा को एक किया जाये,,अनुभव के हिसाब से बताया भी लेकिन कितना क्या फर्क पड़ा शायद वही जानते होंगे...

एक साथ तीन काम चल रहे थे पहला हमारी विदाई का दूसरा प्रवीण जी भाईसाहब की विदाई का तीसरा हम दोनों की विदाई की तैयारी का..सब अपना अपना काम कर थे..एक विवेक एंड कंपनी प्रवीण जी के विदाई के तैयारी में मशगूल थी...तो वहीं जूनियर हमारी विदाई की तैयारी में .... कुछ अपने जाने की तैयारी में..साथ ही सब एक दूसरे से खूब मिलजुल कर बातें भी कर रहे थे क्योंकि सब अब बिछड़ने वाले थे..सब अपने-अपने पसंदीदा जूनियरों को सलाह दे रहे की पांच साल क्या करना..बहुत ही अदभुत अनुभव होता है जब आपके जूनियर आपकी बातों को ध्यान से सुनते हैं उस समय ऐसा लगता है की आपसे अच्छा मार्गदर्शक दुनिया में नहीं है पर शायद इसका जबाव हम खुद से मिल ही जाता है कि हमने पांच साल क्या किया है..सच में जब कभी आंख बंद करो तो लगता है कि हम कितना कुछ कर सकते थे उन पांच सालों में बात सिर्फ पढ़ने की नहीं है बाकी भी बहुत कुछ व्यक्तित्व का विकास किया  जा सकता था..करने वालों ने किया भी पर कुछ अछूते रह गए क्योंकि उनकी नियति उतना ही चाहती थी...दूसरी बात जिसने जितना किया वो बहुत है क्योंकि वहां रहना ही आपको इतना कुछ सिखा देता है कि आप पूरी जिंदगी उसे जानते रह सकते हैं कि यार ये तो में वहां सीख चूका हूं...

विदाई की तैयारियों में एक विषय बहुत ही चर्चा में रहा जिसका उल्लेख करना जरूरी है क्योंकि उस समय हमारी क्लास में विवादित मुद्दा कोईऔर नहीं था ...वो है विदाई की वीडियो रिकार्डिंग का क्योंकि वो हमें खुद करना पड़ता था...हम सबने डिसाइड किया 200 रूपए पर हेड लेते हैं और शूटिंग करा लेंगे..लेकिन हमारे कुछ विद्रोही टाइप के मित्रों को शायद ये मशविरा पसंद नहीं आया और उन्होंने इससे वाकआउट कर लिया..कुछ लोगे के पास पैसे नहीं थे कुछ बोले...भैया ई साल व्यवस्था कौन हो पे..कुछ बोले हम कय दय हमें नई बनवाऊं ने सीडी फीडी,...बस फिर क्या था बात बिगड़ गई..इसे बीच में रोकते हुए एक बात और बताना चाहता हूं..हमारी क्लाश के बारे में हे भगवान एक साथ इतने नेता किसी कक्षा में नहीं देना वरना पता नहीं क्या होगा...सच में हमारी कक्षा के लोग राजनीति में चले जाएं तो उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता,,,,धर्मेन्द्र जी प्रवीण और शांति जी भाई साहब तो कहा करते थे की इस कक्षा में जितने लोग मेरी बात मानने वाले हैं उससे ज्यादा ना मानने वाले...सच में भाई पता नहीं नियति ने कहां से चुनचुन कर बदमाशों को एक जगह इकट्ठा कर दिया था...जिसका फल स्मारक ने भुगता साथ ही सीधे साधे लोगों ने....खैर अभी विदाई की बात अधूरी है लेकिन वो अगले पार्ट में क्योंकि हमें एक साथ ज्यादा झेलने की आदत नहीं...इसलिए थोड़ा इंतजार......

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