अनकही मोहब्बत..जज्बातों की जुबान से...



अरे भाई देख जरा गांव में कोई नया चेहरा आया है,.तुम आये तो आय़ा मुझे याद गली में आज चांद निकला, गाने की इन्हीं लाइनों के साथ निर्भय ने मुझे आवाज लगाई थी..मैं घर में गर्मियों की बोरिंग छुट्टियों के चलते गुमशुम सा बैठा था..पर निर्भय ही एक था जिससे मिलकर दिल को जरा सुकून मिलता था..पर दिल तो भला अकेलेपन को लेकर तड़प रहा था,,रोज शाम को नहर के किनारे इसी सोच में डूबे रहते थे की काश कोई तो होगी जो हमारे लिए बनी होगी,,दरअसल मोहब्बत,प्यार,इश्क ये शब्द टीवी में सुने जरूर थे पर इन सब का मतलब क्या होता है पता ही नहीं,,बस उम्र का सूरूर था की काश मोहब्बत हो जाये..

और शायद वो दिन मुझे अच्छी तरह याद है दोपहर के कोई 3 बज रहे  होंगे जब मैंने उसे देखा था..पता नहीं क्यों उसकी आंखों में देखकर ऐसा लगा की जिसकी तलाश थी वो मुझे मिल गई..हमारा घर बा मुश्किल कोई 50 कदम की दूरी पर होगा..मैं उसे रोज अपनी छत से देखा करता था,,वो भी शायद मुझे देख रही थी  पर ..हम में से किसी ने कभी बात नहीं की..दरअसल एक तो मैं बड़े शर्मीले टाइप का आदमी ऊपर से गांव का बड़ी शर्म आती थी...कि कैसे बात करूं क्या बात करूं,वो शायद अपनी दीदी के घर आई थी और गीतिका नाम था उसका और बनारस की रहने वाली थी..देखने में ऐसी की बस देखते जाओ..दिनभर उछलकूंद,उसकी हर अदा दिल को सुकून देने वाली थी...

लेकिन अब दिल को सुकून रहा कहा था..हरदम सिर्फ वही नजर आती थी..पर अभी तक उसको सिर्फ देखा ही था हमारा परिचय भी अभी तक नहीं हुआ था एकदूसरे से, हांलाकि रोज इसी हिम्मत के साथ उठता था की उससे आज बात करूंगा लेकिन उसके सामने आते ही मैं नजरे चुराकर भागने लगता था..पर इकदिन मुहल्ले में क्रिकेट खेलते समय वो भी आ गई मैं भी खेलुंगी..अब यार जिसे चुपचुप के देखने में ही रोमांच आ जाता हो उसके इतने कहने पर..आसू में भी खेलुंगी..उसने इतना कहा की सब मेरी और देखने लगे क्योंकि उस समय अपनी मोहल्ले की टीम का कप्तान में था..मैं कुछ सोच पाता उससे पहले  ही उसने मेरे हाथों से बल्ला छीन लिया और बोली आसू जाना गेंद फेंक...में भौचक्का इसलिए रह गया कि इसे मेरा नाम पता है..दिल ही दिल बड़ा मुस्कुरा रहा था.क्योंकि प्यार का पहला अहसास वो सुकून देता है जो ताउम्र की मोहब्बत नहीं दे पाती..

मैंने उसे पहली गेंद फेंकी जो जाकर उसकी नांक पर लगी..मुझे अच्छी तरह याद है सब हंस रहे थे और वो रो रही थी..उसने बस इतना ही कहा सब सही कहते है तुम्हारे बारे में तुम बहुत ही बदतमीज हो..खिलाना नहीं था तो मना कर देते, नहीं खेलती पर मारा क्यों..अब यार उसे कौन बताए उससे ज्यादा दर्द तो मुझे हो रहा था..मुझे लगा कि आखिर मैंने स्टाईल मारने के चक्कर में गेंद फेंकी ही क्यों,,,मैं उसके पास गया..स़ॉरी वो ना..बाउंसर हो गई थी..बात मत करो..उसने बड़ी तीखी आवाज में बात की..नहीं खेलना मुझे..उसका इतना कहना थी दिल में कबड्डी का खेल शुरू हो गया कि यार प्यार होने से पहले की उसका दी एंड तो नहीं हो जाएगी..

इसी सोच में डूबा था कि उसे कैसे मनाऊं, कैसे बात करूं,,बड़ा बुरा लग रहा था, बार बार खुद को कोसे जा रहा था कि आखिर मैंने इतनी बढ़ी गलती कर कैसे दी..तभी अचानक वो मेरे सामने थी..मैं इकदम डर गया ये क्या हो गया वो मेरे घर आई हुई थी ।मेरी दीदी से मिलने..उसने कहा आसू दीदी है क्या मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही दीदी ने उसे घर के अंदर बुला लिया..और मुझे मेरी मम्मी ने आवाज लगाई आसू चाय बन गई है जल्दी आ जाओ..हांलाकि जो उस दिन उसने मुझे बदतमीज कहा था वो सौ फीसदी सही था..क्योंकि में था ही बड़ा बदतमीज इसलिए घर वाले भी मुझे हाथों में लिये घूमते थे कही जनाब को गुस्सा ना आ जाये क्योंकि घर में जब तक मेरी लड़ाई नहीं हो जाती तब मेरा पेट नहीं भरता था...

वो मेरे बिलकुल सामने बेठी थी उसने ब्लेक कलर की जींस और  रेड कलर की टी शर्ट पहनी हुई थी..तभी अचानक उसने मेरी दीदी से कहा ये वही अभि है ना जिसने बचपन में मुझे साइकिल से गिराया था..अब यार साला मैं तो इकदम शर्मा गया..तभी मम्मी बोली क्या हुआ आंसू आज तू बड़ा शांत बैठा है, लग ही नहीं रहा है तू यहां भी है...मैं कुछ नहीं बोला और चुपचाप छत पर चला गया..बहुत बड़ा गांव नहीं था हमारा छोटा ही था पर था बहुत ही अच्छा..हम सब मिलजुलकर अच्छे से रहा करते थे..मैं उसकी बातें ही सुन रहा था उतने में निर्भय ने आवाज दी आसू खेलने चलेगा क्या मैंने माना कर दिया.. जिसे सुनकर वो भी  बड़ा आश्चर्य में पड़ गया की मैंने खेलने के लिए मना कैसे कर दिया..तभी उसने आवाज दी क्या हुआ कहीं..मैंने उसे बीच में ही चुप करा दिया और उसे जाने के लिए कहा और कहा की शाम को मिल सब बताता हूं..

जब में छत में अकेला था तो वो भी छत पर आ गई और बोली आसू कैसे हो मैंने आँखे नीचे करके के कहा ठीक हूं..पर तुम्हें मेरा नाम कैसे पता..बोली तुम्हें कौन नहीं जानता..जब यहां आई थी दीदी ने सबसे पहले यही कहा था कि तुम्हारे साथ नहीं खेलना..तुम बहुत लड़ाकू और बजतमीज हो..तब मैने पलटकर कहा फिर तुम उस दिन मेरे साथ क्रिकेट खेलने क्यों आई और आज मुझसे बात क्यों कर रही हो..तभी उसने बड़ा प्यारा सा जबाव दिया जिसे सुनकर दिल को ऐसी अनूभूति हुई जैसे किसी आत्मसाधक को परमात्म तत्व से साक्षात्कार होने पर होती है  ..उसने कहा सब तुम्हें बुरा कहें पर तुम मुझे अच्छे लगते हो..और में तुमसे दोस्ती करना चाहती हूं..और उसने अपना हाथ मेरे सामने बड़ा दिया..उसे छूने का अहसास मानो पूरे शरीर में बिजली कौंध गई हो..आज तक तो सिर्फ सपने हसीन देखे थे आज सबकुछ सच हो रहा था..हालांकि भरोसा करना मुश्किल था पर मेरा हाथ उसके हाथ में था..मेरे उन्माद और जज्बातों के बवंडर का कोई ठिकाना नहीं था,,बार बार खुशी के आंसुओं की सुनामी बनकर पलकों पर आया करती थी और में उन्हें छुपाने की भरकश कोशिश करता..मेरी जुबान में जैसे ताला लग गया हो मैं कुछ नहीं बोल पा रहा था..तभी उसने कहा क्या हुआ आसूं नही करनी दोस्ती..मैं इकदम जागा सा अरे नहीं.नहीं नहीं..फिर क्या सोच रहे हो..मैंने कहा कुछ नहीं बसे ऐसे ही..पर उसने शायद मेरी आंखो को पड़ लिया था...क्योंकि प्यार हो जाया करता है तो आंखो में वो नजर आने लगता है और हर कोई उसे आसानी से पड़ सकता है वो कहते हैं ना मेहब्बत को नूर प्यार होने पर दिकने लगता है.. बस वहीं दिख रहा था...तभी उसने कहा हम दोस्त बन गए ना..तो फिर हम कल से क्रिकेट साथ खेल सकते हैं ना ..और हां अबकी बार तुमने मुझे मारा तो समझ लेना..में तुमसे कभी बात नहीं करूंगी...बड़ी प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ वो अपने घर चली गई...और में अंत तक उसे जाते देखता रहा....

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