
स्मारक इंडियंस “ यादों का कारवां ” पार्ट-09 (इसे पढ़ने से पहले कृप्या भाग-1-2-3-4-5-6-7-8 जरूर पढ़े) नजदीकियों के बाद के फासले बहुत दर्द देते हैं,जिन्हें ना आप जता सकते हैं औऱ ना ही छिपा से हैं,और हर वो नजदीकि जो आपके दिल के करीब है,वो कहीं ना कहीं दिल में इक टीस जरूर हमेशा पैंदा करती रहती है,कि वो अजीज लोग दिल के करीब तो हैं पर जिंदगी के करीब क्यों नहीं हैं..खैर एक बात औऱ भी है कि दूरियां तय कर देती हैं कि नजदीकियों में गहराई कितनी है,और शायद हम लोगों में जो आज एक दूसरे के प्रति प्रेम,समर्पण,भरोसा पनपा है,उसमें कही ना कहीं हमारी दूरियों का ही हाथ है,पर दोस्तों “ अपनों से मिलन कैसा अपनों से विछड़ना क्या ” वाली बात हम जानते और समझते हैं इसलिए हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट छाई रहती है.... माफ करना दोस्तों हमेशा विदाई का वक्त जरा भावुक कर देता है और दोस्तों के परिचय का अंतिम दिन है..इसलिए जरा भावुक होकर लिख रहा हूँ...,कोशिश करूंगा जल्द पटरी पर आ जाऊ...तो शुरू करते हैं परिचय का अंतिम सफर बचे हुए अजीज मित्रों के साथ यादों का सफरनामा..... सजल -सचिन...सचिन..सचिन...