स्मारक इंडियंस “ यादों का कारवां ” पार्ट-09 (इसे पढ़ने से पहले कृप्या भाग-1-2-3-4-5-6-7-8 जरूर पढ़े) नजदीकियों के बाद के फासले बहुत दर्द देते हैं,जिन्हें ना आप जता सकते हैं औऱ ना ही छिपा से हैं,और हर वो नजदीकि जो आपके दिल के करीब है,वो कहीं ना कहीं दिल में इक टीस जरूर हमेशा पैंदा करती रहती है,कि वो अजीज लोग दिल के करीब तो हैं पर जिंदगी के करीब क्यों नहीं हैं..खैर एक बात औऱ भी है कि दूरियां तय कर देती हैं कि नजदीकियों में गहराई कितनी है,और शायद हम लोगों में जो आज एक दूसरे के प्रति प्रेम,समर्पण,भरोसा पनपा है,उसमें कही ना कहीं हमारी दूरियों का ही हाथ है,पर दोस्तों “ अपनों से मिलन कैसा अपनों से विछड़ना क्या ” वाली बात हम जानते और समझते हैं इसलिए हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट छाई रहती है.... माफ करना दोस्तों हमेशा विदाई का वक्त जरा भावुक कर देता है और दोस्तों के परिचय का अंतिम दिन है..इसलिए जरा भावुक होकर लिख रहा हूँ...,कोशिश करूंगा जल्द पटरी पर आ जाऊ...तो शुरू करते हैं परिचय का अंतिम सफर बचे हुए अजीज मित्रों के साथ यादों का सफरनामा..... सजल -सचिन...सचिन..सचिन...
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Showing posts from December, 2013
“आप” की पार्टी “आप” की सरकार...मान गए केजरीवाल..
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सच में चाणक्य का वो वाक्य आज जितना सच प्रतीत हो रहा है उतना कभी नहीं हुआ “ असंभव कुछ भी नहीं होता “ वास्तव में कुछ भी नहीं।सब संभव है बस निर्भर करता है। हमारी संकल्पशक्ति पर , हमारी सोच पर , दृष्टिकोण पर हमारी उम्मीद और भरोसे पर , पूरी कायनात में परिवर्तन संभव है।जिसे आज परिवर्तन एनजीओ चलाने वाले शख्स ने बता दिया , औऱ दिखा दिया सारी दुनिया को सबकुछ बदल सकता है , आप कोशिश करके तो देखो , हर कोशिश सफल होती है बसर्ते उस कोशिश में लग्न , उम्मीद , नियत , भरोसा समाहित हो , दुनिया की कोई ताकत उसे पूरा होने से नहीं रोक सकती। अरविंद केजरीवाल ने आज ना जाने कितने सवालों के जवाब दे दिए और देश को एक नई दिशा दिखा दी जो भारत को सही दशा देने की शुरूवात है।भले ही आप की सरकार दिल्ली में अब बनने जा रही हो।पर लोगों के दिलों में तो आप की सरकार कब की बन गई।क्योंकि केजरीवाल ने बताया है देश के आम लोगों को उनकी देश के प्रति भूमिका क्या है , देश के प्रति कर्तव्य क्या है।लोगों को अहसास कराया है लालबत्तियों में घूमने वाले लोग कुछ अलग नहीं होते वो भी हम में से ही होते हैं।पर शायद भू...
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स्मारक इंडियंस * यादों का कारवां * पार्ट-08 (इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5-6-7 अवश्य पढ़े) “ कालांतरास्मरमणयोग्यताहिधारणा ’ -विक्रांत जी ने परीक्षामुख की कक्षा में धारणा ज्ञान की यही परीभाषा पढ़ाई थी , कि बहुत सारा ज्ञान हमारे धारणा ज्ञान में होता है जिसे हम कांलातर में याद कर सकते हैं , और आज वही धारणा ज्ञान वो सबकुछ याद दिला रहा है , जो हमने कालांतर में या कहे बीते पांच सालों में स्मारक में पढ़ा था , वो अपनो से अपनापन , वो संस्कार , वो ज्ञान औऱ भी बहुत कुछ जो हमने पाया था , जिसमें तुम सब जैसे अच्छे मित्र भी शामिल हो , जिनके साथ गुजारा हर वो पल आज भी धारणा ज्ञान में जस ता तस समाहित है जैसा साथ उस समय तुम लोगों का था , और भाई याद क्यों ना रहे , याद करने के लिए तुम लोगों से अच्छे लोग भी तो नहीं हैं इस कायनात में... उसी कायनात में बसे उन 28 में जो भाई लोग रह गए हैं ,,, उन्हें भी पकड़ कर संज्ञान में ले लेते हैं , क्योंकि जो बचे हुए शख्स है उनके बिना हम क्लास की कल्पना भी नहीं कर सकते , वैसे हम किसी एक के भी बिना क्लास को पूरा नहीं कर पाएंगे ,,, पर यार ये जो आगे आने वाले लो...
स्मारक इंडियंस*यादों का कारवां*पार्ट-7
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(इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5-6 अवश्य पढ़े) लड़खड़ाते कदम कब चलना सीख जाते हैं पता नहीं चलता शायद इसलिए कहते हैं कदमों की आहटें तय करती हैं आप कितने बढ़ें हो गए हैं , या कितने बढ़ें होने वाले हैं।हम सब के चलने से होने वाली गड़ गड़हाटों के स्वर बदलने लगे थे , मतलब साफ था , सब बढ़े होने लगे थे। , अपनी अपनी मंजिलों को तलाशते हुए और सबने अपनी अपनी मंजिलों की तरफ उन कदमों को बढ़ाने शुरू कर दिया था।और आज बहुत लोग उस मंजिल को या तो पा गए हैं या पाने की जुगत में अब भी लगे हुए हैं।लेकिन यारो हम भले ही कितने ही बढ़े हो जाएं , कही भी क्यों ना पहुंच जाए , कितना भी कुछ हासिल क्य़ों ना कर लें , पर बचपन जिन दोस्तों के साथ बीता है उनके साथ ना होने की कसक हमेशा सालती रहती है।दिल हमेशा कहता something is missing yar और वो something ये कमीने दोस्त ही होते हैं , जो चाहे अनचाहे याद आ ही जाते हैं , और आना जरूरी भी है , क्योंकि साले ये दोस्त जिंदगी का हिस्सा नहीं जिंदगी ही तो हैं...... तो चलो भाई फिर उसी जिंदगी के हमसफर साथिय़...
स्मारक इंडियंस *यादों का कारवां*पार्ट-06
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(इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5 अवश्य पढ़ें) सफर दर सफर कुछ चीजें हमसे जुड़ती चली जाती हैं , तब चाहे फिर वो कोई इंसान हो , या कोई जगह हो या फिर कोई चीज , हमसे जुड़ने वाली वे चीजें हमारी अभिन्न अंग बन जाती हैं , जिसके बिना अपने होने की कल्पना करना बढ़ा मुश्किल लगता है... , खैर कल्पनाएं जितनी हसीन होती होती हैं उतनी ही डरावनी भी होती हैं , और बहुत बार डरावनी कल्पनाएं हसीन बन जाती हैं तो हसीन कल्पनाएं डरावनी। जैसे जब हम स्मारक जाने वाले थे तब वो घर से दूर जाने वाली कल्पनाएं बहुत डराया करती थी पता नहीं कैसी जगह होगी , कैसे लोग होंगे पर , पर बाद में जब वो कल्पना यथार्थता में सामने आई तो उससे ज्यादा हसीन कल्पना शायद ही हमारे लिए कोई दूसरी होगी..वहीं हम सीनियर बनने और अपने विदाई समारोह की प्रतिक्षा के साथ ही स्मारक से बाहर जाकर दुनिया में कुछ करने की कल्पना करते थे ..तब भले ही वो कल्पना हसीन थी पर आज इस भागमभाग भरी स्वार्थ और संवेदनहीन दुनिया को देखकर उसकी कल्पना करके रूह कांप जाती हैं...इसलिए कहते आपका अतीत भले ही कितना ही कड़वा क्यों ना रहा हो पर उसकी यादें हमेशा मि...
स्मारक इंडियंस “यादों का कारवां”पार्ट-5
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(इसे पढ़ने से पहले भाग--1-2-3-4 अवश्य पढ़ें) आसमान में उड़ने वाली पतंगे...देखते देखते कुछ इस तरह ओझल हो जाती है,जैसे उनका कभी यथार्त में वजूद रहा ही ना हो,पर पतंग उड़ाने वाले के जहन में उसका वजूद हमेशा कायम रहता है,पतंग कभी भी इतनी उड़ान नहीं भर सकती की उसके अवचेतन से दूर चली जाए,और शायद वो पतंग भी दूर नहीं जाना चाहती पर क्या करें कभी ना कभी तो डोरी टूटनी या छूटनी तो है ही,हम सबका मिलना बिछुड़ना बहुत कुछ पतंग औऱ डोर के रिस्ते की तरह हैं,जिसमें कुछ डोरें तो टूट गई है,इसलिए हमसे बहुत दूर चली गई है,पर कुछ आज भी बंधी हुई हैं औऱ खुले आसमान में हम भले ही कितना उड़ लें पर वापिस आना तय है,,,,क्योंकि वो पाठ हमें बहुत अच्छे से याद है “ देख लिया हमने जग सारा,मेरा घर है सबसे प्यारा ” .... चलो वापिस अपने घर में लौटते है औऱ शुरू करते हैं..बचे हुई अजीज मित्रों की परिचय श्रृंखला को,जिन्हें चाहे जितना जाना जाए पर हमेशा लगता यही है..यार बहुत कुछ छूट गया,,,पर क्या करें यार शब्दों का पैमाना तो है,यादों का नहीं नहीं उन्हें कैसे शब्दों के लिबास में ढालू..बहुत कुछ यादों का तन ढकना रह जाता है...इसलिए...
स्मारक इंडियंस ” यादों का कारवां’ पार्ट-4
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स्मारक इंडियंस ” यादों का कारवां ’ पार्ट-4 ( इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3 अवश्य पढ़े ) किसी के अंदर कितना कुछ छिपा होता है बहुत मुश्किल होता पता लगाना,कौन क्या है आप उसका वर्तमान देखकर नहीं कह सकते।उसकी अच्छी नियत उसकी नियति तय करती है। पता लगाना बहुत मुश्किल है, बिल्कुल नीति शतक के उस एक श्लोक की तरह... जिसे राजधर अधिकतर समय सुनाते रहते थे ,संस्कृत से वास्ता खत्म होने के बाद बाकी सब तो विस्मृत हो गया पर वो श्लोक आज भी जहन में है ” स्त्री चरित्रं मनुषस्य भाग्यं देवो ना जानाति कुतो मनुष्या : ” ये श्लोक हमारी क्लाश पर पूरी तरह फिट बैठता है,किसी ने सोचा भी ना होगा कि हर दम मस्ती करने वाले ये नेता लोग इतने सफल होंगे जितने हम आज हैं औऱ आगे होने वाले हैं, दूसरे के भाग्य का तो पता नहीं पर अपनी क्लास के लोगों के लिए तो कह सकता हूँ कि ये लोग जहां रहेंगे,वहां का इतिहास नहीं बनेंगे अपितू वहां का इतिहास बदल देंगे औऱ वो जगह इनके नाम से ही जानी जाएगी..... चलो यार बहुत लोग बाकी है.ये शब्दों की लहरे ना भी पता नहीं कहा कहा बहा ले जाती हैं,पहुंचना कहीं चाहते हैं, पहुंच कही जाते हैं पर भाई...