स्मारक इंडियंस*यादों का कारवां*पार्ट-08
(इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5-6-7 अवश्य पढ़े)
कालांतरास्मरमणयोग्यताहिधारणा -विक्रांत जी ने परीक्षामुख की कक्षा में धारणा ज्ञान की यही परीभाषा पढ़ाई थी,कि बहुत सारा ज्ञान हमारे धारणा ज्ञान में होता है जिसे हम कांलातर में याद कर सकते हैं,और आज वही धारणा ज्ञान वो सबकुछ याद दिला रहा है,जो हमने कालांतर में या कहे बीते पांच सालों में स्मारक में पढ़ा था,वो अपनो से अपनापन,वो संस्कार,वो ज्ञान औऱ भी बहुत कुछ जो हमने पाया था,जिसमें तुम सब जैसे अच्छे मित्र भी शामिल हो,जिनके साथ गुजारा हर वो पल आज भी धारणा ज्ञान में जस ता तस समाहित है जैसा साथ उस समय तुम लोगों का था,और भाई याद क्यों ना रहे,याद करने के लिए तुम लोगों से अच्छे लोग भी तो नहीं हैं इस कायनात में...
उसी कायनात में बसे उन 28 में जो भाई लोग रह गए हैं,,,उन्हें भी पकड़ कर संज्ञान में ले लेते हैं,क्योंकि जो बचे हुए शख्स है उनके बिना हम क्लास की कल्पना भी नहीं कर सकते,वैसे हम किसी एक के भी बिना क्लास को पूरा नहीं कर पाएंगे,,,पर यार ये जो आगे आने वाले लोग हैं..य़े जरा नेता टाइप के हैं ना इसलिए जबरदस्ती इनका मान बढ़ाने पड़ रहा है,,वरना जनाब अभी मुंह बना लेंगे......



करन शाह- कभी कभी हम सबके साथ ऐसा होता है हम किसी के बारे में कुछ सोचते हैं दरअसल वो होता कुछ और है..कभी आप लोगों के साथ ऐसा हुआ होगा ,उन्हीं लोगों में करन शाह भी शामिल हैं..जैसा की में आपको पहले पार्ट में ही बता चुका हूँ, करन शाह क्लास में थोड़ी देर से आए थे और मोस्ट अवेटेड पर्सन थे,जिनके बारे में धर्मेन्द्र जी उपाध्याय कनिष्ठ की क्लास में उनके आने से पहले रोज ही बोला करते थे,,,ये अलग बात है आने की उनके आने के बाद उन्होंने करन का क्लास में कभी नाम नहीं लिया..पर उस समय करन की टीआरपी सातवे आसमान पर थी..जिसके चलते करने को देखने की बढ़ी क्य़ोरोसिटी हुआ करती थी.कि भाई आखिर कौन है ये करन शाह, औऱ थोड़े इंतजार के बाद आखिरकार करन शाह आ ही गए स्मारक इकदम कोम्पलेन बॉय,गोरे चिट्टे,क्यूट,कोई लड़की उस समय देखती तो करन पर फ्लेट हो जाती।सच में करन को देखकर लगता था,भाई बढ़े घरों के लड़के ऐसे होते हैं फिर बाद में पता चला ऐसे ही तो होते हैं(अब जरा हंसना बंद करो)आगे बड़ते हैं करन के साथ...हम से ज्यादा हमारे सीनियर्स करन का इंतजार कर रहे थे.जिसमें अतुल जी ललितपुर और शाकुल जी मेरठ प्रमुख थे,मतलब उपाध्याय कनिष्ठ में सबसे ज्यादा किसी की टीआरपी थी तो वो करन शाह की ही थी..यार वो था ही ऐसा इकदम बिंदास,बेपरवाह,मजे से रहने वाला इंसान।और हम लोग भी बड़ी इज्जत करते थे,,क्योंकि जैसा मैंने संयम के प्रकरण में बताया था,करन कम्प्यूटर के युग में पैंदा हुआ था..वैसे हम लोग भी कम्प्यूटर के युग में पैंदा हुए थे,पर हमने तो परियों की तरह सिर्फ कम्प्यूटर की कहानियां सुनी थी।इसलिए जब कभी करन कुछ बताया करता अपुन लोग भी टकटकी लगाकर सुना करते थे। क्योंकि एक ही तो टेक्नीकल टाइप का इंसान था  रे बाबा..और हां इंतजार करते थे,कब करन के साथ मोती पार्क वाले नेट कैफे में जाने का सौभाग्य मिले..करन निशंक औऱ दीपक का खास दोस्त,घूमने फिरने गाने का बेहद शौकीन,,इतना शौकीन की पोटी जाते वक्त भी कान में एफएम लगाकर जाया करते थे जनाब,और मोबाइल का भी जनाब को बड़ा शौक हुआ करता था,इसलिए जब किसी का मोबाइल मिल जाए उसे बस चाट जाना हैं। फिर चाहे वो मेरा गरीब 1110 ही क्यों ना हो..अपने गुजराती भाई थे ही ऐसे इन्होंने ने जीवन में एक ही अच्छा काम किया था ..और वो ये की जनाब गुजरात में पैदा हुए थे...अरे  हां जहां से बात शुरू की थी वहीं वापिस लौटता हूँ कि हम जिसके बारे में जो सोचते है वो कभी कभी बिल्कुल ऑपोजिट ही निकलता है औऱ उसमें करन शाह बिल्कुल सही बैठता क्योंकि उसकी जैसी छवि गढ़ी गई थी,करन शाह बिल्कुल अलग थे..अपनी बात पर हमेशा अड़े रहने वाले करन शाह को समझना इतना कठिन होता था कि आप किसी को समझाना ही भूल जाए...उपाध्याय कनिष्ठ या वरिष्ठ में घटी वो इश्क मुहब्बत वाली घटना जिससे लगभग सब परिचित होंगे।उस घटना के कारण करन को काफी बदनामी झेलनी पढ़ी..साथ ही करन को अपने पहले प्यार को छूटने का भी दर्द था..लेकिन करन ने जल्द ही उस  बुरे दौर से निकलकर वापिसी की दोनों जगह,कॉलेज औऱ धर्म में..और मुझे लगता है कॉलेज से ज्यादा इन्हें धर्म से वास्ता था..करन शाह हांलाकि क्लास छोड़कर बीच में ही जाने वाले लोगों कि लिस्ट में पहले नंबर पर थे। लेकिन कुदरत का करिश्मा देखिए करन आज भी अपना वजूद स्मारक में बनाए हुए है..और हम लोगों की क्लास का प्रतिनिधित्व कर रहा है..आजकल करन बहुत बढिया गाने भी गाने लगा है ..और गिटार भी बजाने लगा है..और स्मारक के  तत्वप्रचार का बहुत ही अद्वितीय कार्य कर रहा है...जब कभी करन आपको मिले तो उससे गाना जरूर सुनिएगा आप उसके दीवाने हुए बिना नहीं रहेंगे..भाई मैंने तो जब अभी शिविर में करन को सुना तो मैं तो दीवाना हो गया..आपका दीवानापन उसे सुनने के बाद ही पता चलेगा..तो ज्यादा मत सोचिए..दिसंबर का महिना है बड़े दिनों की छुट्टियां हैं तो बैग पैक किजिए औऱ स्मारक भ्रमण पर निकल पड़िए करन शाह आपको आपका इंतजार  करता हुआ नजर आएगा....अपना भाई है ही दोस्तों पर जान झिड़कने वाला,बड़ा भावुक टाइप का इंसान इसलिए हम भी तो गुजराती भाई पर जान देते हैं और हां करनशाह आज भी हमारी पूरी क्लास को साथ जोड़े हुए है सोशल साइटस के माध्यम से ..लेकिन भाई करने शब्द बार बार तुम्हारे बारे में और लिखने को मजबूर कर रहे हैं लेकिन भाई थोड़ा जज्बातों को कंट्रोल करके आगे बढ़ता हूं..तेरे लिए दिल की बातें तुझे कभी और लिख कर भेज दूंगा.................

सौरभ जैन खड़ैरी- एक कहावत शायद आपने सुनी होगी..काट डालूंगा फाड़ डालूंगा..मतलब साला कुछ भी हो जाए अपुन का तो जो करना है वो अपुन कर डालेगा..खैर सौरभ भाई तुम्हारे बुलंद इरादे और निर्णय लेने की गजब की क्षमता को सलाम करता हूँ... चलो अब 2005 के सौरभ से मुखातिब होते है..सौरभ को अभय जी खड़ेरी के साथ सबसे पहली बार देखा था.और मुझे याद है जितने भी सीनियर मिलते थे उनमें से शायद ऐसा कोई होता हो जो सौरभ को ना जानता हो,इसलिए अपुन ने सोचा चलो यार इसके साथ रहने में फायदा है कम से कम सबसे पहचान तो हो जाएगी।और हुआ भी यही मेरी सब सीनियर्स से सौरभ के कारण ही पहचान हो पाई।सौरभ भाई थोड़े से सनकी टाइप के इंसान थे.इसलिए इनके हाथ में यदि किसी के कपड़े आ जाए तो पता चला भाई कपड़े ही फाड़ दिए या फिर कैची से काट दिए।इनकी लीलाएं भी कुछ कम नहीं थी,रोज रोज इंदिरा मार्केट जाकर कुछ ना कुछ खरीद कर आ जाना और सबको दिखाना.इसे तो छोडिए जनाब की बातें तो और भी बड़ी बड़ी हुआ करती थी,कि इनके घर में दो दो एसी लगे हैं..बुलेरो गाड़ी इनके इंतजार में खड़ी रहती है जिसमें जनाब अपनी गर्लफेंड को लेकर घुमते हैं।पर बाद में पता चला जनाब को साइकिल चलाना नहीं आता बुलेरो क्या खाक चलाएंगे..भाई सौरभ बहुत बनाया तुमने हमको औऱ हम सब भी बनते रहे क्योंकि भाई का बताने का तरीका ही इतना लाजबाब होता था कि यकीन करना ही पड़ता था...और हां ऐसी बात नहीं है कि सौरभ भाई इनमें से कुछ खरीद नहीं सकते उनके लिए ये सब बायें हाथ का काम है...और भाई के बारे में दूसरी बात इन्होंने कभी किताब उठाकर नहीं देखी होगी  क्योंकि उस मामले में ये जरा कच्चे थे,लेकिन जब कभी रिजल्ट आता था ,थो अच्छे अच्छे पड़ने वाले उंगलिया चबा लेते थे कि साला इसके इतने नंबर कैसे आ सकते हैं ।पर भाई कि किस्मत थी ही इतनी लाजबाब की पूछों मत।हर जगह सफलता ही हाथ लगती थी,सभी अधिकारियों से सौरभ भाई के बहुत अच्छे संबंध थे.जिसके चलते स्मारक के अंदर की राजनीति की खबरें तुरंत हम तक पहुंचती थी,फिर चाहे वो विजय जी मोड़ी का प्रवीण द्वारा पिटाई मामला हो या फिर धर्मेन्द्र जी औऱ प्रवीण जी की स्मारक छोड़ने वाली बात।इन सबका सबसे पहले सौरभ ही ने किया था।क्योंकि इनके परिचितों का नेटवर्क बड़ा तगड़ा था,वो तो भला हो इनका ये मीडिया में नहीं आए वर्ना आज तक न्यूज चैनल के संपादक होते ।और भी सौरभ के साथ अच्छी बुरी घटनाएं साथ घटी हैं औऱ सौरभ ने सभी में बराबर का साथ भी दिया है,फिर चाहे वह शर्त लगाकर सम्राट टॉकीज जाना..ये अलग बात है वहां पहले से हमारे जूनिर्यस और सीनियर की मौजूदगी के चलते टॉकीज के अंदर नहीं जा पाए पर भाई को तुम चैंलेज कर दो और भाई पूरी ना करे तो फिर वो सौरभ कैसे..और भी बीते दिनों के सौरभ के खटठे मीठे दिलचस्प किस्से हैं पर अभी परिचय में इतना ही बाकी वृहद विश्लेषण बाद में..जाते जाते बस इतना और सौरभ अपने स्वभाव  अनुरूप आज इंदौर में बहुत बड़िया केडीएम बैग का बिजनिस कर रहा है और दिनों दिनों नए कीर्तीमान गढ़ रहा है..और तत्वज्ञान के प्रचार प्रसार में अग्रणीय है...साथ ही सौरभ का मैनेजमेंट वाला गुण हांलाकि अमरमऊ शिविर के दौरान ही सामने आ गया था।लेकिन जयपुर पंचकल्याणक के समय वो और भी निखर कर सामने आय़ा,काफी अच्छी नतृत्व की कला इनके पास है..और उसी के साथ ये जीवन को नई दिशा दे रहे हैं औऱ आप जब भी आप जिंदगी से हैरान परेशान हो तो आईआरसीटीसी की बेवसाइट खोलकर इंदौर का रिजर्वेशन कर ले, घबराइए नहीं आपके आने जाने का और खाने पीने का इंतजाम भी पापा चेरीटेबल ट्रस्ट की तरफ से सौरभ करा देगा आपको तो बस मुंह उठा के पहुंच जाना है...अब कितना पड़ेगें भाई बाकी सौरभ से मिलकर बाकी पूंछ लेना...अभी बंद करो और सौरभ से मिलने के लिए इंदौर जाने की तैयारी करो........

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