स्मारक इंडियंस ” यादों का कारवां’ पार्ट-4
स्मारक इंडियंस ” यादों का कारवां’ पार्ट-4
(इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3 अवश्य पढ़े)
किसी के अंदर कितना कुछ छिपा होता है बहुत मुश्किल होता पता
लगाना,कौन क्या है आप उसका वर्तमान देखकर नहीं कह सकते।उसकी अच्छी नियत उसकी नियति
तय करती है। पता लगाना बहुत मुश्किल है, बिल्कुल नीति शतक के उस एक श्लोक की
तरह... जिसे राजधर अधिकतर समय सुनाते रहते थे ,संस्कृत से वास्ता खत्म होने के बाद
बाकी सब तो विस्मृत हो गया पर वो श्लोक आज भी जहन में है”स्त्री चरित्रं मनुषस्य भाग्यं देवो ना जानाति कुतो मनुष्या: ” ये श्लोक हमारी क्लाश पर
पूरी तरह फिट बैठता है,किसी ने सोचा भी ना होगा कि हर दम मस्ती करने वाले ये नेता
लोग इतने सफल होंगे जितने हम आज हैं औऱ आगे होने वाले हैं, दूसरे के भाग्य का तो
पता नहीं पर अपनी क्लास के लोगों के लिए
तो कह सकता हूँ कि ये लोग जहां रहेंगे,वहां का इतिहास नहीं बनेंगे अपितू वहां का
इतिहास बदल देंगे औऱ वो जगह इनके नाम से ही जानी जाएगी.....
चलो यार बहुत लोग बाकी है.ये शब्दों की लहरे ना भी पता नहीं
कहा कहा बहा ले जाती हैं,पहुंचना कहीं चाहते हैं, पहुंच कही जाते हैं पर भाई कर भी
तो क्या सकते हैं,अंतर्मन में इस बेच का हिस्सा होना और स्मारक में पढ़ने का गौरव
इतना है कि चाहकर भी खुद को रोक नहीं पाता..सफर शुरू करते हैं. एस विनोद के
साथ.....
एस विनोद—साला आज तक पता नहीं चला इनके आगे लगे इस एस का
मतलब क्या है,इन्होंने कभी बताया भी नहीं कभी पूछने की हिमाकत की तो जनाब हमशा ही
उखड़ने लग जाते थे। तो अपुन ने अपने मन से
ही उनके एस का मतलब सनकी निकाल लिया..भाई विनोद माफ करना पर सच में सनकी तो थे ही
आप इसलिए बढ़ा सोच समझ कर बोलना पड़ता था। औऱ हां आप को देखकर ऐसा लगता था जैसे
आपके घर वालों ने आपको स्मारक सोने के लिए ही भेजा हो,औऱ वो काम आपने बखूबी
किया,औऱ एक बात जहां तक मुझे याद है आप क्लास में सबसे ज्यादा परसेंटेज लेकर आए
थे।फिर जरूर अहिन्दी भाषी होने के कारण ज्यादा परसेंटेज नहीं बना पाए पर आपके प्रतिभावान होने में कही से कहीं तक कोई
डाउट नहीं था हमें,आप हमेशा रजनीकांत के फेन रहे और कभी भी हम रजनीकांत के बारे
में कुछ उल्टा सीधा नहीं कह पाए,आप भी इकदम अद्वितीय हिस्सा थे क्लाश के तमिलनाड़ू
से आए चार लोगों में से आप और वसंत ही बचे थे। जो जाते जाते रूक गए वरना हम पहले
ही 40 से 28 फिर 23 बचे थे आप और चले जाते तो हम भालू किससे कहते,औऱ हां एक अच्छा
बॉलर कहां से लाते,लाइन लेंथ नहीं थी पर यार स्पीड अच्छी थी,अक्षय पिड़ावा के जाने
के बाद जो बॉलर की कमी थी उसे तुमने पूरा जरूर कर दिया था।और हां मुझे लगता है
स्मारक की पड़ाई में आपको ज्यादा कुछ रूचि नहीं थी वैसे आपको रूचि किस चीज में थी
पता नहीं। लेकिन यार तुम बढ़े रूचिकर थे,हमेशा क्लाश के अच्छे बुरे वक्त में
साथ।भले ही तुम स्मारक के समय में अपनी प्रतिभाओं का उपयोग स्मारक के समय में ना
कर पाए हो पर लेकिन आज बखूबी कर रहे हो और मोटी रकम पा रहे हो और एक स्कूल में
अपनी सेवाएं दे रहे हो..और बाकी तुम्हारी आत्मीयता अभी जब में चैन्नई गया तब देखन
को मिली जो इतने किलोमीटर दूर तुम मुझसे मिलने आए और मेरे साथ मरीना बीच घूमने गए
वो पल मुझे आज भी याद है..औऱ हां वो पल भी याद है जब हमारी टोली पद्मपुरा घूमने
गया था,जब आप एक दुकान पर चाट के मजे ले रहे थे पर मेरे पूछने पर बोले यार इसमें
आलू तो देखो है ही नहीं,अरे भाई जब आलू आप पहले ही खा गए थे तब आलू मुझे दिखता
कैसे।खैर आज तत्वप्रचार करते हुए औऱ चरित्र को सम्हाले हुए सफल जीवन की औऱ अग्रसर
हैं...
दीपक खनियाधाना- कुछ हिरोइन की पेपर में से कटिंग काट रहे थे,तभी
मैंने पूछा था भाई ये गंदी तस्वीरे क्यों काट रख रहा है तो ...दीपक ने दो टूक जबाब
दिया था।सुमितप्रकाश जी भी तो काट के ऱखते है।उसके बाद रात को बिस्किट खाते वक्त
भी इनका कहना था,सुमित जी बोलत हैं के बिस्कुट तो फरारू होत हैं..साला हम भी कहां
जानते थे। की सुमित जी कौन हैं पर बाद में पता चला तो दीपक का झूठ पकड़ा गया।और
दीपक ने भी तब से सुमित जी का नाम लेना बंद कर दिया।दीपक एक ऐसा इंसान जो मूढ़ में आ जाए तो फिर भगवान से भी ना डरे,
कभी इनसे कहो भाई धर्मेन्द जी बुला रय हैं तुम्हें तो दीपक का जबाब होता था,कौन खो
काम हमें या य़ा उन्हें बंडा वारन से कह दो हम बुला रय..सच में अपना अलग अंदाज जो
भी करते थे।चुटकुला बन जाता था।जिन्हें आज हम चटकारे लेकर सुनाते हैं औऱ स्मारक के
इतिहास में दर्ज हैं..हमारी क्लास के पाणनी थे दीपक भाई सेठी..ये इन्होंने खुद ही
नामकरण किया था इन्होंने बाकी लोगों की तरह दीपेश ने इनका नाम करण किया था
ठाड़े।इसकी भी बड़ी दिलचस्प कहानी है पर यहां नहीं सुनाउंग क्योंकि इनके बारे में
लिखते हुए इतने संस्मरण याद आ रहे हैं कि यदि लिखुंगा तो दो चार पेज भर जाएंग जो
यहां मुनासिफ नहीं है वक्त आने पर उन्हें भी लिखुंगा...अभी के लिए तो सिर्फ इनका
जरा सा परिचय दे रहा हूँ इनका ..हां एक बात शायद आप लोगों को पता नहीं होगी,मैंने
स्मारक के दौरान यदि किसी मार खाई थी तो वो दीपक ही हैं जिन्होंने मुझे कनिष्ठ
उपाध्याय में ही अपना रूप दिखा दिया था...भाई तब से ही अपुन तो इनसे चार हाथ दूर
रहा करते थे..भाई दीपक स्मारक पढ़ने आए थे औऱ इन्होंने सिर्फ वही किया इसलिए धर्म
की परीक्षा हो या कॉलेज की परीक्षा हमेशा अच्छे अंको के साथ पास हुए..औऱ आज भी
पढ़ाने लिखने के का काम भोपाल के पास
बैरसिया जगह पर गर्वमेंट स्कूल में कर रहे हैं..और बेहद संजीदगी औऱ सादगी से अपनी
जिंदगी को दिशा दे रहे हैं पर विराम लेते लेते दीपक भाई एक मशबिरा देना चाहूंगा चाहो तो अपना सकते हो..दुनिया के साथ जीना सीखो,,,थोड़ी
सपनों औऱ महत्वाकंक्षाओं को हवा दो जितना तुम पा चुके हो उससे ज्यादा बहुत कुछ तुम्हारा
इंतजार कर रहा है...बस जो गाठ खोल अभी तक तुमने देखी नहीं उसे खोलो और खुले आसमान
में अपने सपनों का आशियाना बनाओ.....
कपिल पिड़ावा- इनकी हाइट ऐसी थी आप कही से कहीं तक कह ही नहीं
सकते थे कि ये हमारे साथ पढ़ने आए हैं...इन्हें शुरू में देखकर तो मुझे तो ऐसा लगा
कि ऐ अपने बढ़े भाई को छोड़ने अपने पैरेंट से साथ आए हैं। पर बाद में पता चला की
जनाब हमारे साथ ही पड़ेगे..औऱ कनिष्ठ में मेरा सबसे पहले पाला इनसे ही पड़ा
था..क्योंकि में इनका ही रूम पार्टनर था।पर इनकी औऱ अक्षय पिड़ावा की आदतें देखकर
कहीं बिगड़ ना जाऊ इस डर से इनका साथ छोड़ दिया था।पर फाइनल तक आते आते इनका बहुत
करीबो हो गया था और आज भी हूँ,और आज जो प्यार,इश्क के नाम पर मैं जितना बदनाम
हुं,वो इनकी ही देन है ...इन्होंने ही मुझे सिखाया था की प्यार व्यार क्या होता है
औऱ अपुन ने भी पड़े मजे सीखा और आज भी उसे है फालो करने में लगा हूँ..खैर बात कपिल
पिड़ावा की कर रहे हैं.मलाई के नाम से विख्यात कपिल का अपना अलग ही अंदाज था।बनना तो इन्हें मॉडल चाहिए था
लेकिन पिड़ावा में पैंदा होने के कारण ये शास्त्री बनने आ गए थे..लेकिन शुक्र है भगवान
का कि स्मारक आ गए वर्ना इनका क्या होता कह नहीं सकते।खैर इनकी अदा कुछ गजब ही
था,इनके कपड़े पहनने का अंदाज इकदम झक्कास था भाई य़े खुद ही किसी हीरो से कम नहीं
थे..जिस कारण लड़कियां हमेशा मरती रही जिनका इन पर साइड इफेक्ट पड़ा की स्मारक का
स्वर्णिम टाइम छोरियों से बतयाते हुए निकल गया,और पढ़ाई लिखाई का जितना दिखावा
करने जितना इनका वास्ता था,औऱ तो बाकी जयपुर शहर जैसे इनके लिए ही बनाया गया था
हमेशा घूमने का सुरूर हुआ करता था।खैर लेकिन इनमें एक खूबी थी ए सही समय पर सीरियस
हो जाया करते थे...इसलिए भले ही परीक्षाओं में इन्होंने कभी बाजी ना मारी हो पर
मेहनत बहुत की ,धर्म कर्म से ज्यादा वास्ता था नहीं दोस्ती यारी भी प्यार मोहब्बत
के बाद लेकिन आप इनसे कुछ भी कह लो इन्हें करना वही होता था जो वो करना चाहते थे
और इन्होंने हमेशा किया भी वही...लेकिन आज के कपिल की तस्वीर बहुत अलग है आज आप
इन्हें देखेंगे तो शायद ही पहचान पाए इनकी बॉडी पर तो सब देखने वाले कायल है औऱ
दूसरी इनकी पढ़ाई भाई आजकल दिल लगाकर खूब मेहनत से कर रहा हैं कहना चाहिए जी तोड़
मेहनत और जल्द ही सरकारी नौकरी में होंगे साथ ही पिड़ावा में अपना विजनिस भी
सम्हाल रहा है..और एक और बात हमारे छोटे नवाब की अभी पिड़ावा में ही सीना नाम की
लड़की सी सगाई भी फिक्स हो गई है,,औऱ जल्द आपको शादी की खुशखबरी मिलेगी...
चलो यार हाथ दर्द करने लगे लिखते लिखते पर यादों के ताजा
होने से ना मिलने का दर्द जरूर कम हो गया...सच में हमारी दुनिया भी कितनी अलग होती
थी..ना कल की चिंता,ना कोई फिक्र ना कोई अमीर गरीब सफल असफल सब एक जैसे मासूम और
साथ मुस्कुराने रोने सोने औऱ खाने वाले....
कौन कहता है हम दूर हैं एकदूजे से,जरा महसूस तो तू कर यार
तेरे दिल में मैं औऱ मेरे दिल मैं तू तो धड़क रहा है यार
hi Abhishek mai akshay tumhara yaha lekh aur usme jo tumhaari bhavanaye mujhe mahasoos hui unhe mai kisi tppani se vyakt nahi kar paaunga yaha tumhari tvra pratibha ke darshan karata hai ...... very niceeeeeeeeeeeeeee
ReplyDeletepar tumane mere bare me jo likha hai vo bate padhakar aisa laga ki maine mara ki life jee hi nahi lekin aisa nahi he mai kabhi alag nahi rahata tha tumhare saath bhi maine bahut masti ki hai par pata nahi kyon tum muze bhul gaye ..................sale kilvish ha par itana jarur hai ki jo mere swabhiman ko thes pahuchaye to mai jarUr virodhi swabhav jo dhar leta aur kuch shaks aise bhi hai jo sahi mayno me muzase mukhatib hue usme tum bhi the islye aisa mat samzo........... by the way tumne mere bare me jo likha hai vo 50% hi sahi hai aisa muze lagata hai.....thanks for your all efforts to make beautiful memories..............