स्मारक इंडियंस*यादों का कारवां*पार्ट-7
(इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5-6 अवश्य पढ़े)
लड़खड़ाते कदम कब चलना सीख जाते हैं पता नहीं चलता
शायद इसलिए कहते हैं कदमों की आहटें तय करती हैं आप कितने बढ़ें हो गए हैं,या कितने बढ़ें
होने वाले हैं।हम सब के चलने से होने वाली गड़ गड़हाटों के स्वर बदलने लगे थे,मतलब साफ था,सब बढ़े होने लगे थे।,अपनी अपनी मंजिलों को तलाशते हुए और सबने अपनी अपनी मंजिलों की तरफ उन
कदमों को बढ़ाने शुरू कर दिया था।और आज बहुत लोग उस मंजिल को या तो पा
गए हैं या पाने की जुगत में अब भी लगे हुए हैं।लेकिन यारो हम भले ही कितने ही बढ़े
हो जाएं, कही भी क्यों ना पहुंच जाए,कितना
भी कुछ हासिल क्य़ों ना कर लें, पर बचपन जिन दोस्तों के साथ
बीता है उनके साथ ना होने की कसक हमेशा सालती रहती है।दिल हमेशा कहता something is missing yar और वो something ये कमीने दोस्त ही होते हैं, जो चाहे अनचाहे याद आ ही जाते हैं,और आना जरूरी भी
है,क्योंकि साले ये दोस्त जिंदगी का हिस्सा नहीं जिंदगी ही
तो हैं......
तो चलो भाई फिर उसी जिंदगी के हमसफर साथिय़ों के साथ
को आगे बढ़ाते हैं,क्योंकि सब साथ होंगे तब ही सफर का मजा आएगा,तो जो
बचे हैं उन्हें भी साथ ले लेते हैं....
जयदीप सेठ - राजस्थान के डडूका से जैसे आए थे, हमेशा वैसे ही रहे,कभी कुछ नहीं बदला,ना जयदीप ना जयदीप का मिजाज,बदल जाए तो फिर वो जयदीप कैसे,थोड़े से विवादित
किस्म के इंसान,औऱ यदि कभी बिग बॉस में अपनी क्लास में से कोई जा सकता है तो वो
राहुल और जयदीप ही हैं,क्योंकि ये दोनों ही प्राणी इस बात
में विश्वास करते थे,जो जितना बदनाम हुआ,उसका उतना नाम हुआ,पर भाई आप कितने बदनाम हैं ये
तो आप ही जानों हम क्यों बेबजह आप के बारे में कुछ लिखकर इल्जाम अपने सिर लें।कल
के दिन कहीं आपने मानहानी का दावा कर दिया तो,अपना तो
संविधान की धारा-19A की अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता की तो बाट लग जानी है।भाई इनसे हम जरा डरते है.,क्योंकि उपाध्याय वरिष्ठ में विक्रांत जी की क्लास में इनसे झगड़ा हो चुका
है।वो तो भला हो राहुल का वर्ना अपुन की उस दिन खैर नहीं थी। जयदीप जो तथाकथित
दंडदीप के नाम से पहचाने जाते हैं,वैसे इनकी बहुत पहचाने हैं
पर कुछ बताने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि जहां ये होंगे इन्हें आप अपने आप जान
जाएंगे,क्योंकि ये जहां जाते हैं,वहां
गर्मी जरा बढ़ जाती। बड़े इश्कमिजाज किस्म के इंसान जयदीप की हमेशा से बहव: गर्लफ्रेंडम् भवति,और जयपुर शहर भी
उससे अछूता नहीं है,जनाब की वहां भी एक गर्लफ्रेंड हुआ करती
थी,अब है या नहीं पता नहीं,पर भाई जहां
जाए वहां कोई मिले ना ऐसा भला कैसे हो सकता था, कपिल के बाद
इनका भी बहुत कुछ अपने व्यक्तित्व पर असर पड़ा है, अच्छा भी
बुरा भी,।कानेड़िया कॉलेज तो जैसे इनके ही टाइम पास के लिए
बनाया गया था,प्रवचन के बाद प्रथम दृष्टवा, कानेड़िया की देवियां ही हुआ करती थी,इसलिए आंखों को
विटामिन देने के लिए ये सुबह से ही हौम्योपेथिक डिस्पेंसरी के पास अपनी मिजोटी को
साथ लेकर चले जाते थे,जिसमें देर सबेर में भी शामिल हो गया
था।और हां एक बात और सोनाक्षी-शाहिद ने तो अभी गंदी बात करना शुरू करी है,जनाब तो हमेशा से ही गंदी बातें करते आ रहे हैं और मुझे लगता है,ये गाना इनकी ही प्रेऱणा से बनाया गया है।अन्ना जी ने इनको जो डांटा था वो
मुझे आज भी याद है,उसदिन के बाद जयदीप ने कभी पानी नहीं
मांगा,जब से अन्ना जी ने कहा था,एक
चांटा पड़ेगा तो पानी नहीं मांगेगा।जयदीप मेरा बहुत करीबी रहा है इसलिए बहुत कुछ
लिख सकता हूँ,जो आप लोग नहीं जानते,और
शायद यदि वो मेरे बारे में लिखता तो वो भी बहुत कुछ लिख सकता था।खैर स्मार्ट,टैलेंटेड लड़का,दोस्तों पर जान देने वाला इंसान,सच में दोस्ती करना सीखना हो तो जयदीप से सीखो,हमेशा
अपने करीबियों के लिए ईमानदार,उनके लिए जान देने वाला,औऱ अपनी पर आ जाए तो जान लेने वाला। हांलाकि इन्हें कभी क्लास में पड़ाई
लिखाई में अव्वल दर्जे का नहीं माना गया पर बहुत सारी प्रतिभाएं जयदीप में थी।
जयदीप का उत्साह लाजबाब था,काम को करने की ललक जिजीविषा
तारीफे काबेलियत थी,जिसकी बानगी आज आप देख रहे हैं,भाई आजकल एक अच्छे बैंक में अपनी सेवाएं दे रहा है,सबसे
हटकर चलने वाले जयदीप ने अपने लिए एक अलग ही करियर चुना है और उसमें दिनोंदिन
बेहतर कर रहा है..और कुछ दिनों बाद आप लोग बेहद सफल इंसान के रूप में जयदीप से आप
मुखातिब होंगे........
आतिश जोगी-आ..आ..आ..आ..शांति जी के पूछने
पर बढ़ी मुश्किल से अपना नाम बता पाए थे,उस दिन क्लास में, इसलिए जोरों
की हंसी भी आई थी कि यार ये कितना बोलने में कितना अटकता है औऱ तथाकथित चिंता भी की थी कि यार ये प्रवचन
कैसा करेगा। गोयाकि भाई में ऐसी कोई परेशानी नहीं थी पर आदत की वजह से ऐसे बोलते
थे,पर बाद में भाई बहुत बढ़िया वक्ता औऱ प्रवचनाकार भी बने,आतिश जोगी हमारी क्लास का ओपनर बेट्समेन,सच में
हमेशा मुझे आतिश से उम्मीद होती थी,कि यदि कपिल के साथ आतिश
जोगी की जोड़ी जम गई तो फिर तो साला हमें कोई नहीं हरा सकता,और
बहुत बार यही हुआ,थोड़े से कम मेहनती पर बेहद ईमानदार इंसान,मिलनसार कुल मिलाकर हम सबके अच्छे दोस्त।इनका नाम कपिल के साथ जोड़कर
हांलाकि लोगों ने बहुत मजे लिए जिसमें में भी शामिल था।पर कभी किसी से कभी कोई
गिला शिकवा नहीं,अपने मिजाज में रहना।अपना काम करना.आतिश का
यही फीतूर था,आतिश जोगी बहुत अच्छे चित्रकार हुआ करते थे,औऱ जहां तक मुझे याद है,आतिश को कई पुरस्कार भी मिले
इसके लिए,शायद इसलिए इन्होंने एनीमेशन करने के लिए मन बनाया
था,हालांकि सब चीजों को ध्यान में रखकर सबसे अच्छा शिक्षक
बनने का रास्ता इन्होंन अख्तियार किया,जो की बिल्कुल सही
फैसला था,जिसके चलते आज वो अपने घर में अपने घर का बिजनिस के
साथ,स्कूल में पड़ा रहे हैं औऱ सुनने में आया है कि कोचिंग
में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। स्मारक से निकलने के बाद कभी आतिश से बात नहीं हुई इसलिए ज्यादा
संपर्क नहीं है, पर अपने मजबूत इरादे स्वच्छ छवि,औऱ जीवटता के चलते अपने जीवन में अध्यात्मिकता औऱ स्मारक के संस्कारों के
साथ जीवन को गति देने की औऱ अग्रसर हैं.......
मिथुन पुदाली- चेहरे पर पर मुल्तानी मिट्टी पुती हुई थी...चैतन्यधाम में लगे उस
टूटे आइने में अपनी सूरत निहारते मिथुन को पहली बार हमने देखा था,और उनके चेहरे
धोने के बाद पता चला था,फुंसियों ने उनके चहरे पर मध्यप्रदेश
की सड़को की तरह उबड़ खाबड़ गड्डे बना दिए थे,जिसके उपचार के
लिए मुल्तानी मिट्टी लगाया करते थे,औऱ जल्द ही वो अपनी उपचार
की प्रक्रिया में सफल भी हो गए और फिर दिखाया कि भाई वो भी किसी हीरो से कम नहीं हैं।खैर बात मिथुन के
व्यक्तित्व की करते हैं,मिथुन शुरू से ही गंभीर प्रकृति के
थे,औऱ वो पूरी क्लास मे इकलौतो सख्श थे,जो इतने गंभीर रहा करते थे,स्मारक की राजनीति से कोई
लेना देना नहीं सिर्फ अपनी पढ़ाई लिखाई में ध्यान देते रहे,संयम
शेटे इनके अच्छे मित्र थे,जो किसी कारण बस बाद में नहीं रहे,
मेरा मतलब मित्र नहीं रहे। तुम लोग भी ना सालो संयम की जान लेने पर
तुले हो ...खैर वापिस मिथुन पर लौटता हूँ..इनकी भी कक्षा में काफी अच्छी छवि थी,और लोग मिथुन को एक अच्छे विद्यार्थी की तरह ही मानते थे,जिसमें
स्मारक के अधिकारी भी शामिल थे। कर्नाटक से हमारी क्लास में आये थे,औऱ बाद में वापिस अपने वतन को ही लौट गए,वैसे तो
इन्हें शुरू से ही स्वाध्याय की रूचि थी,इसलिए धर्म की सभी
कक्षाएं रूचि पूर्वक पढ़ा करते थे।लेकिन इनके व्यक्तित्व में अमूलचूल परिवर्तन तब
आया जब फाइनल ईयर के शायद अक्टूबर शिविर में सुमित प्रकाश जी स्मारक आए।ये इनके ही
शब्द थे जो इन्होंने सुमित जी से कहे थे,,,भाई साहब हमने
पढ़ा तो बहुत कुछ है लेकिन आपके समागम के बाद पता चला जिनवाणी पढ़ने का फायदा क्या
है,सच में आपके आने से मुझे नई दिशा मिल गई,और सच में सुमित जी जो कुछ भी शिविर के दौरान हमें सिखाकर गए थे,उनमें मिथुन ही था,जिसने हमेशा फॉलो किया,और आज भी कर रहा होगा,,, हां एक बात और हाल में
मिथुन पुदाली बेलगांव कर्नाटक में एक स्कूल में पढ़ा रहा है..माफ कीजिएगा सिर्फ
पढ़ा नहीं रहा है अपितु वो काम कर रहा है कि आपको मिथुन के ऊपर गर्व होगा...हां
भाई लोगों मिथुन जिस स्कूल में पढ़ा रहा है उसका प्रिंसिपल भी है,,मतलब अपने सिंद्धांतों औऱ संस्कारों से छात्रों में संस्कारों का बीजारोपण
कर पर रहा है..भाई मिथुन तुम्हें हम स्लूट करते हैं और मेरे अंदाम में लाल सलाम
जनाब......
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