स्मारक इंडियंस *यादों का कारवां*पार्ट-06


(इसे पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5 अवश्य पढ़ें)

सफर दर सफर कुछ चीजें हमसे जुड़ती चली जाती हैं,तब चाहे फिर वो कोई इंसान हो,या कोई जगह हो या फिर कोई चीज,हमसे जुड़ने वाली वे चीजें हमारी अभिन्न अंग बन जाती हैं,जिसके बिना अपने होने की कल्पना करना बढ़ा मुश्किल लगता है...,खैर कल्पनाएं जितनी हसीन होती होती हैं उतनी ही डरावनी भी होती हैं, और बहुत बार डरावनी कल्पनाएं हसीन बन जाती हैं तो हसीन कल्पनाएं डरावनी। जैसे जब हम स्मारक जाने वाले थे तब वो घर से दूर जाने वाली कल्पनाएं बहुत डराया करती थी पता नहीं कैसी जगह होगी,कैसे लोग होंगे पर,पर बाद में जब वो कल्पना यथार्थता में सामने आई तो उससे ज्यादा हसीन  कल्पना शायद ही हमारे लिए कोई दूसरी होगी..वहीं हम सीनियर बनने और  अपने विदाई समारोह की प्रतिक्षा के साथ ही स्मारक से बाहर जाकर दुनिया में कुछ करने की कल्पना करते थे ..तब भले ही वो कल्पना हसीन थी पर आज इस भागमभाग भरी स्वार्थ और संवेदनहीन दुनिया को देखकर उसकी कल्पना करके रूह कांप जाती हैं...इसलिए कहते आपका अतीत भले ही कितना ही कड़वा क्यों ना रहा हो पर उसकी यादें हमेशा मिठी हुआ करती  हैं....
तो फिर उन्हीं मिठी यादों को आगे बढ़ाते हैं..औऱ सफर में मिलने वाले साथियों के व्यक्तित्व से मुखातिब होते है,क्योंकि उन्हें छोड़ दिया तो मेरी खेर नहीं ..तो शुरू करते हैं सफर ए रोमांच......
संयम शेठे -प्रसन्न जी शेठे के छोटे भाई..इनका परिचय ऐसे इसलिए करवा रहा हूँ...क्योंकि इनसे मुलाकात ऐसे ही हुई थी..औऱ इन पर अभिषेक बच्चन की तरह उम्मीदों का बहुत दबाब था,उसे अपने की पिता की तरह बनने का तो इन्हें अपने भाई की तरह,,पर जो हश्र उसका हुआ बहुत कुछ इनका भी हुआ...हालांकि स्मारक में इन्होंने आगाज बढ़े शानदार और क्रांतिकारी ढंग से किया था औऱ जान पड़ता था कि आने वाले समय में ये ही हमारे क्लास के सबसे होनहार छात्र होने वाले हैं पर पता नहीं संयम का दिनों दिनो ह्रास होता गया,,औऱ फर्स्ट ईयर सैकिंड ईयर तक ये अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आए ..हांलाकि प्रतिभाओं में कही से कही तक कोई कमी नहीं थी.अच्छे परिवार से आए थे,शहर के रहने वाले थे,ऑरकुट,याहो,जी मेल से उस समय ताल्लुक रखने वाले थे,जिनका नाम हमने उस समय तक शायद ही सुन रखा हो,हम तो बस इतना जानते थे,कि कम्प्यूटर होता है,औऱ उसमें इंटरनेट टाइप का कुछ होता है..खैर इसकी शिक्षा हमें करन से मिली जिसकी चर्चा करन की प्रकरण में करूंगा..अभी संयम पर लौटता हूँ...बढें ही रंगीन औऱ रोमांटिक मिजाज के संयम की अपनी अलग ही शैली थी.कि आप इनके संपर्क में आए और प्रभावित हुए बिना रह जाए असंभव है...सब चीजें थी इनमें,लगन खूबसूरती,मेहनती,मिलनसार,होशियार पर ना जाने क्यों संयम क्लास में वो जगह नहीं बना पा रहा था,जिसका वो हकदार था,किसी ने सही कहा है बहुत बार सबकुछ होने पर भी आप अपने आपको साबित नहीं कर पाते शायद कर्म प्रकृतियों में इसे ही अपयशस्कीर्ति का उदय कहते है..वही सब कुछ संयम के साथ चल रहा था...और मुझे याद है कि अक्षय वाडकर को छोड़कर शायद ही किसी से संयम की बनती हो...वक्त बीता सब बदले हम सब...लेकिन फाइनल ईयर में किसी में अभूतपूर्व बदलाव नजर आया तो वो था संयम शेठे,मैं खुद ही आश्चर्य चकित था कि भाई ये हो क्या गया है इसे इकदम से हर तरफ संयम ही छाया था,,,फिर चाहे गोष्ठी का संयोजन हो या फिर कुछ..सभी अधिकारियों की नजर में संयम ने अपनी स्वभाव से हटकर अलग ही पहचान बना ली थी...उस समय मैं समझा था कि प्रतिभा और पानी की तासीर एक जैसी होती है इन्हें बहने से कोई नहीं रोक सकता...उस अंग्रेजी भाषण में तुम्हारा बोलना सच में तुमसे बहुत कुछ सीखने के संकेत देता था...फाइनली संयम फाइनल में आते आते उन सभी उम्मीदों पर खरा उतर चुका था,जो उस पर थी...वर्तमान में संयम कोल्हापुर में ही है..औऱ कुछ सोशल वर्क टाइप कुछ कर रहा है...और हां ये अब भी पता नहीं वो आज भी उतनी ही दवाइयां खाया करता है,जितनी पहले खाता था या अब बंद कर दी...पता चले तो बता देना उसकी शादी में फिर दवाइयां लेकर ही जाउंगा..

यू बसंत-धोती को टाबिल स्टाईल में लपेटे हुए सफेद कमीज के साथ जैसे ही विदाई समारोह में बसंत ने शिरकत की थी पूरी सभा की आँखे,बसंत के पहनावे को देखने के लिए टिक गई थी,,क्यों की वो साउथ की लुंगी डांस वाली स्टाइल में विदाई समारोह के कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे,जैसे ही उन्होंने,तमिल,कन्नड,मराठी,हिन्दी,अंग्रेजी,संस्कृत,गुजराती औऱ तथाकथित बुंदेलखंडी भाषा में सबका अभिवादन किया था...पूरी सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गई थी.उस दिन पता चला था कि स्मारक हमें क्या देता है एक प्रदेश की सरहदों से दूर उस इंसान को स्मारक ने  संपूर्ण भारत में तब्दील कर दिया था..खैर ये अलग बात है मुझ जैसे नामुराद लोग उतना नहीं सीख पाए पर जिन्हें सीखना था उन्हें स्मारक सीखा चुका था..चलो वापिस बसंत पर लौटते हैं ...सच में बसंत रितू की तरह फुदकने वाले बसंत,मस्तमौला स्वाभाव के हुआ करता था बसंत,..छोटी सी कद काठी लेकिन नेक दिल इंसान..अपने भाई सुरेश जी की तरह ही शुरू से ही कैसेट विभाग में अपनी सेवाएं देने लगे थे,इसलिए थोड़ा सा अधिकारियों वाला भी रूतबा था..पर थोडें से कम कॉमनसेंस वाले नासमझ इंसान..उसकी बानगी वैसे तो कई बार देखने को मिली,पर सबसे बेहुदा काम इन्होंने विदाई समारोह के दौरान ही किया था..जब भरत जी कोरी इन्हे माला पहनाने आए थे,,और इन्होंने सबके सामने उनको किस कर दिया था...औऱ यदि पड़ने लिखने की बात करें तो खास रूचि नहीं थी,क्योंकि इनकी पूरी रूचि कैसिट विभाग में ही घुस गई थी..इसलिए शायद ये स्मारक के दिनों में ज्यादा कुछ अध्ययन नहीं कर पाए। जितना कुछ इन्होंने किया वो सब नैसर्गिक प्रतिभा के बल बूते पर ही किया है..आज भाई चैन्नई में एक अच्छे स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रहा है..और सुनने में आय़ा है कि प्यार मुहब्बत भी किसी के  साथ फरमाई जा रही है...और उसकी इन्होंने मुझे तस्वीर भी दिखाई थी पर अब तक इनके साथ वही तस्वीर वाली लड़की है या बदल गई कह नही सकते क्योंकि इनके रंगीन मिजाज होने के कारण थोड़ा सा डाउट बना रहता है...खैर कुल मिलाकर एक अच्छा इंसान और आज के समय बेहद सफल....

प्रकाश उकलकर- यार मुझे तुम्हारी उपाध्याय वरिष्ठ में सुनाई गई वो दर्दनाक स्टोरी आज भी याद है औऱ में उस दिन के बाद से हमेशा तुम्हारा हमदर्द रहा क्योंकि मुझे पता था तुम  किस दर्द से गुजर रहे हो...और हां सालों तुम लोग ज्यादा एक्साइटेट मत हो वो स्टोरी मैं तुम्हे सुनाने वाला नहीं हूँ यहां क्योंकि वो पर्सनल बातें थी ना यार...चलो यार प्रकाश डालते है प्रकाश पर..बहुत मेहनती लेकिन कम सफल होने वाला इंसान..पता नहीं किस्मत इन्हें उतना कुछ नहीं दे रही थी..जितने के ये हकदार थे..सच में यार इकदम भोला भाला सा चेहरा,मासूमियत लिए हुए,निर्विवाद व्यक्तित्व कभी किसी के साथ कोई अनबन नहीं..असल में आदर्श विद्यार्थी पुरस्कार के सच्चे हकदार तो यही थे..पर शायद इन्हें मिल नहीं पाया पर मेरी नजर में तो हमेशा आदर्श ही रहे..धर्मेन्द्र जी के बिना जागए ही जाग जाना,हमेशा क्लास में पहले पहुंचना,सब काम टाइम पर करना और हां व्यायाम टाइम पर करना,प्रकाश कभी कुछ नहीं भूलता था,बुराई इसलिए नहीं लिख पा रहा हूँ क्योंकि उस कहानी के बाद हमेशा उसकी बुराईयों को नजर अंदाज किया था..प्रकाश की छवि बेदाग थी,इसलिए बढ़ा सम्मान था उसके लिए दिल में,पर उसके दिल में अपने बढ़े भाई की तरह ना कर पाने का दर्द हमेशा झलका करता था,,पर भाई सबकी किस्मत में सब नहीं होता बहुत कुछ उन में तुम्हारे जैसा नहीं होगा जो तुम्हे अलग करता हो...तुम्हारी नियत साफ है इसलिए तुम्हारी नियति भी ठीक ही होगी..क्योंकि अच्छी नियत और बुरी किस्मत ज्यादा समय साथ नहीं रहते..जब से स्मारक छोड़ा है तब से कभी तुम से बात नहीं हो पाई..पर खबर है तुमने भी बीएड कर ली है औऱ किसी स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रहे हो...बाकी सूचना की प्रतिक्षा में....
सच में लिखते लिखते दिल भर आता है मन भावुक हो जाता है..औऱ लगता है सब छोड़ छाड़ के फिर से उसी दुनिया में चला जाऊं..पर दोस्तों अब वो सब मुमकिन नहीं जो मुमकिन वो करने की हम कोशिश में लगे हुए हैं...औऱ किसी दर्द उसे आपस में साझां कर रहे हैं...तुम लोगों की यादों के साथ...श्रृंखला लगातार जारी है
नोट-भाई लोगों आप की प्रतिक्रियाएं मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं इसलिए ब्लॉग पर अपना  कमेंट,सुझाव अवश्य दें,...

Comments

  1. संयम अभी कोल्हापुर में किसी स्कूल में शिक्षक है...

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