स्मारक इंडियंस “यादों का कारवां”पार्ट-5

(इसे पढ़ने से पहले भाग--1-2-3-4 अवश्य पढ़ें)
आसमान में उड़ने वाली पतंगे...देखते देखते कुछ इस तरह ओझल हो जाती है,जैसे उनका कभी यथार्त में वजूद रहा ही ना हो,पर पतंग उड़ाने वाले के जहन में उसका वजूद हमेशा कायम रहता है,पतंग कभी भी इतनी उड़ान नहीं भर सकती की उसके अवचेतन से दूर चली जाए,और शायद वो पतंग भी दूर नहीं जाना चाहती पर क्या करें कभी ना कभी तो डोरी टूटनी या छूटनी तो है ही,हम सबका मिलना बिछुड़ना बहुत कुछ पतंग औऱ डोर के रिस्ते की तरह हैं,जिसमें कुछ डोरें तो टूट गई है,इसलिए हमसे बहुत दूर चली गई है,पर कुछ आज भी बंधी हुई हैं औऱ खुले आसमान में हम भले ही कितना उड़ लें पर वापिस आना तय है,,,,क्योंकि वो पाठ हमें बहुत अच्छे से याद है देख लिया हमने जग सारा,मेरा घर है सबसे प्यारा....

चलो वापिस अपने घर में लौटते है औऱ शुरू करते हैं..बचे हुई अजीज मित्रों की परिचय श्रृंखला को,जिन्हें चाहे जितना जाना जाए पर हमेशा लगता यही है..यार बहुत कुछ छूट गया,,,पर क्या करें यार शब्दों का पैमाना तो है,यादों का नहीं नहीं उन्हें कैसे शब्दों के लिबास में ढालू..बहुत कुछ यादों का तन ढकना रह जाता है...इसलिए जो रह जाए उसे हम बाद में लिख लेंगे.....

अतुल जैन- ये नाम याद है कि नहीं...शायद ही याद होगा किसी को..जब साथ था तब याद नहीं रहा तो अब तो याद रहने से रहा...सबकी तरह क्लास में इनका जो नामकरण हुआ था। अतुल आवारा जो इन पूरी तरह से फिट बैठता है ,क्योंकि पांच सालों में पता ही नहीं चला की अतुल भी हमारी क्लास का हिस्सा है,क्योंकि पता नहीं ये कौन  सी दुनिया मे रहा करते थे,शायद इसलिए इनके बारे में धर्मेन्द्र जी  कहा करते थे,प्रजेंट वॉडी अपसेट माइंड, ऐसे ही थे ये जनाब।,,राजस्थान के नौगामा से कक्षा में शामिल होने आए थे पर कभी हो नहीं पाए अपनी आवारापन वाली आदतों की  वजह से...इनके बारे में बहुत कुछ जो याद है वो उपाध्याय वरिष्ठ के समय का ही है,जब जनाब प्रवीण जी  के सामने वाले रूम में सजल के रूम पार्टनर हुआ करते थे,उस दौरान इनको काफी कुछ परेशान किया हमने फिर बाद में सोचा ये तो साला खुद  से ही परेशान है इसे क्या परेशान करें,,इनकी सानिया मिर्जा टाइप टांगे देखने के लिए ,क्लास का हुजूम लग जाया करता था,,जब वो अपनी दो मीटर की टाबिल लपेटकर बाथरूम जाया करते थे लगता था,मानों किसी फैशन शो के दौरान केटवॉक कर रहे हों,,,,अजब गजब निराले ढंग थे भाई अतुल के,,,पर जो भी हो हमारी क्लास में आये थे,तो अदभुत प्राणी तो होंगे ही इसमें किसी प्रकार का मतभेद नहीं हैं...और हां यदि कभी किसी ने इन्हें व्यक्तिगत रूप से जानने कि कोशिश की होगी तो वो जानता होगा की,उस आवारा अतुल में भी एक होनहार,प्रतिभावान व्यक्तित्व समाया हुआ है,भले ही उसे कभी अपनी प्रतिभाएं दिखाने का मौका ना मिला हो पर,उसमें प्रतिभाओं की कमी नहीं थी, अंग्रेजी,संस्कृत पर अच्छी पकड़ थी,पर मुझे लगता है कक्षा से दूरी बनाने के कारण वो उतना अपना विकास नहीं कर पाए जितनी उनमें काबिलियत थी।अतुल के एक भाई कुबैत में हैं औऱ अतुल की ख्वाहिश है कि वो भी कुवैत जाए,औऱ चला भी जाएगा क्योंकि इधऱ से उधऱ उधर  से इधर आने -जाने का तो उसका पसंदीदा शगल रहा है...खैर अतुल भाई पहले की तरह आज भी आपके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हैं,,सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि आपने बीएड कर ली है,और उदयपुर में ही आप अपनी महत्वाकांक्षाओं का नित नए आय़ाम दे रहे हैं....और हो सकता है कि आप जब सफल हो जाओ तो हमारे सामने होगे,,,और हम सब की यही दुआ हो की आप कुछ बनों औऱ हमारे संपर्क में बने रहो....हां भाई अतुल आपसे एक मुझे पर्सनल एक शिकायत औऱ है विदाई समारोह वाले समय की जब आपने 5  की जगह 15 मिनिट बोला था,औऱ शान्ति जी को आपसे माइक छीनना पड़ा था,उसके बाद जब मेरा नंबर आया,तो शान्ति जी के डर से ज्यादा कुछ बोल नहीं पाया जिसका मुझे आज भी मलाल है औऱ ताउम्र रहने वाला है..सफल शुभकामानाओं के साथ आपसे विदा लेता हूँ अतुल भाई....


चिंतामन भूस--अतुल के बाद सीधे इनका परिचय थोड़ा अटपटा सा लग सकता है,,पर मैं खुद ही अटपटा लगवाना चाहता हूँ..क्यों बाद में बताउंगा..अभी चिंतामन भूस से रूबरू होते है....चिंतामन भूस वैसे इनके नाम का अर्थ तो ये होना चाहिए चिंत+मन= चिंतामन,मतलब जिनके मन में चिंता हो वो चिंतामन,पर मेरे यादों के घोड़े जहां जहां तक दौड़ रहे हैं मुझे कहीं से कहीं तक इन्हें चिंतामग्न नहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं...महाराष्ट्र मिजोटी (दो साल ही ऐसा कुछ भेद था..उसके बाद तो हम क्या थे सबको पता है) का प्रतिनिधित्व करने वाले चिंतामन भूस का,व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि आप उसके कायल हुए बिना रह ही नहीं सकते थे।हाथों में राजयोग की लकीरों के साथ पूरे गुण एक शासक के थे,जो अपनी बातें सबसे मनवा सकता था,और मेरे ख्याल से हम से मानते भी थे...अरे यार क्यों ना माने थे ही हमारे घर के बड़े बुजुर्ग इंसान...खैर कभी पढ़ाई लिखाई ना करने के बाद भी हमेशा अव्वल रहने वाले इंसान अध्यात्म पर अच्छी खासी पकड़,पर पहले प्रवचन में ही सबसे ज्यादा श्लोकों पर प्रवचन करने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया था,..थोड़े से अक्खड़,खूसड़ टाइप इंसान शायद इसलिए कुछ जूनियर्स इन्हें नापसंद किया करते थे,,,पर शायद चिंतामन ऐसा था नहीं जैसा उसे समझा जाता था..भाई का रौद्र रूप मुझे हमारे करंट सीनिसर्य के समय के क्रिकेट टूनामेट के समय देखने को मिला,जब जनाब ना ने हमारे एक सीनियर्स को किस तरह से डांटा था,वह सही नहीं था पर वक्त की नजाकत वहीं करने को कह  रही थी,शायद इसलिए चिंतामन नें ऐसा किया होगा..एक अच्छे मार्गदर्शक ,चिंतक,उनके अध्ययन क्षेत्र में आने वाली सभी भाषाओं पर जबरदस्त पकड़,और भाई का ज्ञान भी इकदम सार्प हुआ करता था,,,,जिसका ताजा उदाहरण आप आज देख सकते है,,,औऱ क्लास में पहली गवर्मेंट जॉब पाने वाले शायद पहले शख्स थे चिंतामन...आज भाई एक गुरूकुल में अध्यापन का कार्य कर रहा है....और स्मारक में लिए प्रण, तत्व विचार औऱ तत्वप्रचार पर अमल कर जीवन को सफल बनाने की कवायद में लगे हुए हैं...बहुत कुछ है कहने को पर अभी विराम लेता हूँ आपसे........

संतोष - इनका आधा नाम इसलिए लिखा क्योंकि पूरा नाम मुझे आज भी याद नहीं है,संमन्नवर है या संगमरमर पता नहीं,,,अपुन तो इन्हें किच्चा नाम से जानते है..अब किच्चा क्या होता है,ये भी भगवान जाने पर भाई इन्होंने रखा है तो कुछ ना कुछ मतलब तो होगा ही...हिमेश  रेशमियां की तरह नाक के स्वर से बोलने बाले,संतोष कर्नाटक से आए थे,अध्ययन करने पर उसे छोंड़कर सब किया इन्होंने ।काफी तंदरूस्त बॉडी रखने वाले संतोष को शब्दों में पिरोना बहुत मुश्किल है,,,क्योंकि इनके व्यक्तित्व के बारे में मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं है पर जहां तक मुझे याद है..ये थोड़े से मूड़ी किस्म के इंसान थे..जब दिल करे तो काम करना, नहीं करे तो नहीं करना..मुझे याद है संतोष का वो चेहरा जब वो अपने पापा के साथ स्मारक आया था.बिल्कुल खुशमिजाज जो पांचों सालों रहा,पांच सालों में बहुत उठापठक कि है ...हां मुझे इनके साथ घटा वो बाकया याद है जब जनाब एक गोष्ठी में बोल रहे थे और विषय खत्म हो जाने पर इन्होंने कन्नड़ की फिल्म का गाना भजन की तरह कन्नड़ में सुना दिया था..जिसके लिए शान्ति जी से इन्हें काफी डांट भी खानी पड़ी पर,,,ये तो संतोष थे इन्हे कौनसा फर्क पड़ने वाला था क्योंकि धर्मेन्द्र जी से डांट खाते खाते इन्हें डांट खाने की आदत जो पड़ गई थी...जो भी हो संतोष बहुत ही जीवट और उत्साह से लबरेज इंसान था...औऱ कुछ दिनों पहले इन्होंने स्मारम में बार्डन का पद सम्हाल कर गरिमा बढ़ाने वाला कार्य किया है,सोशल नेटवर्किंग साइट पर बहुत अधिक सक्रीय हैं...हांलाकि मुझे लगता है इनकी ख्वाहिश हीरो बनने की थी  लेकिन ये बन नहीं पाए पर दोस्त रियल लाइफ में तुम हम सब के आज भी हीरो हो और हम तुम्हें एक हीरो की तरह ही याद करते  हैं....वर्तमान में इन्होंने सिंगेरी से बीएड की है औऱ शायद मुझे पक्का पता तो नहीं है पर कहीं अध्यापन का कार्य कर रहे हैं...संतोष भाई हम तुम्हारे उज्जवल भविष्य की कामनाओं  के साथ....

(आप की प्रतिक्रियाएं औऱ सुझाव मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं इसलिए ब्लॉग पर कमेंट जरूर करें )

Comments

  1. संतोष अभी बेलगाम में स्कूल में शिक्षक है...

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