स्मारक इंडियंस *यादों का कारवां*पार्ट-06
(इसे
पढ़ने से पहले भाग-1-2-3-4-5 अवश्य पढ़ें)
तो फिर उन्हीं मिठी
यादों को आगे बढ़ाते हैं..औऱ सफर में मिलने वाले साथियों के व्यक्तित्व से मुखातिब
होते है,क्योंकि उन्हें छोड़
दिया तो मेरी खेर नहीं ..तो शुरू करते हैं सफर ए रोमांच......

यू बसंत-धोती को टाबिल स्टाईल में लपेटे हुए सफेद कमीज के साथ जैसे ही विदाई समारोह में बसंत ने शिरकत की थी पूरी सभा की आँखे,बसंत के पहनावे को देखने के लिए टिक गई थी,,क्यों की वो साउथ की लुंगी डांस वाली स्टाइल में विदाई समारोह के कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे,जैसे ही उन्होंने,तमिल,कन्नड,मराठी,हिन्दी,अंग्रेजी,संस्कृत,गुजराती औऱ तथाकथित बुंदेलखंडी भाषा में सबका अभिवादन किया था...पूरी सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गई थी.उस दिन पता चला था कि स्मारक हमें क्या देता है एक प्रदेश की सरहदों से दूर उस इंसान को स्मारक ने संपूर्ण भारत में तब्दील कर दिया था..खैर ये अलग बात है मुझ जैसे नामुराद लोग उतना नहीं सीख पाए पर जिन्हें सीखना था उन्हें स्मारक सीखा चुका था..चलो वापिस बसंत पर लौटते हैं ...सच में बसंत रितू की तरह फुदकने वाले बसंत,मस्तमौला स्वाभाव के हुआ करता था बसंत,..छोटी सी कद काठी लेकिन नेक दिल इंसान..अपने भाई सुरेश जी की तरह ही शुरू से ही कैसेट विभाग में अपनी सेवाएं देने लगे थे,इसलिए थोड़ा सा अधिकारियों वाला भी रूतबा था..पर थोडें से कम कॉमनसेंस वाले नासमझ इंसान..उसकी बानगी वैसे तो कई बार देखने को मिली,पर सबसे बेहुदा काम इन्होंने विदाई समारोह के दौरान ही किया था..जब भरत जी कोरी इन्हे माला पहनाने आए थे,,और इन्होंने सबके सामने उनको किस कर दिया था...औऱ यदि पड़ने लिखने की बात करें तो खास रूचि नहीं थी,क्योंकि इनकी पूरी रूचि कैसिट विभाग में ही घुस गई थी..इसलिए शायद ये स्मारक के दिनों में ज्यादा कुछ अध्ययन नहीं कर पाए। जितना कुछ इन्होंने किया वो सब नैसर्गिक प्रतिभा के बल बूते पर ही किया है..आज भाई चैन्नई में एक अच्छे स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रहा है..और सुनने में आय़ा है कि प्यार मुहब्बत भी किसी के साथ फरमाई जा रही है...और उसकी इन्होंने मुझे तस्वीर भी दिखाई थी पर अब तक इनके साथ वही तस्वीर वाली लड़की है या बदल गई कह नही सकते क्योंकि इनके रंगीन मिजाज होने के कारण थोड़ा सा डाउट बना रहता है...खैर कुल मिलाकर एक अच्छा इंसान और आज के समय बेहद सफल....
प्रकाश उकलकर- यार मुझे तुम्हारी उपाध्याय वरिष्ठ में सुनाई गई वो दर्दनाक स्टोरी आज भी याद है औऱ में उस दिन के बाद से हमेशा तुम्हारा हमदर्द रहा क्योंकि मुझे पता था तुम किस दर्द से गुजर रहे हो...और हां सालों तुम लोग ज्यादा एक्साइटेट मत हो वो स्टोरी मैं तुम्हे सुनाने वाला नहीं हूँ यहां क्योंकि वो पर्सनल बातें थी ना यार...चलो यार प्रकाश डालते है प्रकाश पर..बहुत मेहनती लेकिन कम सफल होने वाला इंसान..पता नहीं किस्मत इन्हें उतना कुछ नहीं दे रही थी..जितने के ये हकदार थे..सच में यार इकदम भोला भाला सा चेहरा,मासूमियत लिए हुए,निर्विवाद व्यक्तित्व कभी किसी के साथ कोई अनबन नहीं..असल में आदर्श विद्यार्थी पुरस्कार के सच्चे हकदार तो यही थे..पर शायद इन्हें मिल नहीं पाया पर मेरी नजर में तो हमेशा आदर्श ही रहे..धर्मेन्द्र जी के बिना जागए ही जाग जाना,हमेशा क्लास में पहले पहुंचना,सब काम टाइम पर करना और हां व्यायाम टाइम पर करना,प्रकाश कभी कुछ नहीं भूलता था,बुराई इसलिए नहीं लिख पा रहा हूँ क्योंकि उस कहानी के बाद हमेशा उसकी बुराईयों को नजर अंदाज किया था..प्रकाश की छवि बेदाग थी,इसलिए बढ़ा सम्मान था उसके लिए दिल में,पर उसके दिल में अपने बढ़े भाई की तरह ना कर पाने का दर्द हमेशा झलका करता था,,पर भाई सबकी किस्मत में सब नहीं होता बहुत कुछ उन में तुम्हारे जैसा नहीं होगा जो तुम्हे अलग करता हो...तुम्हारी नियत साफ है इसलिए तुम्हारी नियति भी ठीक ही होगी..क्योंकि अच्छी नियत और बुरी किस्मत ज्यादा समय साथ नहीं रहते..जब से स्मारक छोड़ा है तब से कभी तुम से बात नहीं हो पाई..पर खबर है तुमने भी बीएड कर ली है औऱ किसी स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रहे हो...बाकी सूचना की प्रतिक्षा में....
सच में लिखते लिखते
दिल भर आता है मन भावुक हो जाता है..औऱ लगता है सब छोड़ छाड़ के फिर से उसी दुनिया
में चला जाऊं..पर दोस्तों अब वो सब मुमकिन नहीं जो मुमकिन वो करने की हम कोशिश में
लगे हुए हैं...औऱ किसी दर्द उसे आपस में साझां कर रहे हैं...तुम लोगों की यादों के
साथ...श्रृंखला लगातार जारी है
नोट-भाई
लोगों आप की प्रतिक्रियाएं मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह हैं इसलिए ब्लॉग पर अपना कमेंट,सुझाव अवश्य
दें,...
संयम अभी कोल्हापुर में किसी स्कूल में शिक्षक है...
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