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Showing posts from 2012

कराहती आवाज़ ...लुटती अस्मिता ...ख़त्म होता इंसानियत का अस्तित्व !!!!!!!!!!!!!

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बहुत कोशिश कर रहा हूँ की कुछ न लिखू, कुछ न बोलू ,बस चुप रहूँ। पर   आखिर कब तक और क्यों ,क्या करूं। बस इसी तरह बस लिखता रहूँ की आप पड़े लाइक करे कमेन्ट करे और मुझे शाबासी दे ।पर इससे उसका क्या हुआ उसको क्या मिला उसका दर्द कहा कम हुआ उसकी आत्मा तो आज भी चीख रही है ।चिल्ला रही उसका दर्द तो आज भी बयां नहीं हो पा   रहा है ।आंसुओं का समुन्द्र है पर उस दर्द के सामने वो सूख  गया है ।उसकी एक- एक आह हैवानियत का कहानी कह रही है।और पूछ रही है की मेरा कसूर क्या है ,बस इतना ही की तुझ जैसे हैवानो को मैंने  पैदा किया ,हर माँ आज सोच रही होगी की यदि ऐसे बिषेले इन्सान इस कोख से जन्म लेते है तो कभी  यह कोख  न भरे ।                  इतनी दरिंदगी कैसे किसी के अंदर  हो सकती है रूह नहीं कांपती होगी क्या उनकी ..., हैवान भी खुश हो रहे होंगे की अच्छा है हम इन्सान  नहीं है ,इतनी दरिन्दगी  तो अपनों के साथ हम भी नहीं करते पर यह इन्सान है सबसे समझदार प्राणी यह सब...

प्रेम- प्रेमालाप, प्रदर्शन, पश्चाताप या फिर पागलपन

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ओशो का एक वाक्य है "वासना का नाम प्रेम नहीं पर इसका मतलब यह नही है की वासना को दबाकर  प्रेम को प्राप्त किया जा सकता है ,प्रेम तो उसका नाम है जिसके होते ही वासना की  भावना क्षीण होती जाती है और और उसका अस्तित्व ख़त्म होता जाता है ,सच्चे प्रेम में तो वासना का कही स्थान ही नहीं है जैसे ही प्रेम का सूर्य उदित होता है वासना का अँधेरा अपने आप कही छुप जाता है ,असल में यही वो निर्मलता  है जिसमे  मन का मिलन  होता है या कहे इश्वर का मिलन होता और यही प्रेम आदर्श है | पर जैसे जैसे वक्त ने करवटें बदली प्रेम की परिभाषा  भी अपने आप बदल गई  ....प्रेम बस शब्द रह गया उसके मायने उसका मतलब और अर्थ सबकुछ बदल गया और उसका स्थान ले लिया वासना ने  प्रदर्शन ने या  पागलपन ने  आज  की ज्यादा समझदार  युवा पीडी से प्रेम का मतलब पूछा जाये तो तो उनके चेहरे राक्षसी हसी आ जाती है...खैर गलती उनकी नहीं है ,भागमभाग भरी जिन्दगी में जब इन्सान मशीन बन जाता है तो काम भी मशीनों जैसे ही करता है .सब संवेदनाएं, सचेतनाएं तो उसकी कभी की काल  ...

परेशान बहुत हूँ ..............

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हा खुद से भागना चाहता हूँ बहुत दूर कही छिप जाना चाहता  हूँ हा डरता हूँ खुद से लड़ता हूँ खुद से खुद के सपनो से खुद की बातो से अपनों और  अपनेपन के अहसास से  कही दूर बहुत  दूर खो जाना चाहता हूँ अपना साया भी  डराता  है अब मुझेको   अब सारे जहां का साथ भी कचोटता है मुझको ,खुद से ही अब भागता हूँ अब इसी तरह हालत हो गये है मेरे अपने हालत का पता नहीं है मुझको मैंने लोगो से सुना है  की मैं आजकल परेशान बहुत   हूँ .......                     

तेरा ही फल तुझको

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                                                                   आखिर क्यों नहीं समझते                                   मेरी मज़बूरी ,क्यों लांघते हो मर्यादाएं                                   मैं भी तो चाहती हूँ की तुम खुश रहो                                   भले...

दो पहलू जिन्दगी के .........

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             बहुत कहने सुनने में आता है की हर किसी की जिन्दगी के दो पहलू हुआ करते है शायद हा ! एक पहलू जितना सुंदर होता है दूसरा उतना ही भयाभय पर दोनों जरूरी है |क्योंकि  पहले पहलू की सुन्दरता दुसरे की वीभत्स्यता के कारण  ही तो समझ आती है |सुख का  अनुभव भी दुःख के अनुभव के बाद ही आता है ,क्योंकि असल में कमी का अहसास ही वस्तु को कीमती बना  देता है |खैर यहाँ बात  जिन्दगी के उन दो पहलुओं की करनी है जिसे हमने  न सिर्फ सुना पड़ा या बस देखा नहीं  है जिसे जिया है या कहू तो जी रहे  है  |असल में पड़ा सुना उतना यथार्त का रूप अख्तियार नहीं करता जितना वो होता है, क्योंकि हमें पड़ी सुनी बातो पर भरोसा ही नहीं होता उसे सिर्फ हम कहने सुनने या फिर ज्ञान देने के लिए ही उसका  उपयोग  करते है ,अमल तो बस उन्ही का किया जाता है जिसे हमने जिया है  है या जिसे अनुभव  किया है |        जिन्दगी के दोनों पहलुओ में चकाचोंध बहुत है ,हसी ख़ुशी गम भी...

पूछता होगा वो "''''''''''

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पूछता होगा वो क्या कसूर है मेरा क्या मेरे जिस्म को काटकर  पेट भरता है तेरा में भी तो वहि हूँ जो तू है दुःख दर्द प्रेम  का अहसास खुदा का अस्तित्व मुझमे भी कही है सबकुछ तो वहि वहि  और वहि है  फिर क्यों उसके नाम पर सिर्फ  मैं  मैं और मैं  ही   तेरी आन शान बलिदान के लिए  ही होता हूँ  कुर्बान !!!!

जरुरी भी तो है """"""

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वो उन्माद और अल्हडपन अब नहीं रहा ऐसा नहीं है की इच्छाएं न हो सब है पर वो वक्त नहीं वो अपने नहीं जिन्हें अपना कहा जा सके हा तथाकथित अपने तो बहुत है पर वो अपने नहीं जो अपने होते तो थे कपडे और चेहरों से परे शोहरत और पद से परे शिकायत किसी से नहीं है हा कभी होती भी है तो वक्त के मत्थे मड देता हूँ क्योंकि वो सब अपने तब तक ही जब तक छद्म हसी और दिखावटी सहानुभूति और साथ है खैर जो कुछ भी है जिन्दगी का हिस्सा ही तो है जरुरी हो या मज़बूरी बात अलग है ...                    "अव्यक्त "

सवाल जवाब

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"सवाल सवाल सवाल बस सवालों का जंजाल है शायद जिन्दगी  हर दम हर पल बस सवाल कभी नहीं मिलता उत्तर मिलता भी है तो हजारों सवालों के जन्म के साथ खोजता हूँ में भी उन्हें हर जगह हर  समय जरुरी है क्योंकि नहीं मिलने पर मन कचोटता है बेचैन होता है परेशान करता है लेकिन लेकिन लेकिन मिल जाने पर भी तो यही सब कुछ  करता है मन अब लगता है सवालों को नहीं सवाल खड़े करने वाले को खोजना होगा ???????? उसी में सवाल उसी में जवाब छुपा होगा ,फिर न तो  जबाब होंगे और न ही कभी न ख़त्म होने वाले सवाल  सवाल  और  सवाल !!!!!!!!!!!!!!!

ख़ामोशी के सवाल

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खामोशियों की आहट बहुत आती है ख़ामोशी के साथ ह्रदय का रक्तचाप मंथर होता जाता है उसे महसूश करके धडकने अंतहीन धडकती है कुछ अव्यक्त सा अहसास करती हुई बहुत सारे सवाल खड़ा करती है वो ख़ामोशी अब समझ यह नहीं आता की उसका उत्तर कैसे दूँ खामोश हो कर या बाचाल  होकर !!!!!!!!

राजनैतिक महाभारत ......जीत किसकी ....क्या होगा अन्ना -केजरीवाल की पार्टी का !!!!!!!!!!

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      महाभारत तो देखी होगी सभी ने न भी देखो हो सुनी तो जरुर ही होगी प् असल में देखने और सुनने देखने की जरूरत क्या है सभी की जिन्दगी में कोई न कोई महाभारत  तो चल ही रही है .....लेकिन यहाँ में पूरी महा भारत की बात नह्गी कर रहा हूँ में तो सिर्फ  कृष्ण अर्जुन की  महाभारत में भूमिका की  बात कर रहा हूँ | जब कभी महाभारत देखता हूँ तो हमेशा यही बात दिमाग में आती है  की   श्रीकृष्ण इतने शक्तिशाली थे पर उन्होंने कभी युध्द क्यों नहीं लड़ा  सारथी का काम करना क्यों चुना ....बहुत सोचने पर एक बात सामने आई की  जो सच में शक्तिशाली और समझदार होता है वो कभी परदे के आगे के रंगमंच पर आता ही नहीं वो अद्रश्य शक्ति की तरह काम करता  रहता है|और सभी अच्छे बुरे कार्यो का कर्ता धर्ता भी वाही होता है ....युध्द लड़ने  वाला कभी असली युद्धा नहीं होता असली युद्धा तो वाही होता है जो संचालन करता है कभी युद्ध नहीं लड़ता .....हा युध्द चलता जरुर है लेकिन उसके विचारों में वह भी परिणाम के साथ और यही वो  चीज़ है जो उसे अद्रश्य शक्ति बनाती है | ...

कुछ व्यक्त सा कुछ अव्यक्त सा {दिल के अल्फाज़ शब्दों में बयां कर-4 }

आप को खिचड़ी बनानी आती है, नहीं मतलब आपको फिर राजनीति भी नहीं आती होगी...अब आप सोच रहे है होंगे की में ये क्या कह रहा हूँ .......सोचिये सोचिये में भी यही चाहता हूँ की आप कुछ न कुछ तो जरुर सोचे ......आखिर इसके आलावा हम कर भी क्या सकते है .....हा हा हा खैर छोडिये खिचड़ी की बात करते है ...जिन्दगी का लगभग १ साल खिचड़ी खा कर गुजारा इसलिए वो मुझे बहुत पसंद भी है ...इसलिए मैने खिचड़ी के उपर बहुत चिंतन किया  और बहुत सारी बाते सामने आई जिन्हें में जरुर बताऊंगा ......दरअसल यह १ ऐसा पकवान है जिसे चाहे न चाहे खाना ही पड़ता है गरीबी में पेट के लिए और अमीरी में बीमारी के लिए ......भाई बहुत पहुची हुई चीज़ है खिचड़ी ....जब कभी राजनेताओ के पास काम नहीं होता तो खिचड़ी पकानी शुरू हो जाती है ....अभी आजकल महंगाई बढने से खिचड़ी बहुत सस्ती हो गई है यत्र तत्र पकाई जा रही है .........अमीर गरीब सब खिचड़ी बनाने में लगे है कोई ममता बनर्जी टाइप ज्यादा तीखी तो कोई मायावती टाइप थोड़ी सी कम तीखी .....हा कोई कोई उपवास वाली मेरा मतलब बिना मसाले की मनमोहन टाइप खिचड़ी भी बना रहा है पर बना सब रहे है .....खिचड़ी बन...

मैं निराश ........

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वो चुपचाप सा अहसास  वो आस वो विश्वास   वो कोई अपना सा खास  जिसे पाने का  हो आभास  जाने कब वो पल आयेगा  जब सब कुछ सिमट कर  उसमे ही कही खो  जायेगा और जिसे खोजने का मकसद  भी एक दिन पूरा हो जायेगा  वो है कौन  यह सवाल भी  दिल में हलचल बचाएगा  पर क्या आप सोचते है  की ऐसा कोई इस  दुनिया में  हमको ऐसा कोई  मिल पायेगा  शायद नहीं! नहीं! नहीं!  वो आस वो विश्वास  और आभास  यथार्त में तो  सबकुछ है बकवास  क्योंकि  सब जतन करने पर भी  न जाने कब से अब तक  हूँ मैं  निराश मैं  निराश मैं  निराश !!!!!!                             ABHI AVYAKT  

कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त सा .......{दिल का उफान अल्फाजो के साथ }

      कल झमाझम बारिश देख कर दिल गार्डन गार्डन हो गया ......उसके बाद जब शाम को सड़क पर निकले तो पता नहीं क्यों ऐसा लगा की जिन्दगी की सीरत और सुरत भी एम .पी.की सडको की तरह हो गई है .........जहाँ गड्डे ज्यादा है और रास्ते कम ठीक उसी तरह जिस तरह जिन्दगी में उलझने तो बहुत है पर सुलझने या कहे समाधान कम .......ऐसी उबड़ खाबड़ सड़क होने पर भी लोग चले रहे है क्योंकि चलना तो है ही और शायद यही जिन्दगी है ..........सच में जितना पानी असमान से बरस रहा है उतना ही लोगो की आँखों से भी .....उनकी लाचारी मज़बूरी भले ही कुछ बयां n कर पा रही हो या नहीं पर दर्द का सेलाब इतना है की जितना शायद किसी सुनामी या बाड़ के उफान में नहीं होगा.......पर सरकार की फितरत भी बादलो की तरह हो गई है पहले तो पानी बरसता नहीं है और जब कभी बरसता है तो घरो को भी बहा ले जाता है .......और शायद मंहगाई की मार उसी बरसात का पानी है जो सिर्फ और  सिर्फ आंसुओ की नदियो को भरती है ......खैर हमारी पूजाओ से जिस तरह इन्द्र देवता प्रसन्न हो गए है शायद अन्ना हजारे की तपस्या से सरकार का भी दिल भी प्रसन्न जाये और लोकपाल बिल पारि...

शिक्षक दिवस पर गुरुजनों को समर्पित !!!!!!

 जीवन  शुरू  तुमसे  तुम मे ही  विलय  होता रहे गुरुवर की शरणा तो  मुसफ़िर पथ नहीं खोता इन्ही की राह पर  चल कर हमें जीवन बनाना है इसी बुनियाद पर यारो चलता ये जमाना है ||१|| .तू ब्रम्हा तू ही विष्णु  तू ही महेश बन जाता रहे गुरुवार की शरणा तो कंकर शंकर बन जाता तू तम दूर करता है जलाकर ज्ञान की ज्योति जो तेरा आशीष पा जाता   पतित वो  पावन हो जाता||२|| सभी निर्वाण और विध्वंस गुरु की गोद में खेले प्रभु से वह मुखातिब  हो गुरु के साथ जो होले यही वो मेघ है जो ज्ञान की वर्षा सदा करते ये बरसे तो नहा लेना ये बदल जाने वाले है ||३||

युवाओं सब हाथ तेरे सब साथ तेरे ...हंगामा नहीं हालात बदल तू

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                          बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं उसका कारण यही रहा की मेरे दोस्तों  ने मुझसे कहा की तुम लिखते तो अच्छा हो परन्तु बहुत ज्यादा लिखते हो .......इतना टाइम भी  नहीं है पड़ने का   और दूसरी बात पता नहीं कितना घुमा फिराकर लिखते हो .......समझ ही नहीं आया क्या कहूँ क्या न कहूँ इसलिए बस बिना कहे ही रह गया ....जरुरत भी नहीं समझी  कुछ कहने की शायद  मेरे कहने से कुछ फर्क भी नहीं पड़ता ......पर इसमें  मेरी क्या गलती है |मुझे लगा की शायद जो प्यार मोहब्बत की  उलझी हुई बातें समझ जाते है और अपनी प्रयासी के साथ घंटो फोन पर बात कर सकते है ....उन्हें देश के बारे बताने की कोशिश करूंगा तो शायद वो समझ जाये ......पर शायद  अब वो फितरत युवाओं की नहीं रही ....उन्हें बस अपने आप से मतलब है ...हा ऐसी बात नहीं वो देश के लिए कुछ नहीं कर  सकते  बहुत कुछ कर सकते है  अभी भीड़ को बुलाये नारे लगवाइए सब तैयार ...

जाने कहा गये वो दिन .......[यादो का सफरनामा पार्ट -२]

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          " ये वक्त तू क्यों नहीं ठहर जाता बस यही             मुझे तेरे बीत जाने का बहुत  अफ़सोस होगा             तेरे जाने के बाद सबकुछ  साथ है हो तो क्या             मेरा अपना ना  कोई  तब   मेरे  साथ  होगा "                              बस ऐसे ही ना जाने क्यों मन शायर सा हो गया था और लोग सच ही कहते है जब मोहब्बत हो जाती है |तो शायरी तो अपने आप ही आ  जाया करती है |और यह बस वहि हुआ| यहाँ मैं  अपनी बात नहीं कर रहा हूँ  क्योंकि  मुझे तो बचपन से ही शायरी  करने का शौक था| मगर मेरे  बाकी "एच ग्रुप" के लोग भी शायरी करने लगे थे,जिसका मुझे बड़ा आश्चर्य होता  था  | अभी आपको दो दिन पहले की ही बात बताऊ जैसे ही हमने शालिनी और खुशबु को विदा किया उनके जाने के बाद ह्रदेश और अमिताभ के सन्देश पड़ कर तो ...

"जिए तो जिए कैसे कहे?कहे कैसे ?रहे कैसे ? .......जिन्दगी के कुछ उलझन भरे सवाल!!!!!!!!!!!!!

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                              जब बुरा चलता है ना तब अच्छी बाते और अच्छे लोग बहुत अच्छे लगते है ...क्योंकि  शायद अच्छे लोगो से अच्छी बाते करने से कम से कम अच्छे समय के आने का अहसास तो हो ही जाता है |खैर छोडिये इसे बिगत दिनों से मेरे साथ कुछ खास अच्छा नहीं हो रहा है |और में बार- बार किश्मत को कोसता रहता हूँ या फिर भगवन को पर क्या करूँ  बुरे वक्त की  यही तो बुरी बात है की सिर्फ बुरा ही बुरा  बुरे वक्त में सोचने में आता है |और मैं विगत दिनों से इसी उधेड़बुन में लगा हूँ की आखिर कैसे जिन्दगी को दिशा दी जाये और इस बुरे वक्त से निकला जाये और इसके लिए मैंने काफी चिंतन या कहे विचार किया है और बहुत सारे लोगो से बात भी की है पर शायद कुछ समाधान नहीं निकला अपितु समस्याएँ और पनपती गई है इस समय को आप पनौती  वाला समय भी नाम दे सकते है |बहुत सारे लोगो ने बहुत सारी बाते कही और बहुत सारे समाधान देकर खुद को सलाह  विशेषज्ञ या परोपकारी भी मानने लगे होंगे और मुझे पर हंस भी रहे होंगे ...

"जिए तो जिए कैसे कहे? कैसे रहे? क्या करे ? .......जिन्दगी के कुछ उलझन भरे सवाल!!!!!!!!!!!!!

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                              जब बुरा चलता है ना तब अच्छी बाते और अच्छे लोग बहुत अच्छे लगते है ...क्योंकि  शायद अच्छे लोगो से अच्छी बाते करने से कम से कम अच्छे समय के आने का अहसास तो हो ही जाता है |खैर छोडिये इसे बिगत दिनों से मेरे साथ कुछ खास अच्छा नहीं हो रहा है |और में बार- बार किश्मत को कोसता रहता हूँ या फिर भगवन को पर क्या करूँ  बुरे वक्त की  यही तो बुरी बात है की सिर्फ बुरा ही बुरा  बुरे वक्त में सोचने में आता है |और मैं विगत दिनों से इसी उधेड़बुन में लगा हूँ की आखिर कैसे जिन्दगी को दिशा दी जाये और इस बुरे वक्त से निकला जाये और इसके लिए मैंने काफी चिंतन या कहे विचार किया है और बहुत सारे लोगो से बात भी की है पर शायद कुछ समाधान नहीं निकला अपितु समस्याएँ और पनपती गई है इस समय को आप पनौती  वाला समय भी नाम दे सकते है |बहुत सारे लोगो ने बहुत सारी बाते कही और बहुत सारे समाधान देकर खुद को सलाह  विशेषज्ञ या परोपकारी भी मानने लगे होंगे और मुझे पर हंस भी रहे होंगे |पर अब जब जिन्दगी ह...

दिल का दर्द शब्दों में बयाँ कर

बहुत  दिनों  बाद  कुछ  लिखने को  कलम मचल गई फिर  क्या  था दिल  की  बात  कागज पर  उतर  गई  क्या  बताता क्या छीपाता कब तक खुद को रोक पाता लिखते  लिखते  जिन्दगी  की   कहानी आंख भर गई उलझनों   ने   इस  कदर  उलझा   के  रख  मुझे की  खुद   को  समझने   में   फिर   उम्र  गुजर  गई मौत  भी  दरवाजे    पर  आकर  लौट  गई  शायद लगता है जिन्दगी की उलझने देख कर वो भी डर गई

यादो में जिन्दगी या जिन्दगी में यादें .......[यादो का सफरनामा पार्ट -१]

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                   कहते है कुछ यादें  जिन्दगी बन जाती है जिन्हें हम चाह  कर भी  भुला नहीं पाते क्यूंकि अच्छी यादो की यह बहुत अच्छी   बात होती  है की उन्हें याद नहीं रखा जाता वह याद रह जाती है |और फिर वही यादें हमारी जिन्दगी बन जाती है और  जिन्दगी  वाही यादें बनती है जिसे हम दुबारा  नहीं जी सकते हर किसी  की जिन्दगी में ऐसे पल आते है जिसे वह हम  कभी भूलना नहीं चाहता क्यूंकि  जिन्दगी के संध्याकाल में वाही तो एक चीज़ होती है जो जिसे याद करके हम  हमेशा खुश रहते  है इसलिए कहते की जिन्दगी में यादें नहीं होती यादो में जिन्दगी हुआ करती है |    दोस्तो में यह सब बाते ऐसे ही नहीं लिखता जा रहा हु चूँकि बिगत कुछ दिनो पहले मेरी कॉलेज  लाइफ ख़त्म हुई है  और हमने अपने  कॉलेज के दिनो में बहुत एन्जॉय किया है क्यूंकि हमने  हर वो ख़ुशी एकदूजे को देने की कोशिश की है  जिसे  हम जीने चाहते थे |और शायद उन लम्हों को यद् करके हमारी जिन्दगी गुजर जाएगी...

आस्था का सिंहासन ......पाखंड का आरोप .....धर्म ,धंधा या कुछ और .........!!!!!!!!

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                                           धर्म जीवन का हिस्सा नहीं होता जीवन ही  होता है क्योंकि धर्म से ही हमारे जीवन का तानाबाना बुना जाता है ...शायद इसलिए भारत देश में धर्म को परीक्षा करके नहीं अपनाया जाता बस भगवान का नाम सुनकर ही सर झुका दिया जाता है |क्योन्कि धर्म पर शक करना हमें  धर्म का अपमान लगता है और दैवीय आपदा का भय बना रहता हैं |पर क्या सच में  धर्म  को आंखे बंद करके बिना विचारे स्वीकार कर लेना उचित है |जब हम सारी की सारी दुनिया का भरोसा बिना परीक्षा के नहीं करते तो फिर धर्म को ही क्यो आँखो पर पट्टी बांध कर स्वीकार कर लेते है ....और चिंतनीय बात तो तब और भी हो जाती है जब धर्म के पुरोधा भी यही सलाह देते नजर आते है |सच में ध्रतराष्ट्र के अंधे होने पर गांधारी का अपनी आँखो पर पट्टी बांध लेना कहा का उचित था यदि परिस्थियों को तत्समय अपनी आँखो से वो देखती तो शायद  महाभारत जैसे महा नरसंहार के युद्ध से बचा जा सकता था |पर शायद इस देश की यही परम्परा रही...

मोहब्बत....

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  मुहब्बत   की बातों ने मुहब्बत  से मुहब्बत  करा दी बस खामखाँ परेशानियों की घुटी  पिला दी  बहुत सपने देखे थे रातों को मुहब्बत के  सुबह के सूरज  ने उसकी हकीकत बता दी   प्रमिका के साथ गुजारे लम्हों और यादों ने  जिन्दगी के अनमोल वक्त को तबाह कर दिया  और बेचेनी और तडपन भरी दुनिया  दिखादी  अब तो खामोशियाँ  भी खामोश नहीं होने देती   खामोशियों ने ही मोहब्बत की दास्ताँ दुनिया  को सुना दी   अब बस गुमशुम उदास रहता हूँ मोहब्बत  करके  मोहब्बत के कारण दुनिया ने मुझे नाकारा समझा  यही मोहब्बत करने की मुझे दुनिया  ने सजा दी !!!!!!!!!!